भारतीय दवाओं पर ट्रंप के टैरिफ की धमकी: अमेरिका के लिए भारी पड़ेगा ये कदम?
अमेरिका में भारतीय दवाओं पर संभावित टैरिफ की धमकी ने चिंता बढ़ा दी है। इस लेख में जानें कैसे भारत, अमेरिका के लिए 'दुनिया की फार्मेसी' है और अगर भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगा तो अमेरिकी उपभोक्ताओं पर इसका क्या असर होगा।

जब से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की है, भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ गया है। यह टैरिफ, जो 27 अगस्त से प्रभावी होना है, भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्रों, जैसे कपड़ा, रत्न और आभूषण पर असर डालेगा। हालाँकि, इस बार एक महत्वपूर्ण क्षेत्र, फार्मास्यूटिकल उद्योग, को अस्थायी रूप से इस शुल्क वृद्धि से छूट मिली है, लेकिन इस पर भी तलवार लटकी हुई है। इस फैसले ने फार्मास्युटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (Pharmexcil) को अपनी बात रखने का मौका दिया है, जिसने चेतावनी दी है कि भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाना अमेरिका के लिए ही नुकसानदेह साबित होगा।
फार्मेक्सिल का कहना है कि भारतीय फार्मा उद्योग अमेरिका के लिए सिर्फ एक व्यापारिक भागीदार नहीं, बल्कि लाखों अमेरिकियों के लिए सस्ती और जीवन-रक्षक दवाओं का एकमात्र विश्वसनीय स्रोत है। अगर भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाया जाता है, तो इसकी कीमत सीधे तौर पर अमेरिकी उपभोक्ताओं को चुकानी पड़ेगी, जिससे उनके लिए दवाएं खरीदना और भी मुश्किल हो जाएगा। यह एक ऐसा मुद्दा है जो सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि सीधे-सीधे जन स्वास्थ्य और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है।
क्यों है भारतीय फार्मा उद्योग अमेरिका के लिए इतना महत्वपूर्ण?
भारतीय फार्मा उद्योग को 'दुनिया की फार्मेसी' के रूप में जाना जाता है, और इसका कारण स्पष्ट है:
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जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति: अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली 40% से अधिक जेनेरिक दवाएं भारत से आती हैं। इन दवाओं में कैंसर, पुरानी बीमारियों और संक्रामक रोगों के लिए महत्वपूर्ण उपचार शामिल हैं।
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लागत-प्रभावशीलता: भारतीय कंपनियाँ कम लागत पर जेनेरिक दवाएं बनाती हैं, जिससे अमेरिका में दवाओं की कीमतें नियंत्रण में रहती हैं। ये कंपनियाँ बहुत कम मार्जिन पर काम करती हैं, इसलिए अगर टैरिफ लगाया जाता है तो उसकी लागत सीधे उपभोक्ताओं को हस्तांतरित हो जाएगी।
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उच्च गुणवत्ता और मानकों का पालन: भारत में 700 से अधिक अमेरिकी FDA-अनुमोदित सुविधाएँ हैं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि यहाँ बनने वाली दवाएं सख्त गुणवत्ता मानकों को पूरा करती हैं। फार्मा उद्योग अपनी कमाई का 12% से अधिक अनुपालन और अनुसंधान में फिर से निवेश करता है, जो गुणवत्ता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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इंफ्रास्ट्रक्चर: फार्मेक्सिल के अध्यक्ष नामित जोशी ने कहा कि अमेरिका को भारत के फार्मा इंफ्रास्ट्रक्चर की बराबरी करने में कम से कम 3 से 5 साल लगेंगे। इतने बड़े पैमाने पर विनिर्माण क्षमता, लागत-प्रभावशीलता और कुशल जनशक्ति को रातोंरात बनाना संभव नहीं है।
इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (IPA) के महासचिव सुदर्शन जैन ने भी इस बात पर जोर दिया कि जेनेरिक दवाएं अमेरिका में किफायती स्वास्थ्य सेवा के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि इन दवाओं की निरंतर उपलब्धता रोगी देखभाल के लिए महत्वपूर्ण है, और भारत-अमेरिका की साझेदारी दवा आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
टैरिफ से अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान
भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाने से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एक अनुमान के मुताबिक, इससे अमेरिका में दवाओं की कीमतें 20-25% तक बढ़ सकती हैं, जो विशेष रूप से उन लोगों के लिए एक बड़ा बोझ होगा जो पुरानी बीमारियों के लिए नियमित रूप से दवाओं का सेवन करते हैं।
ट्रंप प्रशासन ने इस मुद्दे पर 'ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट 1962' की धारा 232 के तहत एक जांच शुरू की है, जिसमें यह देखा जा रहा है कि क्या फार्मा आयात राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह जांच सिर्फ टैरिफ लगाने का एक बहाना है, और अमेरिका की वास्तविक निर्भरता को देखते हुए, वे इस पर कोई कठोर कदम उठाने से बच सकते हैं।
भारत की जवाबी रणनीति और भविष्य की राह
हालाँकि भारत सरकार ने इस मुद्दे पर आधिकारिक तौर पर बहुत सख्त रुख नहीं अपनाया है, लेकिन भारतीय फार्मा उद्योग इस खतरे से निपटने की तैयारी कर रहा है। कुछ कंपनियों ने अमेरिका में अपने संयंत्रों में उत्पादन बढ़ाने की योजना बनाई है, ताकि वे टैरिफ से बच सकें। इसके अलावा, भारतीय निर्यातक यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे वैकल्पिक बाजारों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, ताकि वे अमेरिकी बाजार पर अपनी निर्भरता कम कर सकें।
यह पूरा घटनाक्रम भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में तनाव को दर्शाता है, लेकिन यह भारत के लिए एक अवसर भी प्रदान करता है। यह भारत को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने और वैश्विक बाजारों में अपनी स्थिति को और भी मजबूत करने के लिए प्रेरित करेगा।