अमेरिका के टैरिफ खतरों की असलियत: जब खुद US और यूरोप रूस से व्यापार कर रहे हैं, तो भारत कहाँ खड़ा है?
अमेरिका और यूरोप, रूस पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद उससे अरबों डॉलर का आयात जारी रखे हुए हैं। इस बीच, भारत को रूसी तेल खरीदने पर अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से टैरिफ की धमकी मिल रही है। यह लेख इन देशों के दोहरे रवैये, भारत की रणनीतिक स्थिति और वैश्विक व्यापारिक समीकरणों का विश्लेषण करता है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद, पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और यूरोपियन यूनियन (EU) ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इन प्रतिबंधों का मुख्य उद्देश्य रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना और युद्ध के लिए उसकी वित्तीय क्षमताओं को सीमित करना था। हालाँकि, जमीनी हकीकत इन प्रतिबंधों से बिल्कुल अलग है। जबकि वे दुनिया के बाकी देशों, विशेष रूप से भारत को रूस से व्यापार कम करने की सलाह देते हैं, खुद अमेरिका और यूरोप रूस से अरबों डॉलर का सामान आयात कर रहे हैं। इस दोहरे मापदंड ने वैश्विक राजनीति और व्यापार में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें भारत एक महत्वपूर्ण स्थिति में खड़ा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत को रूसी तेल खरीदने पर 25% टैरिफ लगाने की धमकी ने इस मुद्दे को और भी गरमा दिया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि जो देश भारत को रूस से व्यापार के लिए निशाना बना रहे हैं, वे खुद अपने हितों के लिए रूस से महत्वपूर्ण वस्तुओं का आयात जारी रखे हुए हैं।
अमेरिका और यूरोप का रूस से व्यापार: आंकड़ों की जुबानी
प्रतिबंधों के बावजूद, अमेरिका और यूरोप अभी भी कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रूस से व्यापार कर रहे हैं। 2024 में यूरोपीय संघ ने रूस के साथ वस्तुओं में 67.5 बिलियन यूरो का द्विपक्षीय व्यापार किया। इसके अलावा, 2023 में सेवाओं में 17.2 बिलियन यूरो का व्यापार हुआ। यह आंकड़ा उसी वर्ष रूस के साथ भारत के कुल व्यापार से काफी अधिक है।
यूरोप अभी भी रूस से ऊर्जा, निकल, प्राकृतिक गैस, उर्वरक, लोहा और स्टील जैसी वस्तुओं का आयात कर रहा है। उदाहरण के लिए:
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प्राकृतिक गैस: 2025 की पहली तिमाही में, यूरोपीय संघ की प्राकृतिक गैस आपूर्ति में रूस की हिस्सेदारी 17% थी, जबकि 2021 की पहली तिमाही में यह 48% थी।
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उर्वरक: यूरोपीय संघ रूस से उर्वरकों का सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है, जिसकी हिस्सेदारी 2025 की पहली तिमाही में 25.62% थी।
वहीं, अमेरिका भी रूस से उर्वरक, यूरेनियम, और पैलेडियम जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं का आयात जारी रखे हुए है। 2024 में अमेरिका ने रूस से 1.27 बिलियन डॉलर मूल्य के उर्वरक और अपने परमाणु उद्योगों के लिए 624 मिलियन डॉलर मूल्य के संवर्धित यूरेनियम का आयात किया। यह दर्शाता है कि रणनीतिक और आर्थिक आवश्यकताएं अक्सर राजनीतिक बयानों पर हावी हो जाती हैं।
भारत की स्थिति और आत्मनिर्भरता का मार्ग
यूक्रेन युद्ध से पहले, भारत रूस से बहुत कम मात्रा में तेल आयात करता था। लेकिन पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और रूस द्वारा दिए जा रहे भारी छूट के बाद, भारत ने रूसी तेल की खरीद में भारी वृद्धि की। 2021 में, भारत का रूस से आयात 8.25 बिलियन डॉलर था, जो 2024 में बढ़कर 65.7 बिलियन डॉलर हो गया। इस वृद्धि का मुख्य कारण रूसी कच्चे तेल का आयात है, जो 2021 में 2.31 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024 में 52.2 बिलियन डॉलर हो गया।
भारत के विदेश मंत्रालय ने अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यह कदम राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी था। मंत्रालय के अनुसार, भारत ने रूसी तेल इसलिए खरीदा ताकि भारतीय उपभोक्ताओं के लिए ऊर्जा की कीमतें स्थिर और किफायती रहें। यह एक रणनीतिक फैसला था, न कि पश्चिमी प्रतिबंधों का उल्लंघन। भारत ने यह भी कहा कि पश्चिमी देशों की आलोचनाएँ अनुचित हैं, क्योंकि वे खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत रूस से केवल ऊर्जा ही नहीं, बल्कि कोयला और उर्वरक जैसे आवश्यक सामान भी खरीदता है। 2024 में, भारत ने रूस से 3.5 बिलियन डॉलर का कोयला और 1.67 बिलियन डॉलर का उर्वरक खरीदा।
निष्कर्ष: वैश्विक व्यापार में नया संतुलन
ट्रंप की टैरिफ की धमकी और अमेरिका-यूरोप के दोहरे मापदंड ने वैश्विक व्यापारिक परिदृश्य में एक नई तस्वीर पेश की है। यह दिखाता है कि जब राष्ट्रीय हित और आर्थिक सुरक्षा की बात आती है, तो बड़े देश भी अपने बयानों से पीछे हट सकते हैं। भारत की स्थिति यहाँ एक नए वैश्विक शक्ति के रूप में उभरी है, जो अपनी विदेश नीति और व्यापारिक फैसलों को अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार तय कर रहा है।
भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपने आर्थिक हितों की रक्षा करे और वैश्विक दबाव के सामने न झुके। टैरिफ की धमकियों का सामना करने के लिए भारत को अपने निर्यात को बढ़ाने, नए बाजारों की तलाश करने और अपनी अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने की आवश्यकता है। यह स्थिति भारत को अपनी आत्मनिर्भरता और वैश्विक मंच पर अपनी स्वायत्तता साबित करने का एक और मौका देती है।