भारत का नया रुख: इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में चीनी निवेश और सहयोग को मिलेगी फ्लेक्सिबिलिटी
भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण (Electronics Manufacturing) को बढ़ावा देने के लिए चीनी कंपनियों के साथ घरेलू कंपनियों के सहयोग के प्रति लचीला रुख अपना रही है। एक सरकारी सूत्र ने इस नीति में बदलाव की जानकारी दी, यह देखते हुए कि वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में चीन की बड़ी हिस्सेदारी है। डिक्सन टेक्नोलॉजीज (Dixon Technologies) और वीवो (Vivo) जैसे उदाहरणों के साथ जानें भारत की नई Foreign Investment नीति और उसके निहितार्थ।

नई दिल्ली, भारत: भारत सरकार, देश के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र को आत्मनिर्भर (self-reliant) और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, चीनी कंपनियों के साथ घरेलू कंपनियों के सहयोग के प्रति एक अधिक व्यावहारिक और लचीला रुख अपना रही है। एक उच्च पदस्थ सरकारी सूत्र ने इस नीतिगत बदलाव की पुष्टि की है, जो भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद आर्थिक वास्तविकताओं को स्वीकार करने का संकेत देता है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब भारत 'मेक इन इंडिया' (Make in India) पहल के तहत घरेलू विनिर्माण को अभूतपूर्व बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है।
वैश्विक वास्तविकता: चीन की विनिर्माण में अग्रणी भूमिका
सरकारी सूत्र ने इस लचीलेपन के पीछे के प्रमुख कारण पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि वैश्विक स्तर पर, लगभग 60% इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण चीन में होता है। यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसे आसानी से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की जटिल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को देखते हुए, चीन के साथ किसी न किसी स्तर का सहयोग भारत के विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र (manufacturing ecosystem) के विकास के लिए आवश्यक हो जाता है। बिना इस सहयोग के, भारत के लिए अपने घरेलू उत्पादन लक्ष्यों को तेजी से प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
यह स्वीकारोक्ति दर्शाती है कि भारत, अपने रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, भू-राजनीतिक संबंधों में जटिलताओं के बावजूद व्यावहारिकता को महत्व दे रहा है। लक्ष्य स्पष्ट है: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना और उसे एक मजबूत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना।
संबंधों में सुधार के संकेत और पर्यटक वीजा सुविधा
सूत्र ने यह भी संकेत दिया कि भारत और चीन के बीच संबंध धीरे-धीरे सुधर रहे हैं। इस सुधार का एक महत्वपूर्ण संकेत हाल ही में पर्यटक वीजा सुविधा का फिर से शुरू होना है। यह कदम दोनों देशों के बीच व्यापार और लोगों से लोगों के संपर्क को सुविधाजनक बनाने में मदद करेगा, जो आर्थिक सहयोग के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाता है। बेहतर द्विपक्षीय संबंध इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी अधिक विश्वास और सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण कुछ क्षेत्रों में चीनी निवेश पर कड़ा नियंत्रण जारी रहेगा, वहीं इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में, जहां चीन की तकनीकी और उत्पादन क्षमता अपरिहार्य है, एक अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है।
सहयोग के प्रमुख उदाहरण: डिक्सन और अन्य चीनी कंपनियां
इस लचीले रुख के कुछ ठोस उदाहरण भी सामने आए हैं। प्रमुख भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण सेवा (EMS) कंपनी डिक्सन टेक्नोलॉजीज (Dixon Technologies) को अपनी चीनी समकक्ष लॉन्गचीयर (Longcheer) के साथ एक संयुक्त उद्यम (joint venture) बनाने के लिए भारत सरकार से औपचारिक मंजूरी मिल गई है। यह मंजूरी दर्शाती है कि सरकार रणनीतिक साझेदारियों को सुगम बनाने के लिए तैयार है, जो भारत में उत्पादन को बढ़ा सकती हैं।
इसके अतिरिक्त, डिक्सन टेक्नोलॉजीज ने मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग होने वाले महत्वपूर्ण घटकों के विनिर्माण और बिक्री के लिए कई अन्य चीनी इलेक्ट्रॉनिक घटक कंपनियों के साथ अलग-अलग समझौते भी किए हैं। इनमें चोंगकिंग युहाई प्रिसिजन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड (Chongqing Yuhai Precision Manufacturing Co. Ltd.) और कुनशान क्यू टेक्नोलॉजी (Kunshan Q Technology) की भारतीय शाखा शामिल हैं। ये समझौते भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट इकोसिस्टम को मजबूत करने में मदद करेंगे, जो 'मेक इन इंडिया' के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
एक और महत्वपूर्ण विकास में, चीनी स्मार्ट डिवाइस निर्माता कंपनी वीवो (Vivo) के साथ डिक्सन का एक संयुक्त उद्यम भी निर्माणाधीन है। यह संयुक्त उद्यम भारत में वीवो के स्मार्टफोन उत्पादन को बढ़ावा देगा और स्थानीय विनिर्माण क्षमताओं को और मजबूत करेगा।
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र पर प्रभाव: विकास और आत्मनिर्भरता
भारत सरकार का यह लचीला रुख देश के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र के लिए कई महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है:
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उत्पादन में वृद्धि: चीनी कंपनियों के साथ सहयोग से भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों और घटकों के उत्पादन में तेजी आएगी, जिससे आयात पर निर्भरता कम होगी।
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प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: भारतीय कंपनियों को चीनी समकक्षों से नई विनिर्माण प्रक्रियाओं, प्रौद्योगिकियों और विशेषज्ञता सीखने का अवसर मिलेगा।
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रोजगार सृजन: घरेलू विनिर्माण क्षमता बढ़ने से बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होंगे, खासकर कुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों के लिए।
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आपूर्ति श्रृंखला का विविधीकरण: भले ही चीन से सहयोग हो रहा है, लेकिन भारत के भीतर विनिर्माण क्षमता बढ़ने से वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति श्रृंखला में भारत की स्थिति मजबूत होगी और कुछ हद तक चीन पर अत्यधिक निर्भरता कम होगी।
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लागत में कमी: स्थानीय विनिर्माण से इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की लागत कम हो सकती है, जिससे वे भारतीय उपभोक्ताओं के लिए अधिक किफायती बनेंगे।
आगे की राह: संतुलन और निगरानी
यह स्पष्ट है कि भारत एक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है – राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं और आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों के बीच, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की वास्तविकताओं के बीच। चीन के साथ सहयोग की अनुमति देते हुए भी, भारत सरकार इन निवेशों की सावधानीपूर्वक निगरानी करेगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे देश के रणनीतिक हितों के अनुरूप हों और सुरक्षा जोखिम पैदा न करें।
यह नीतिगत बदलाव दर्शाता है कि भारत वैश्विक आर्थिक संबंधों में अधिक व्यावहारिक और चयनात्मक दृष्टिकोण अपना रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में चीन की ताकत का लाभ उठाकर, भारत का लक्ष्य एक मजबूत घरेलू उद्योग का निर्माण करना है जो न केवल स्थानीय जरूरतों को पूरा कर सके, बल्कि अंततः वैश्विक बाजारों में भी प्रतिस्पर्धा कर सके। आने वाले समय में, यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नीति किस प्रकार भारत को अपने इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती है, और भारत-चीन आर्थिक संबंधों पर इसका क्या व्यापक प्रभाव पड़ता है।