मुंबई की हवा में घुला ज़हर: प्रदूषण की सीमाएं पार, गहराती चिंता

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई के कई इलाकों में वायु प्रदूषण सुरक्षित सीमा को पार कर गया है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ बढ़ गई हैं। निर्माण कार्य, वाहनों का धुआँ और मौसमी बदलाव इसके प्रमुख कारण हैं। (According to a new report, air pollution in many areas of Mumbai has crossed safe limits, raising health concerns. Construction, vehicular emissions, and climatic changes are the main causes.)

Jul 17, 2025 - 19:44
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मुंबई की हवा में घुला ज़हर: प्रदूषण की सीमाएं पार, गहराती चिंता
मुंबई की हवा में घुला ज़हर: कई इलाकों में प्रदूषण की सुरक्षित सीमाएं पार, गहराती चिंता

मुंबई: भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई, जो अपनी तटीय हवाओं और समुद्री परिदृश्य के लिए जानी जाती है, अब तेजी से बिगड़ती वायु गुणवत्ता की चुनौती का सामना कर रही है। हाल ही में आई एक राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार, शहर के कई हॉटस्पॉट में वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित सुरक्षित सीमा को पार कर गया है, जिससे मुंबईवासियों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएं बढ़ गई हैं। भले ही पूरे मुंबई का औसत पीएम2.5 (PM2.5) स्तर राष्ट्रीय मानक से नीचे हो, लेकिन उपनगरीय और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।

यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने लंबे समय से शहर के बढ़ते वायु प्रदूषण के खतरों के प्रति आगाह किया है। मुंबई, जो पहले अक्सर दिल्ली जैसे उत्तर भारतीय शहरों की तुलना में बेहतर वायु गुणवत्ता का दावा करती थी, अब एक ऐसी हकीकत का सामना कर रही है जहां प्रदूषण एक मौसमी घटना न होकर साल भर की समस्या बन गया है।

प्रदूषण का स्तर और प्रभावित क्षेत्र

रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि मुंबई के भीतर के कई स्थान भारतीय राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (μg/m³) से अधिक पीएम2.5 सांद्रता दर्ज कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का वार्षिक मानक 5 μg/m³ है, जिसे लगभग सभी भारतीय शहर पार कर रहे हैं, मुंबई भी इसमें शामिल है। यह दर्शाता है कि भारतीय मानकों का पालन करने वाले शहर भी वैश्विक स्वास्थ्य दिशानिर्देशों के तहत गंभीर जोखिम में हैं।

मुंबई के कुछ सबसे अधिक प्रदूषित हॉटस्पॉट में देवनार, सायन, कांदिवली पूर्व, बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी), बोरीवली पूर्व, वर्ली, माज़गाँव, शिवाजी नगर, सेवरी और कुर्ला शामिल हैं। देवनार को विशेष रूप से सभी सूचीबद्ध तटीय स्थानों में सबसे अधिक प्रदूषित निगरानी स्थलों में से एक के रूप में चिह्नित किया गया है। कुछ क्षेत्रों जैसे अंधेरी पूर्व में चकाला और माज़गाँव में पीएम2.5 का दैनिक स्तर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की सीमा से दो से तीन गुना अधिक पाया गया है। शिवाजी नगर में पीएम10 (PM10) का स्तर भी खतरनाक रूप से बढ़ा हुआ है।

यह स्थिति मुंबई को चेन्नई, कोलकाता, विजयवाड़ा और पुडुचेरी जैसे अन्य प्रमुख तटीय शहरों की तुलना में अधिक प्रदूषित श्रेणी में रखती है, खासकर वर्ष के पहले छमाही में। कोलकाता में भी पीएम2.5 की उच्च सांद्रता वाले कई स्थान हैं, लेकिन मुंबई का प्रदूषण कई साइटों पर इसकी निरंतरता के लिए उल्लेखनीय है।

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण

मुंबई में वायु प्रदूषण के कई जटिल कारण हैं, जो परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं:

  1. निर्माण गतिविधियाँ: शहर में चल रहे बड़े पैमाने के निर्माण कार्य, विशेष रूप से मेट्रो परियोजनाएं, वायु गुणवत्ता में गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक हैं। निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल और मलबे के कण हवा में मिल जाते हैं। बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) के दिशानिर्देशों का अक्सर ठीक से पालन नहीं होता है, जिससे धूल नियंत्रण के उपाय अपर्याप्त साबित होते हैं। रिपोर्टों से पता चलता है कि निर्माण गतिविधियों से कुल पार्टिकुलेट मैटर में 8% का योगदान होता है, और केवल मुंबई मेट्रो परियोजना ही शहर में निलंबित धूल का 3.2% के लिए जिम्मेदार है।

  2. वाहनों से उत्सर्जन: मुंबई में वाहनों की संख्या में पिछले दो दशकों में लगभग 300% की वृद्धि हुई है। इन वाहनों, विशेषकर पुराने डीजल वाहनों से निकलने वाला धुआँ और हानिकारक गैसें (जैसे पीएम2.5, पीएम10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड) वायुमंडल में मिलकर प्रदूषण को बढ़ाते हैं। सार्वजनिक परिवहन के विस्तार के बावजूद, निजी वाहनों पर निर्भरता अधिक है।

