महाराष्ट्र में प्याज की कीमतों में भारी गिरावट: किसानों की बड़ी बैठक, 28 जुलाई को तय होगी आगे की रणनीति
महाराष्ट्र में प्याज की कीमतों में आई भारी गिरावट से किसान गहरे संकट में हैं। अपनी उपज का उचित मूल्य न मिलने से परेशान किसानों ने 28 जुलाई 2025 को एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है, जिसमें भविष्य की रणनीति पर विचार-विमर्श किया जाएगा और मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौंपने की तैयारी की जा रही है। यह लेख प्याज के गिरते दामों के कारणों, किसानों की मांगों और इस संकट से निपटने के संभावित उपायों पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करता है।

महाराष्ट्र, जो भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य है, इन दिनों अपने अन्नदाताओं के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया है। प्याज की कीमतों में आई भारी गिरावट ने किसानों को एक बार फिर गहरे आर्थिक संकट में धकेल दिया है। एक तरफ जहां उन्हें अपनी उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिल पा रहा है, वहीं दूसरी ओर बेमौसम बारिश ने उनकी बची-खुची उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। इसी गंभीर समस्या को लेकर महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक किसान संघ ने 28 जुलाई 2025 को एक अहम बैठक बुलाई है, जिसमें भविष्य की रणनीति तय की जाएगी और इस संकट से उबरने के लिए मुख्यमंत्री को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपने की तैयारी की जा रही है।
संकट की जड़ें: उत्पादन, मांग और नीतिगत उतार-चढ़ाव
प्याज की कीमतों में गिरावट कोई नई बात नहीं है, यह एक चक्रीय संकट है जिससे किसान दशकों से जूझ रहे हैं। हालांकि, हालिया गिरावट के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जिनमें निर्यात नीतियों में बदलाव, घरेलू बाजार में मांग से अधिक आपूर्ति और बेमौसम बारिश का प्रभाव प्रमुख है:
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उत्पादन में वृद्धि और अत्यधिक आपूर्ति: पिछले कुछ वर्षों में प्याज की बुआई का रकबा बढ़ा है। 2024-25 में यह रिकॉर्ड 6,51,965 हेक्टेयर तक पहुंच गया था, जबकि अकेले नासिक (जो देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक क्षेत्र है) में 2,90,136 हेक्टेयर रकबा था। उत्पादन बढ़ने से बाजार में प्याज की अत्यधिक आवक हुई है, खासकर खरीफ और रबी की फसलें लगभग एक ही समय पर बाजार में आ जाने से कीमतों पर दबाव पड़ा है।
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निर्यात शुल्क का प्रभाव: केंद्र सरकार द्वारा प्याज के निर्यात पर लगाए गए शुल्क ने किसानों की कमर तोड़ दी है। अक्टूबर 2023 में 40% का निर्यात शुल्क लगाया गया था, जिसे लोकसभा चुनाव के दौरान मई 2025 में घटाकर 20% कर दिया गया। हालांकि, इस तरह के बार-बार नीतिगत बदलावों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय प्याज की विश्वसनीयता को प्रभावित किया है। कई खाड़ी देशों, जो भारतीय प्याज के प्रमुख आयातक थे, ने धार्मिक-राजनीतिक एजेंडे और अनिश्चित नीतियों के कारण भारत से प्याज लेना बंद कर दिया है, जिससे निर्यात को बड़ा झटका लगा है।
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कम शेल्फ लाइफ: महाराष्ट्र में पैदा होने वाले लाल प्याज, खासकर सर्दियों की फसल की शेल्फ लाइफ (भंडारण क्षमता) बहुत कम होती है, लगभग 20 दिन। हवा में नमी के कारण यह जल्दी खराब हो जाता है, जिससे किसानों को इसे कम दाम पर भी तुरंत बेचना पड़ता है। यह निर्यात में भी बाधा डालता है, क्योंकि पश्चिमी बाजारों तक इसे पहुंचाना मुश्किल हो जाता है।
