चुनाव आयोग और राहुल गांधी: EVM पर बहस तेज, मांगी गई E-Voter डेटा

राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की 'शपथ लेने की चुनौती' का जवाब देते हुए कहा कि वह पहले ही संविधान की शपथ ले चुके हैं। उन्होंने चुनाव आयोग से पूरे देश का इलेक्ट्रॉनिक वोटर डेटा और वीडियोग्राफी की मांग की है, जिससे EVM और चुनावी प्रक्रिया पर जारी बहस और तेज हो गई है।

Aug 8, 2025 - 20:18
Aug 8, 2025 - 20:33
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चुनाव आयोग और राहुल गांधी: EVM पर बहस तेज, मांगी गई E-Voter डेटा
संसद से सड़क तक EVM पर संग्राम: राहुल गांधी ने चुनाव आयोग से माँगा E-Voter डेटा

भारतीय राजनीति में चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर हमेशा से ही बहस होती रही है। यह बहस तब और तेज हो जाती है जब कोई बड़ा राजनीतिक दल या नेता चुनाव आयोग (ECI) की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है। हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस बहस को एक नया मोड़ दिया है, जब उन्होंने चुनाव आयोग की उस चुनौती का जवाब दिया जिसमें उनसे वोट चोरी के आरोपों पर शपथ लेने को कहा गया था। राहुल गांधी ने न केवल इस चुनौती का जवाब दिया, बल्कि चुनाव आयोग से पूरे देश का इलेक्ट्रॉनिक वोटर डेटा (E-Voter Data) और मतदान केंद्रों की वीडियोग्राफी की भी मांग की है।

बेंगलुरु में एक रैली को संबोधित करते हुए, राहुल गांधी ने कहा कि वह पहले ही संसद के भीतर संविधान की शपथ ले चुके हैं, और उन्हें चुनाव आयोग द्वारा वोट चोरी के आरोपों पर शपथ लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस बयान के बाद, उन्होंने अपनी पार्टी की ओर से चुनाव आयोग से कुछ महत्वपूर्ण माँगें रखीं, जो आने वाले समय में भारतीय चुनाव प्रणाली में एक बड़े बदलाव का कारण बन सकती हैं।

राहुल गांधी की मुख्य माँगें: चुनावी पारदर्शिता की लड़ाई

राहुल गांधी ने अपनी मांगों को तीन मुख्य बिंदुओं में रखा, जो सीधे तौर पर चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता से जुड़े हैं:

  1. पूरे देश का इलेक्ट्रॉनिक वोटर डेटा: राहुल गांधी ने मांग की कि चुनाव आयोग कांग्रेस पार्टी को पूरे देश की इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची (e-voter list) तक पूर्ण पहुँच प्रदान करे। उनका दावा है कि कुछ राज्यों में, कांग्रेस द्वारा विसंगतियों का खुलासा करने के बाद चुनाव आयोग की वेबसाइटों से कुछ डेटा हटा दिया गया था। इस तरह की घटनाएँ चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती हैं।

  2. पिछले 10 सालों का डेटा: उन्होंने अपनी मांग को और बढ़ाते हुए कहा कि पार्टी को केवल वर्तमान चुनाव का नहीं, बल्कि पिछले 10 वर्षों का इलेक्ट्रॉनिक मतदाता डेटा और मतदान केंद्रों की वीडियोग्राफी भी दी जाए। उनका मानना है कि इतने लंबे समय के डेटा के विश्लेषण से किसी भी संभावित अनियमितता का पता लगाया जा सकता है।

  3. चुनाव आयोग को चेतावनी: राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के अधिकारियों को भी आगाह करते हुए कहा कि वे संविधान पर हमला कर रहे हैं, और उन्हें इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। उनका यह बयान चुनाव आयोग पर सीधा दबाव बनाने की कोशिश है ताकि वह अपनी कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता लाए।

ये माँगें सिर्फ चुनावी हार-जीत से जुड़ी नहीं हैं, बल्कि ये भारत के लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने से जुड़ी हुई हैं। चुनावी डेटा तक पहुँच न केवल राजनीतिक दलों के लिए, बल्कि शोधकर्ताओं, मीडिया और आम जनता के लिए भी महत्वपूर्ण है ताकि वे चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन कर सकें।

 

EVM और डेटा विवाद का इतिहास

EVM (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर विवाद भारत में नया नहीं है। कई राजनीतिक दल समय-समय पर इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते रहे हैं। हालांकि, चुनाव आयोग हमेशा से यह दावा करता रहा है कि EVM पूरी तरह से सुरक्षित और tamper-proof हैं। इस विवाद का एक महत्वपूर्ण पहलू EVM के डेटा तक पहुँच का भी रहा है। विरोधी दल अक्सर यह मांग करते रहे हैं कि उन्हें EVM के डेटा, जैसे कि मतदान की संख्या और मतदान के समय का विस्तृत डेटा दिया जाए, ताकि वे इसका मिलान कर सकें।

राहुल गांधी की ये नई माँगें इस पुराने विवाद को एक नए स्तर पर ले जाती हैं। वह सिर्फ EVM पर सवाल नहीं उठा रहे, बल्कि उस पूरे डेटा इकोसिस्टम पर सवाल उठा रहे हैं जो चुनाव आयोग द्वारा प्रबंधित किया जाता है। उनका यह कदम डेटा-संचालित विश्लेषण (data-driven analysis) के युग में चुनावी राजनीति के महत्व को भी दर्शाता है।

निष्कर्ष: लोकतंत्र की पारदर्शिता और भविष्य की राह

राहुल गांधी का यह कदम भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। यह न सिर्फ चुनाव आयोग पर दबाव डालता है कि वह अपनी प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाए, बल्कि यह मतदाताओं को भी चुनाव प्रणाली के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है। चुनावी पारदर्शिता किसी भी मजबूत लोकतंत्र की नींव है, और अगर इस पर सवाल उठते हैं, तो पूरे सिस्टम पर ही सवाल उठते हैं।

भविष्य में, यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग राहुल गांधी की मांगों पर कैसे प्रतिक्रिया देता है। क्या वह डेटा प्रदान करेगा? क्या वह अपनी कार्यप्रणाली में और अधिक पारदर्शिता लाएगा? या फिर वह इन मांगों को खारिज कर देगा? इन सभी सवालों का जवाब ही यह तय करेगा कि भारतीय लोकतंत्र किस दिशा में आगे बढ़ेगा। एक बात तो तय है कि यह बहस अभी खत्म नहीं होगी, और आने वाले समय में चुनावी डेटा और पारदर्शिता लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण मांगों में से एक बन जाएगी।