हाथियों के लिए जीवन रक्षक AI: कोयंबटूर में सफल हुई तकनीक
कोयंबटूर में रेलवे ट्रैक पर हाथियों की मौत को रोकने के लिए एक AI-आधारित चेतावनी प्रणाली (AI-based warning system) बेहद कारगर साबित हुई है। इस लेख में, हम इस तकनीक के कामकाज, इसके प्रभाव और वन्यजीव संरक्षण (wildlife conservation) में इसकी सफलता पर विस्तार से चर्चा करेंगे। जानें कैसे टेक्नोलॉजी और मानवीय प्रयास मिलकर प्रकृति और जीवन की रक्षा कर रहे हैं।

वन्यजीवों, खासकर हाथियों और ट्रेनों के बीच टकराव की घटनाएं भारत में एक गंभीर समस्या रही हैं। इन टकरावों से न केवल बहुमूल्य वन्यजीवों की जान जाती है, बल्कि यह रेलवे के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। हालांकि, तमिलनाडु के कोयंबटूर में एक अभिनव और सफल समाधान मिला है, जो इस समस्या का स्थायी हल प्रस्तुत करता है। वर्ल्ड एलिफेंट डे (World Elephant Day) के मौके पर मिली जानकारी के अनुसार, यहां स्थापित एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित चेतावनी प्रणाली ने 2,800 से अधिक हाथियों को रेलवे ट्रैक पार करने में सुरक्षित रूप से मदद की है।
कैसे काम करती है यह AI प्रणाली?
यह प्रणाली कोयंबटूर वन प्रभाग के मदुक्करई वन क्षेत्र में स्थापित की गई है। यह एक शुरुआती चेतावनी प्रणाली (early warning system) है, जिसका मुख्य उद्देश्य हाथियों को रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों से टकराने से बचाना है। यह प्रणाली कैमरे लगे टावरों की मदद से काम करती है, जिन्हें रेलवे ट्रैक के किनारों पर स्थापित किया गया है। इन कैमरों में थर्मल सेंसर भी लगे हुए हैं, जो रात के अंधेरे में भी जानवरों की गतिविधियों को स्पष्ट रूप से पहचान सकते हैं।
जब कोई हाथी या अन्य जंगली जानवर ट्रैक के पास आता है, तो AI-आधारित सिस्टम तुरंत इसकी पहचान कर लेता है और एक अलर्ट (alert) जारी करता है। यह अलर्ट तुरंत नियंत्रण और कमांड सेंटर को भेज दिया जाता है। इसके बाद, ट्रैक गश्त पर तैनात वन विभाग के कर्मचारी और रेलवे के अधिकारी तुरंत हरकत में आ जाते हैं।
प्रणाली की कार्यप्रणाली के मुख्य बिंदु:
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रियल-टाइम अलर्ट: सिस्टम हाथी के मूवमेंट का रियल-टाइम अलर्ट देता है, जिससे अधिकारियों को तुरंत कार्रवाई करने का मौका मिलता है।
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लोको पायलटों को सूचना: अलर्ट मिलने पर, आस-पास के रेलवे स्टेशनों के स्टेशन मास्टर और उस मार्ग से गुजरने वाली ट्रेनों के लोको पायलटों को सूचित किया जाता है।
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गति नियंत्रण: लोको पायलट को हाथी की उपस्थिति की जानकारी मिलने के बाद, वे ट्रेन की गति धीमी कर देते हैं, जिससे टकराव का खतरा टल जाता है।
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समन्वित प्रयास: वन विभाग और रेलवे अधिकारी, दोनों मिलकर इस प्रणाली को सफल बनाते हैं। एक समर्पित टीम दिन-रात ट्रैक पर गश्त करती है और AI के अलर्ट पर तुरंत प्रतिक्रिया देती है।
प्रभाव और सफलता के आंकड़े
यह प्रणाली फरवरी 2024 में शुरू की गई थी और तब से इसने शानदार परिणाम दिए हैं। वन विभाग के अनुसार, इस प्रणाली ने हाथियों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए 6,000 से अधिक अलर्ट जनरेट किए हैं। इसके अलावा, अन्य जंगली जानवरों जैसे गौर (gaur), हिरण, तेंदुआ (leopard) और यहां तक कि किंग कोबरा की गतिविधियों का पता लगाने के लिए 10,000 से अधिक अलर्ट जारी किए गए हैं।
जिला वन अधिकारी (District Forest Officer) एन. जयराज ने बताया कि इस प्रणाली के लागू होने के बाद से इस खंड में जंगली हाथियों के ट्रेनों से टकराने की कोई घटना नहीं हुई है। यह सफलता इस बात का प्रमाण है कि प्रौद्योगिकी और वन्यजीव संरक्षण मिलकर एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
वन्यजीव संरक्षण में तकनीकी क्रांति
कोयंबटूर में AI-आधारित प्रणाली की सफलता ने पूरे देश के लिए एक मॉडल पेश किया है। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने इस प्रणाली की सराहना की है और कहा है कि सरकार पूरे देश में रेलवे लाइनों के साथ-साथ हाथी गलियारों में ऐसी ही AI-आधारित चेतावनी प्रणालियों को लागू करने की योजना बना रही है। यह सिर्फ हाथियों के लिए ही नहीं, बल्कि बाघ (tigers) और अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए भी फायदेमंद होगा।
यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस आश्वासन का भी एक उदाहरण है, जिसमें उन्होंने मानव-पशु संघर्ष (human-animal conflict) जैसी समस्याओं से निपटने के लिए रिमोट सेंसिंग, भू-स्थानिक मानचित्रण (geospatial mapping) और AI के उपयोग पर जोर दिया था। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी इस उपलब्धि पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि यह दर्शाता है कि टेक्नोलॉजी और प्रतिबद्धता (commitment) मिलकर क्या हासिल कर सकते हैं।
भविष्य की योजनाएं और चुनौतियां
वन विभाग इस प्रणाली को और बेहतर बनाने की योजना बना रहा है। इसमें AI-आधारित प्रणाली की पूरक के रूप में ड्रोन (drones) का उपयोग करने की योजना भी शामिल है, ताकि रात के समय रेलवे लाइनों के बीच के अंधेरे क्षेत्रों में हाथियों और अन्य जानवरों की गतिविधियों पर 24/7 नजर रखी जा सके।
यह परियोजना न केवल वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है, बल्कि यह हाथी के व्यवहार, उनकी गतिविधियों और व्यक्तिगत हाथियों की प्रोफाइलिंग पर भी बहुमूल्य डेटा प्रदान करती है, जो भविष्य के संरक्षण प्रयासों और नीतियों के लिए महत्वपूर्ण है।
कोयंबटूर की यह सफलता कहानी दिखाती है कि अगर हम सही तकनीक और समर्पित प्रयासों का उपयोग करें, तो मानव और वन्यजीव एक-दूसरे के साथ सुरक्षित रूप से रह सकते हैं। यह पहल भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो देश के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को एक नई दिशा दे रही है। यह उम्मीद की किरण है कि आने वाले समय में देश के सभी संवेदनशील इलाकों में ऐसी ही प्रभावी प्रणालियां लागू की जाएंगी।