वोट चोरी पर संग्राम: विपक्ष का मार्च, सरकार का पलटवार
विपक्ष ने राहुल गांधी के नेतृत्व में 'वोट चोरी' और 'SIR' के खिलाफ संसद से चुनाव आयोग तक मार्च निकाला। जानें क्या हैं विपक्ष के आरोप, सरकार का जवाब और इस पूरे मामले के पीछे की सियासत। यह विरोध प्रदर्शन क्यों हुआ, क्या है वोटर लिस्ट में धांधली का दावा, और किरेन रिजिजू ने इस पर क्या कहा, विस्तार से पढ़ें। Opposition protest over 'vote chori' and 'SIR' led by Rahul Gandhi, the allegations, and the government's rebuttal

संसद से सड़क तक 'वोट चोरी' का संग्राम: विपक्ष का जोरदार प्रदर्शन
हाल के राजनीतिक परिदृश्य में, विपक्ष के 'इंडिया' गठबंधन ने एक बार फिर अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए देश की राजधानी में एक बड़ा विरोध मार्च निकाला। यह मार्च न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना रहा, बल्कि इसने भारतीय लोकतंत्र की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की अगुवाई में, 'इंडिया' ब्लॉक के सैकड़ों सांसदों ने संसद भवन से निकलकर चुनाव आयोग के मुख्यालय तक विरोध मार्च किया। इस मार्च का मुख्य उद्देश्य 'वोट चोरी' और बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण, जिसे संक्षेप में 'SIR' (Special Intensive Revision) कहा जा रहा है, के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराना था। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर से सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच की खाई को गहरा कर दिया है।
विरोध प्रदर्शन की वजह: 'वोट चोरी' और SIR
विपक्ष का आरोप है कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों और कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में बड़े पैमाने पर 'वोट चोरी' या चुनावी धांधली हुई है। राहुल गांधी, जिन्होंने खुद इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है, ने एक विस्तृत प्रेजेंटेशन के जरिए अपने दावों को पुख्ता करने की कोशिश की है। उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग और सत्ताधारी दल भाजपा की मिलीभगत से यह 'अपराध' अंजाम दिया जा रहा है। उनके द्वारा पेश किए गए 'सबूतों' में कुछ प्रमुख बिंदु थे:
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फर्जी और डुप्लीकेट वोटर: राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि कई मतदाता ऐसे हैं जिनके नाम एक से ज्यादा बार वोटर लिस्ट में शामिल हैं, और कई जगह तो एक ही व्यक्ति के कई वोटर कार्ड भी मिले हैं।
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गलत पते और बल्क वोटर: उन्होंने ऐसे उदाहरण दिए जहां एक ही पते पर 50 से 80 मतदाताओं के नाम दर्ज थे, जबकि मौके पर जाकर जांच करने पर पता चला कि वहां कोई रहता ही नहीं था।
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फोटो और फॉर्म 6 का दुरुपयोग: विपक्ष के अनुसार, मतदाता सूची में 4,132 मतदाताओं की या तो फोटो थी ही नहीं, या फिर इतनी छोटी थी कि पहचान करना मुश्किल था। इसके अलावा, नए मतदाताओं को जोड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले फॉर्म 6 का गलत इस्तेमाल कर 70 से 95 साल के बुजुर्गों को भी फर्स्ट टाइम वोटर बना दिया गया।
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SIR पर सवाल: राहुल गांधी ने बिहार में चल रहे 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन' (SIR) को 'संस्थागत चोरी' करार दिया। विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के तहत, खास तौर पर गरीब और वंचित तबके के लाखों मतदाताओं के नाम जानबूझकर वोटर लिस्ट से हटाए जा रहे हैं, ताकि चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जा सके।
राहुल गांधी के इन आरोपों को अन्य विपक्षी नेताओं जैसे अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का भी पूरा समर्थन मिला। मार्च के दौरान, अखिलेश यादव को बैरिकेड पर चढ़ते हुए देखा गया, जबकि कई अन्य सांसदों ने तख्तियां लेकर विरोध जताया। बाद में, पुलिस ने इन सभी सांसदों को हिरासत में ले लिया, हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।
किरेन रिजिजू और सरकार का कड़ा जवाब
विपक्ष के इन आरोपों पर सरकार की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने विपक्ष के विरोध को 'लोकतंत्र का मजाक' बताया और उन पर संवैधानिक संस्थाओं, खासकर चुनाव आयोग, की विश्वसनीयता पर हमला करने का आरोप लगाया। किरेन रिजिजू ने कहा:
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'निराधार और बेबुनियाद आरोप': रिजिजू ने कहा कि राहुल गांधी के आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद हैं और वह सिर्फ हार की हताशा में ऐसे बयान दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर विपक्ष के पास कोई ठोस सबूत हैं, तो उन्हें संसद में हंगामा करने के बजाय अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए।
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कानून के तहत चर्चा संभव: उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार संसद में किसी भी मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है, बशर्ते वह नियमों के तहत हो। लेकिन, 'SIR' जैसी प्रक्रिया पर चर्चा नहीं हो सकती, क्योंकि यह एक संवैधानिक निकाय (चुनाव आयोग) का काम है और इसमें सरकार का कोई सीधा दखल नहीं होता।
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हार की बौखलाहट: भाजपा के अन्य नेताओं ने भी विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि जब चुनाव के नतीजे उनके पक्ष में आते हैं, तो वे चुनाव आयोग की तारीफ करते हैं, लेकिन जब वे हारते हैं तो उसी संस्था पर आरोप लगाते हैं। यह उनकी 'चुनिंदा नाराजगी' को दर्शाता है।
राजनीतिक निहितार्थ और भविष्य की रणनीति
यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ 'वोट चोरी' के आरोपों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके गहरे राजनीतिक निहितार्थ भी थे। यह मार्च 'इंडिया' ब्लॉक के लिए एक शक्ति प्रदर्शन था, जिसने बिखरे हुए विपक्ष को फिर से एक मंच पर लाने का काम किया। खासकर, लोकसभा चुनाव के बाद जब विपक्ष में थोड़ी निष्क्रियता देखी जा रही थी, तो इस मार्च ने उन्हें सक्रिय कर दिया है।
राहुल गांधी ने इस अभियान के जरिए न केवल 'वोट चोरी' का मुद्दा उठाया है, बल्कि यह भी संकेत दिया है कि उनकी पार्टी और गठबंधन भविष्य में भी ऐसे मुद्दों पर सरकार को घेरना जारी रखेगा। उन्होंने एक वेब पोर्टल और सोशल मीडिया अभियान भी शुरू किया है, जिसके जरिए आम जनता से 'वोट चोरी' के खिलाफ समर्थन मांगा जा रहा है।
कुल मिलाकर, यह घटनाक्रम भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जहां विपक्ष लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई बता रहा है, वहीं सरकार इसे अपनी हार छिपाने की विपक्ष की कोशिश बता रही है। इस टकराव का अंतिम परिणाम चाहे जो भी हो, इसने चुनाव आयोग, राजनीतिक पारदर्शिता और लोकतंत्र के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब आने वाले समय में देश को देना होगा।