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बेमौसम बारिश की मार: मई 2025 की शुरुआत से महाराष्ट्र के कई हिस्सों में हुई मानसून-पूर्व और बेमौसम बारिश ने प्याज की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है। खेतों में कटी फसलें गीली हो गईं, और कई क्षेत्रों में खड़ी फसलें भी बर्बाद हो गईं। जिन किसानों के पास भंडारण की सुविधा नहीं है, उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यह बेमौसम बारिश कीमतों में और गिरावट का कारण बनी है।
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बढ़ती उत्पादन लागत: जलवायु परिवर्तन और मुद्रास्फीति के कारण प्याज की खेती की लागत में लगातार वृद्धि हुई है। किसानों का कहना है कि उन्हें प्रति क्विंटल प्याज की उत्पादन लागत ₹2000-₹2500 आती है, जबकि बाजार में उन्हें ₹300-₹500 प्रति क्विंटल जैसे बेहद कम दाम मिल रहे हैं। यह किसानों को प्रति एकड़ ₹20,000 तक का नुकसान पहुंचा रहा है।
किसानों की आवाज़: 28 जुलाई की अहम बैठक
गिरती कीमतों से त्रस्त किसानों की इस अहम बैठक की जानकारी महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक किसान संघ के संस्थापक अध्यक्ष भरत दिघोले ने दी है। उनकी अध्यक्षता में यह विशेष बैठक सोमवार, 28 जुलाई को दोपहर 2 बजे लासलगांव कृषि उत्पाद बाजार समिति (APMC) के प्याज बाजार में आयोजित की जाएगी। लासलगांव APMC एशिया का सबसे बड़ा प्याज थोक बाजार है और यहां होने वाली गतिविधियों का सीधा असर राष्ट्रीय कीमतों पर पड़ता है। संगठन के नासिक जिला अध्यक्ष जयदीप भदाणे और जिला युवा अध्यक्ष केदारनाथ नवले ने भी इस बैठक की पुष्टि की है।
इस बैठक में प्याज के बाजार मूल्य की गंभीर स्थिति की समीक्षा की जाएगी। किसान नेता अपनी उत्पादन लागत और हुए नुकसान की रूपरेखा तैयार करेंगे, ताकि सरकार के सामने प्रभावी ढंग से अपनी बात रख सकें। बैठक के मुख्य एजेंडे में निम्नलिखित मांगें शामिल हैं:
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निर्यात शुल्क हटाना: प्याज पर लगे 20% निर्यात शुल्क को तत्काल हटाने की मांग, ताकि निर्यात को बढ़ावा मिल सके और घरेलू कीमतों को स्थिरता मिल सके।
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न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): प्याज के लिए एक निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) या भावांतर योजना लागू करना, ताकि किसानों को उनकी लागत से कम दाम पर फसल न बेचनी पड़े।
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सरकारी खरीद और हस्तक्षेप: नैफेड (NAFED) और एनसीसीएफ (NCCF) जैसी सरकारी एजेंसियों द्वारा किसानों से उचित मूल्य पर प्याज की खरीद सुनिश्चित करना।
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भंडारण सुविधा: प्याज जैसी शीघ्र खराब होने वाली फसल के लिए बेहतर और सस्ती भंडारण सुविधाओं (जैसे कोल्ड स्टोरेज) का विकास, ताकि बेमौसम बारिश या अत्यधिक आपूर्ति के समय किसानों को तुरंत फसल बेचने पर मजबूर न होना पड़े।
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जागरूकता और डेटा: प्याज की खेती और बाजार से संबंधित सटीक जानकारी किसानों तक पहुंचाना, ताकि वे बुआई और कटाई का बेहतर निर्णय ले सकें।
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नुकसान भरपाई: बेमौसम बारिश या अन्य प्राकृतिक आपदाओं से हुए फसल नुकसान के लिए शीघ्र मुआवजा।
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आंदोलन की रणनीति: यदि सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो भविष्य के आंदोलनों की दिशा और रणनीति तय करना।