  3. औद्योगिक गतिविधियाँ: बंदरगाह क्षेत्रों के पास स्थित औद्योगिक इकाइयाँ और कुछ विशेष औद्योगिक प्रक्रियाएं भी वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान करती हैं। उदाहरण के लिए, भुलेश्वर और कालबादेवी जैसे क्षेत्रों में अवैध औद्योगिक इकाइयाँ, विशेष रूप से गहने बनाने वाली इकाइयाँ, जहरीला धुआँ छोड़ती हैं, जिन पर प्रभावी कार्रवाई की कमी रही है।

  4. कचरा जलाना: कई इलाकों, विशेष रूप से शिवाजी नगर जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में, कचरा जलाने की प्रथा हवा में हानिकारक प्रदूषक छोड़ती है, जिससे स्थानीय वायु गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित होती है।

  5. जलवायु संबंधी कारक: मुंबई की तटीय स्थिति आमतौर पर प्रदूषकों को फैलाने में मदद करती है, लेकिन कुछ मौसमी स्थितियाँ इस लाभ को नकार देती हैं। मॉनसून के बाद तटीय हवाएँ धीमी हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त, सह्याद्री पहाड़ियों और नवी मुंबई के पास मैदानी क्षेत्र के बीच महत्वपूर्ण तापमान अंतर से एक "भंवर" (vortex) प्रभाव पैदा होता है, जो हवा में मौजूद धूल को मुंबई की ओर धकेलता है। सतह की हवाओं के स्थिर होने से प्रदूषक लंबे समय तक शहर में फंसे रहते हैं, जिससे धुंध की स्थिति पैदा होती है। अतीत में "ला नीना" जैसी दुर्लभ मौसमी घटनाओं ने भी हवा की असामान्य रूप से शांत स्थिति पैदा की है, जिससे प्रदूषण का स्तर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।

स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव

बिगड़ती वायु गुणवत्ता का मुंबईवासियों के स्वास्थ्य पर सीधा और गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। पीएम2.5 जैसे छोटे कण फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और श्वसन प्रणाली को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। सर्वेक्षणों और चिकित्सा रिपोर्टों से पता चला है कि मुंबई में चार में से पांच परिवार में कम से कम एक सदस्य गले में खराश, खांसी और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं से पीड़ित है। आंखों में जलन, नाक बहना, सीने में जमाव, नींद न आना और सिरदर्द जैसी शिकायतें भी आम हो गई हैं।

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि खराब हवा मौजूदा श्वसन संबंधी बीमारियों (जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस) को बढ़ाती है और फेफड़ों की कार्यप्रणाली को कमजोर करती है, जिससे लोग वायरल संक्रमण और अन्य बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। कुछ डॉक्टरों ने तो अपने मरीजों को यदि संभव हो तो शहर छोड़ने की सलाह तक दी है, यह इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।

नियंत्रण के प्रयास और सुझाए गए उपाय

मुंबई में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं:

  • GRAP 4 मानदंड: बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने उन क्षेत्रों में GRAP 4 (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) के मानदंडों को लागू किया है जहाँ वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 200 से ऊपर चला गया है। इसके तहत सभी निजी और सार्वजनिक निर्माण कार्य तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया गया है।

  • धूल नियंत्रण उपाय: निर्माण स्थलों पर धूल को रोकने के लिए 25-35 फुट ऊंची हरे रंग की जूट की चादरों या टिन की चादरों से ढकने, दिन में कम से कम पांच बार पानी का छिड़काव करने (स्प्रिंकलर के माध्यम से), और एंटी-स्मॉग गन स्थापित करने जैसे उपाय सुझाए गए हैं और कुछ हद तक लागू भी किए जा रहे हैं।

  • प्रदूषण शमन योजना: बीएमसी ने "मुंबई वायु प्रदूषण शमन योजना (MAPMP)" शुरू की है, जिसके तहत धूल और प्रदूषण पैदा करने वाली प्रक्रियाओं के लिए एक सीमा निर्धारित की गई है, जिसके उल्लंघन पर कार्रवाई की जाएगी। लगभग 6,000 निर्माण स्थलों पर गतिविधियों की निगरानी के लिए वार्ड-वार टीमें स्थापित की जा रही हैं।

  • वाहनों पर नियंत्रण: वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में यातायात उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए सार्वजनिक परिवहन के विस्तार और बेहतर यातायात प्रबंधन पर जोर दिया गया है। पुराने डीजल वाहनों को शहर में प्रवेश करने से रोकने जैसे उपायों पर भी विचार किया जा रहा है।

  • औद्योगिक निगरानी: रिफाइनरियों, टाटा पावर प्लांट और राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स प्लांट जैसे उद्योगों के प्रदूषण नियंत्रण उपायों की नियमित जांच करने का भी प्रस्ताव है।

  • रीयल-टाइम निगरानी: वार्ड स्तर पर वास्तविक समय वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क स्थापित करने की सिफारिश की गई है, ताकि स्थानीय स्तर पर तत्काल कार्रवाई की जा सके।

  • शहरी नियोजन में एकीकरण: स्वच्छ वायु लक्ष्यों को शहर के मास्टर प्लानिंग और परिवहन अवसंरचना रणनीतियों में एकीकृत करने की भी सलाह दी गई है।