महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर पुलिस की नई SOP, नियम सख्त
महाराष्ट्र पुलिस ने लाउडस्पीकर के उपयोग को लेकर नई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है, जिसमें ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने पर जोर दिया गया है। राज्य भर की इकाइयों को भेजे गए इन सख्त नियमों का उद्देश्य ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करना और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना है।

छत्रपति संभाजीनगर: महाराष्ट्र पुलिस ने लाउडस्पीकर और सार्वजनिक संबोधन प्रणालियों के उपयोग को लेकर अपनी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को और कड़ा कर दिया है। राज्य भर की सभी पुलिस इकाइयों को इस संबंध में नए और सख्त दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिनका उद्देश्य ध्वनि प्रदूषण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करना और सार्वजनिक तथा सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखना है। यह कदम विभिन्न धार्मिक स्थलों, सार्वजनिक आयोजनों और निजी समारोहों में लाउडस्पीकर के अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग से उत्पन्न होने वाली शिकायतों और विवादों के मद्देनजर उठाया गया है।
पुलिस महानिदेशक (DGP) ने सभी जिला पुलिस अधीक्षकों और पुलिस आयुक्तों को इन संशोधित नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। यह नई SOP अदालती दिशानिर्देशों और ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियमों, 2000 का पालन सुनिश्चित करने पर केंद्रित है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाउडस्पीकर का उपयोग कानून के दायरे में हो।
नई SOP के प्रमुख बिंदु: क्या हैं बदले हुए नियम?
महाराष्ट्र पुलिस द्वारा जारी की गई नई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) में लाउडस्पीकर के उपयोग को विनियमित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं:
-
पूर्व अनुमति अनिवार्य: अब किसी भी लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली के उपयोग के लिए संबंधित पुलिस प्राधिकरण से पूर्व लिखित अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा। यह नियम किसी भी धार्मिक स्थल, त्योहार, राजनीतिक रैली, सामाजिक समारोह या निजी कार्यक्रम पर लागू होगा। बिना अनुमति के लाउडस्पीकर का उपयोग अवैध माना जाएगा और सख्त कार्रवाई की जाएगी।
-
अनुमति की अवधि: दी गई अनुमति की वैधता अवधि केवल एक वर्ष के लिए होगी। इसका मतलब है कि प्रत्येक वर्ष लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए नई अनुमति प्राप्त करनी होगी। यह प्रावधान अधिकारियों को प्रत्येक मामले की समीक्षा करने और ध्वनि प्रदूषण के स्तर को नियमित रूप से जांचने का अवसर देगा।
-
ध्वनि सीमा का पालन: सबसे महत्वपूर्ण बदलावों में से एक निर्धारित ध्वनि सीमा का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना है। SOP स्पष्ट रूप से बताती है कि लाउडस्पीकर का उपयोग करते समय ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियमों, 2000 में उल्लिखित निर्धारित ध्वनि सीमाओं का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
-
आवासीय क्षेत्रों में: दिन (सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक) 55 डेसिबल और रात (रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक) 45 डेसिबल।
-
वाणिज्यिक क्षेत्रों में: दिन में 65 डेसिबल और रात में 55 डेसिबल।
-
औद्योगिक क्षेत्रों में: दिन में 75 डेसिबल और रात में 70 डेसिबल।
-
शांत क्षेत्रों (अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों के पास) में: दिन में 50 डेसिबल और रात में 40 डेसिबल। रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर का उपयोग केवल बंद परिसर जैसे सभागारों, सामुदायिक हॉलों या बैंक्वेट हॉलों में ही अनुमेय होगा और वह भी राज्य सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार।
-
उपयोग का समय और स्थान: SOP यह भी स्पष्ट करती है कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर का उपयोग आमतौर पर प्रतिबंधित रहेगा, सिवाय आपातकालीन सेवाओं या कुछ विशेष अनुमतियों के। इसके अतिरिक्त, संवेदनशील क्षेत्रों जैसे अस्पतालों, स्कूलों और अदालतों के 100 मीटर के दायरे में लाउडस्पीकर का उपयोग पूर्णतः प्रतिबंधित रहेगा।
-
जागरूकता और प्रवर्तन: पुलिस इकाइयों को न केवल नियमों को लागू करने, बल्कि जनता और संबंधित आयोजकों के बीच इन दिशानिर्देशों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का भी निर्देश दिया गया है। उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम और ध्वनि प्रदूषण नियमों के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी, जिसमें जुर्माना और उपकरण जब्त करना शामिल हो सकता है।
-
तकनीकी उपाय: पुलिस को ध्वनि स्तर को मापने के लिए साउंड मीटर (Sound Meter) जैसे आवश्यक उपकरणों का उपयोग करने और उल्लंघनकर्ताओं की पहचान करने के लिए तकनीकी साक्ष्य एकत्र करने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाएगा
पृष्ठभूमि और आवश्यकता: क्यों उठाए गए ये कदम?
महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर का मुद्दा पिछले कुछ वर्षों से एक संवेदनशील और विवादास्पद विषय रहा है। विभिन्न धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर के उपयोग को लेकर अक्सर शिकायतें आती रही हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ कई बार सांप्रदायिक तनाव भी पैदा हुआ है।
-
अदालती आदेशों का पालन: सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर सख्त दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश नागरिकों के शांत वातावरण में रहने के अधिकार और ध्वनि प्रदूषण से मुक्त वातावरण के अधिकार पर जोर देते हैं। महाराष्ट्र पुलिस की यह नई SOP इन्हीं अदालती आदेशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है।
-
सार्वजनिक शिकायतें: नागरिकों द्वारा लगातार ध्वनि प्रदूषण की शिकायतें दर्ज की जाती रही हैं, विशेष रूप से परीक्षा के मौसम के दौरान, या अस्पतालों और आवासीय क्षेत्रों के पास। लाउडस्पीकर का अत्यधिक उपयोग नींद में खलल डालता है, स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है और छात्रों की पढ़ाई में बाधा डालता है।
-
सांप्रदायिक सौहार्द: कुछ मौकों पर लाउडस्पीकर के मुद्दे ने विभिन्न समुदायों के बीच टकराव को जन्म दिया है। ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ, पुलिस का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य विभिन्न समुदायों के बीच शांति और सौहार्द बनाए रखना भी है। नई SOP इस पहलू को संबोधित करने का एक प्रयास है।
-
स्वास्थ्य प्रभाव: अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण न केवल सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है, बल्कि तनाव, रक्तचाप में वृद्धि और नींद न आने जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म देता है। यह बच्चों और बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से हानिकारक है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
हालांकि, इन सख्त नियमों को लागू करना पुलिस और प्रशासन के लिए एक चुनौती भरा कार्य होगा।
-
प्रवर्तन में निरंतरता: यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि नियम केवल कागजों पर न रहें, बल्कि पूरे राज्य में समान रूप से और लगातार लागू किए जाएं। अक्सर देखा जाता है कि ऐसे नियम कुछ समय के लिए सख्ती से लागू होते हैं, फिर उनमें ढील आ जाती है।
-
जन जागरूकता और सहयोग: नियमों की सफलता के लिए जनता का सहयोग और नियमों के प्रति जागरूकता आवश्यक है। पुलिस को नियमों को लागू करने से पहले व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता होगी।
-
तकनीकी क्षमता: ध्वनि स्तर को सटीक रूप से मापने के लिए पर्याप्त साउंड मीटर और प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता होगी।
-
राजनीतिक और सामाजिक दबाव: धार्मिक और सामाजिक आयोजनों के दौरान नियमों में छूट देने के लिए अक्सर राजनीतिक और सामाजिक दबाव होता है। पुलिस को बिना किसी भेदभाव के इन नियमों को लागू करने की चुनौती का सामना करना होगा।
राज्य सरकार और पुलिस का यह कदम सराहनीय है, क्योंकि यह नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने और ध्वनि प्रदूषण के गंभीर परिणामों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह SOP महाराष्ट्र को एक शांत और अधिक सामंजस्यपूर्ण समाज बनाने में मदद कर सकती है, जहां विभिन्न आयोजन और धार्मिक प्रथाएं दूसरों को परेशान किए बिना शांतिपूर्वक संपन्न हो सकें।