प्रत्यक्ष कर संग्रह में गिरावट: रिफंड बना कारण

वित्तीय वर्ष 2025 में नेट प्रत्यक्ष कर संग्रह 1.34% गिरकर ₹5.63 लाख करोड़ हुआ। रिफंड में 43.15% की भारी वृद्धि गिरावट का मुख्य कारण बनी। जानें कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत आयकर संग्रह की स्थिति। (Net direct tax collection dips 1.34% to ₹5.63 lakh crore in FY 2025. Sharp 43.15% rise in refunds is the main reason for the decline. Analysis of corporate and personal income tax collections.)

Jul 12, 2025 - 18:46
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प्रत्यक्ष कर संग्रह में गिरावट: रिफंड बना कारण
भारतीय अर्थव्यवस्था: नेट प्रत्यक्ष कर संग्रह में गिरावट, उच्च रिफंड बना मुख्य कारण

नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण अपडेट में, चालू वित्तीय वर्ष 2025 में शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह (Net Direct Tax Collection) में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। 12 जुलाई, 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह 1.34% गिरकर 5.63 लाख करोड़ रुपये हो गया है। यह गिरावट मुख्य रूप से आयकर विभाग द्वारा जारी किए गए रिफंड (refunds) में हुई भारी वृद्धि के कारण हुई है।

यह आंकड़ा एक जटिल आर्थिक परिदृश्य को दर्शाता है। जहां एक ओर सकल कर संग्रह (Gross Tax Collection) में वृद्धि जारी है, वहीं रिकॉर्ड स्तर के रिफंड ने शुद्ध संग्रह पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। यह स्थिति सरकार के वित्तीय स्वास्थ्य और बजट लक्ष्यों को लेकर नई चर्चाएं पैदा कर रही है।

सकल संग्रह में वृद्धि, शुद्ध संग्रह में गिरावट: आंकड़ों का विश्लेषण

जब हम कर संग्रह के आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं, तो सकल संग्रह और शुद्ध संग्रह के बीच अंतर को समझना महत्वपूर्ण है। सकल संग्रह कुल कर राजस्व है जो सरकार द्वारा एकत्र किया गया है, जबकि शुद्ध संग्रह सकल संग्रह में से वापस किए गए रिफंड को घटाने के बाद का आंकड़ा है।

आंकड़ों के अनुसार, 12 जुलाई तक सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह 6.20 लाख करोड़ रुपये रहा, जिसमें 6.27% की वृद्धि दर्ज की गई। यह आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर आर्थिक गतिविधि और कर आधार में वृद्धि का संकेत देते हैं। हालांकि, शुद्ध संग्रह में गिरावट का मुख्य कारण रिफंड में 43.15% की भारी वृद्धि है। इस अवधि में कुल 56,920 करोड़ रुपये के रिफंड जारी किए गए, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में काफी अधिक है।

यह वृद्धि आयकर विभाग द्वारा रिफंड प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और लंबित रिफंडों को तेजी से निपटाने के प्रयासों को दर्शाती है। हालांकि यह करदाताओं के लिए एक सकारात्मक कदम है, जिसने कर प्रशासन की दक्षता को बढ़ाया है, लेकिन इसका परिणाम शुद्ध कर संग्रह में कमी के रूप में सामने आया है।

कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत आयकर की स्थिति

प्रत्यक्ष कर संग्रह को मुख्य रूप से कॉर्पोरेट आयकर (CIT) और व्यक्तिगत आयकर (PIT) में विभाजित किया जाता है। इन दोनों क्षेत्रों के प्रदर्शन में अलग-अलग रुझान देखे गए हैं:

  1. कॉर्पोरेट आयकर (CIT): शुद्ध कॉर्पोरेट आयकर संग्रह में 5.61% की गिरावट दर्ज की गई है, जो 2.49 लाख करोड़ रुपये रहा। यह गिरावट चिंता का विषय हो सकती है, क्योंकि यह कॉर्पोरेट क्षेत्र के मुनाफे या कर भुगतान प्रक्रियाओं में संभावित चुनौतियों का संकेत दे सकती है।

  2. व्यक्तिगत आयकर (PIT): इसके विपरीत, व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 3.82% की महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है, जो 3.13 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। व्यक्तिगत आयकर में वृद्धि आमतौर पर रोजगार सृजन, वेतन वृद्धि और बेहतर कर अनुपालन (tax compliance) को दर्शाती है। यह वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के खपत-आधारित क्षेत्रों में सकारात्मक रुझान का संकेत है।

व्यक्तिगत आयकर संग्रह में वृद्धि ने कॉर्पोरेट कर संग्रह में गिरावट के प्रभाव को कुछ हद तक संतुलित किया है। हालांकि, कुल मिलाकर शुद्ध संग्रह में गिरावट यह दर्शाती है कि अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में कर संग्रह अपेक्षा से कम हो रहा है, या फिर रिफंड की प्रक्रिया इतनी प्रभावी हो गई है कि वह संग्रह के आंकड़ों पर हावी हो रही है।

रिफंड में वृद्धि: एक सकारात्मक संकेत या चिंता का विषय?

रिफंड में 43.15% की वृद्धि को दो तरीकों से देखा जा सकता है।

सकारात्मक दृष्टिकोण: यह आयकर विभाग की कार्यप्रणाली में सुधार और तकनीकी दक्षता का प्रमाण है। रिफंड को तेजी से जारी करना करदाताओं के लिए राहत की बात है और यह कर प्रणाली में विश्वास बढ़ाता है। जब करदाताओं को यह विश्वास होता है कि उनके रिफंड समय पर वापस मिल जाएंगे, तो वे कर अनुपालन के लिए अधिक प्रेरित होते हैं।

चिंता का दृष्टिकोण: शुद्ध संग्रह में गिरावट सरकारी राजस्व के लिए तत्काल चुनौती पेश करती है। सरकार को अपने व्यय को पूरा करने के लिए राजस्व की आवश्यकता होती है। यदि कर संग्रह उम्मीदों से कम रहता है, तो सरकार को या तो खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है या अधिक उधारी (borrowing) पर निर्भर रहना पड़ सकता है।

आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि रिफंड में वृद्धि एक अस्थायी कारक हो सकती है, क्योंकि यह लंबित रिफंडों को निपटाने का परिणाम है। हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह रुझान पूरे वित्तीय वर्ष में जारी रहता है।

बजट लक्ष्य और भविष्य की राह

सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए महत्वाकांक्षी कर संग्रह लक्ष्य निर्धारित किए हैं। शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में गिरावट इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह में एक चुनौती बन सकती है। सरकार को वित्तीय वर्ष के शेष महीनों में कर संग्रह को बढ़ावा देने के लिए उपाय करने होंगे।

विशेषज्ञों का कहना है कि आर्थिक विकास को बनाए रखने, कर आधार का विस्तार करने और कर अनुपालन में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। कॉर्पोरेट क्षेत्र में संग्रह में गिरावट का अध्ययन करना और यदि आवश्यक हो तो नीतियों में बदलाव करना भी महत्वपूर्ण होगा।

कुल मिलाकर, प्रत्यक्ष कर संग्रह के ये आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था की मिश्रित तस्वीर पेश करते हैं। व्यक्तिगत आयकर में वृद्धि अर्थव्यवस्था में मजबूत खपत और आय वृद्धि का संकेत देती है, जबकि कॉर्पोरेट कर संग्रह में गिरावट और उच्च रिफंड चुनौती बने हुए हैं।