परभणी हिरासत में मौत: सुप्रीम कोर्ट का FIR दर्ज करने का निर्देश, पुलिस जवाबदेही पर उठे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने परभणी में कथित हिरासत में मौत के मामले में पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि जांच के आधार पर नाम जोड़े जा सकते हैं। पुलिस जवाबदेही और हिरासत में हिंसा पर उठे गंभीर सवाल।

Jul 31, 2025 - 23:52
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परभणी हिरासत में मौत: सुप्रीम कोर्ट का FIR दर्ज करने का निर्देश, पुलिस जवाबदेही पर उठे सवाल
कानून का राज बहाल: परभणी हिरासत में मौत मामले में सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख, पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश

नई दिल्ली: न्यायपालिका ने एक बार फिर कानून के शासन और पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप किया है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के परभणी में कथित हिरासत में मौत के एक संवेदनशील मामले में सख्त रुख अपनाते हुए, स्थानीय पुलिस को तत्काल प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने का निर्देश दिया है। यह निर्देश मृतक के परिवार को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और हिरासत में हुई मौतों जैसे गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों पर भी प्रकाश डालता है।

यह मामला 22 वर्षीय आकाश उर्फ शुभम उर्फ बापू नामक एक व्यक्ति की हिरासत में हुई मौत से जुड़ा है, जिसकी मां नर्मदाबाई तेली ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई थी। उनकी याचिका में आरोप लगाया गया था कि उनके बेटे की मौत पुलिस हिरासत में यातना के कारण हुई थी, और पुलिस ने उनके आरोपों के बावजूद हत्या का मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया था।

मामले की पृष्ठभूमि: बाइक चोरी का संदिग्ध और रहस्यमय मौत

यह दुखद घटना अगस्त 2023 की है। परभणी पुलिस ने आकाश को एक बाइक चोरी के मामले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था। हालांकि, 25 अगस्त को पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के दो दिन बाद, 27 अगस्त, 2023 को उसकी मौत हो गई। पुलिस ने दावा किया कि आकाश की मौत रहस्यमय परिस्थितियों में हुई, जबकि उसके परिवार ने शुरू से ही आरोप लगाया कि पुलिस हिरासत में उसे बेरहमी से प्रताड़ित किया गया था।

शुरुआती जांच में, पुलिस ने एक आकस्मिक मृत्यु रिपोर्ट (Accidental Death Report - ADR) दर्ज की। हालांकि, परिवार के लगातार विरोध और आरोपों के बाद, पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया, लेकिन हत्या का नहीं। इस मामले में पुलिस अधिकारियों का नाम भी शामिल नहीं किया गया था, जिससे परिवार में न्याय की उम्मीद धूमिल हो रही थी।

मृतक की मां नर्मदाबाई तेली ने हार नहीं मानी। उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने पुलिस को परिवार की शिकायत पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया। लेकिन हाई कोर्ट के निर्देश के बावजूद, पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज नहीं किया, जिससे परिवार को अंततः देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्देश: 'जांच के आधार पर नाम जोड़े जा सकते हैं'

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ ने मामले की गंभीरता और पुलिस के निष्क्रिय रवैये पर कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने आदेश दिया कि परभणी शहर पुलिस स्टेशन को तत्काल हत्या का मामला दर्ज करना चाहिए

सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक बात यह थी कि कोर्ट ने FIR दर्ज करने के तरीके पर एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया। पीठ ने कहा, "FIR बिना किसी देरी के दर्ज की जानी चाहिए, और आरोपी का नाम जांच के परिणाम के आधार पर बाद में जोड़ा जा सकता है।" यह निर्देश अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पुलिस की उस सामान्य रणनीति को दरकिनार करता है, जिसमें वे अपने ही कर्मियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से बचते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश से यह सुनिश्चित हो गया है कि जांच तत्काल शुरू हो और पुलिस को अपनी जांच के आधार पर निष्पक्ष रूप से जिम्मेदार लोगों की पहचान करनी पड़े।

सुप्रीम कोर्ट ने मृतक के परिवार के वकील द्वारा प्रस्तुत एक फॉरेंसिक रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया, जिसमें आकाश के शरीर पर चोटों ("contusions") और "आंतरिक चोटों" का उल्लेख था। यह रिपोर्ट परिवार के हिरासत में यातना के आरोपों की पुष्टि करती है, जिससे पुलिस पर लगे आरोप और भी गंभीर हो जाते हैं।

हिरासत में मौत: एक गंभीर मानवाधिकार मुद्दा

भारत में हिरासत में मौत एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है जो पुलिस जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल सैकड़ों लोगों की हिरासत में मौत हो जाती है। यह न केवल कानून के शासन का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतंत्र और न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को भी कमजोर करता है।

पुलिस हिरासत का उद्देश्य पूछताछ और जांच करना होता है, न कि प्रतिशोध या यातना देना। हिरासत में हिंसा को अक्सर 'तीसरी डिग्री' पूछताछ का हिस्सा माना जाता है, जो पूरी तरह से अवैध है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के इस तरह के सख्त निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि पुलिस बल कानून के दायरे में रहकर काम करे और अपराधियों के साथ-साथ नागरिकों के मानवाधिकारों का भी सम्मान करे।

परभणी का यह मामला एक बार फिर से इस बात पर जोर देता है कि पुलिस को जवाबदेह ठहराना कितना महत्वपूर्ण है, खासकर जब वे खुद कानून का उल्लंघन करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से यह सुनिश्चित हो गया है कि इस मामले में न्याय की उम्मीद बची रहे।

जांच और आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, परभणी पुलिस को अब हत्या का मामला दर्ज करना होगा और जांच शुरू करनी होगी। इस जांच की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए, संभवतः किसी उच्च-स्तरीय पुलिस अधिकारी के तहत एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया जा सकता है, जैसा कि अक्सर ऐसे मामलों में होता है।

जांच में निम्नलिखित कदम शामिल होंगे:

  • FIR की पुनः समीक्षा: पुलिस को अब हत्या के आरोप को शामिल करते हुए FIR दर्ज करनी होगी।

  • फॉरेंसिक साक्ष्य: फॉरेंसिक रिपोर्ट का गहन विश्लेषण और किसी भी अतिरिक्त फॉरेंसिक साक्ष्य की जांच।

  • अधिकारियों की भूमिका: उन पुलिस अधिकारियों की पहचान करना जो आकाश की हिरासत में थे, और उनकी भूमिकाओं की जांच करना।

  • गवाहों के बयान: मृतक के परिवार और अन्य संभावित गवाहों के बयान दर्ज करना।

  • जवाबदेही: जांच के आधार पर, जिम्मेदार अधिकारियों के नाम FIR में जोड़े जाएंगे और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू होगी।

यह प्रक्रिया न केवल आकाश के परिवार को न्याय दिलाएगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में कोई भी पुलिस अधिकारी हिरासत में हिंसा करने से पहले दो बार सोचे।