Right to Disconnect Bill 2025: अब काम के बाद बॉस के कॉल-ईमेल से मिलेगी आजादी? लोकसभा में पेश हुआ बिल

लोकसभा में सुप्रिया सुले ने पेश किया 'Right to Disconnect Bill 2025'। जानें क्या है यह बिल, इसके प्रावधान और क्या कर्मचारियों को मिलेगी काम के घंटों के बाद कॉल-ईमेल से आजादी? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

Dec 6, 2025 - 20:44
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Right to Disconnect Bill 2025: अब काम के बाद बॉस के कॉल-ईमेल से मिलेगी आजादी? लोकसभा में पेश हुआ बिल
अब काम के बाद बॉस के कॉल और ईमेल से मिलेगी आजादी? लोकसभा में पेश हुआ 'राइट टू डिस्कनेक्ट' बिल

क्या आप भी उन लोगों में से हैं जिनका फोन ऑफिस से निकलने के बाद भी बजता रहता है? क्या डिनर टेबल पर या छुट्टियों के दौरान बॉस का ईमेल या मैसेज आपके सुकून में खलल डालता है? अगर हाँ, तो आपके लिए एक बेहद राहत भरी खबर संसद के गलियारों से आ रही है। भारतीय कर्मचारियों को काम के घंटों के बाद "ऑफिस से डिस्कनेक्ट" होने का कानूनी अधिकार दिलाने के लिए लोकसभा में एक महत्वपूर्ण बिल पेश किया गया है।

एनसीपी (NCP-SCP) सांसद सुप्रिया सुले ने शुक्रवार को लोकसभा में 'राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025' (Right to Disconnect Bill, 2025) पेश किया। यह एक प्राइवेट मेंबर बिल है, जिसका मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को तनावमुक्त जीवन और बेहतर वर्क-लाइफ बैलेंस (Work-Life Balance) प्रदान करना है।

आइए, विस्तार से जानते हैं कि इस बिल में क्या प्रावधान हैं, इसकी जरूरत क्यों पड़ी और अगर यह कानून बन गया तो भारत के कॉर्पोरेट जगत में क्या बदलाव आएंगे।

क्या है 'राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025'?

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, 'राइट टू डिस्कनेक्ट' का अर्थ है—काम खत्म होने के बाद दफ्तर के काम से पूरी तरह कट जाने का अधिकार। सुप्रिया सुले द्वारा पेश किए गए इस बिल में कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए कई कड़े प्रावधान किए गए हैं:

  1. कॉल-ईमेल का जवाब देना अनिवार्य नहीं: इस बिल के मुताबिक, आधिकारिक काम के घंटे (Official Work Hours) खत्म होने के बाद या छुट्टियों के दिन कर्मचारियों को अपने बॉस या कंपनी के किसी भी कॉल, ईमेल या मैसेज का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

  2. इंकार करने का अधिकार: कर्मचारी के पास यह कानूनी अधिकार होगा कि वह ऑफ-आवर्स (Off-hours) में आने वाले वर्क-रिलेटेड कम्युनिकेशंस को नजरअंदाज कर सके या उनका जवाब देने से मना कर दे। ऐसा करने पर उस पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Action) नहीं की जा सकती।

  3. कर्मचारी कल्याण प्राधिकरण (Employees' Welfare Authority): बिल में एक 'कर्मचारी कल्याण प्राधिकरण' के गठन का भी प्रस्ताव है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि कंपनियों में इस नियम का पालन हो रहा है या नहीं। यह प्राधिकरण कर्मचारियों की शिकायतों का निवारण भी करेगा।

भारत में इस कानून की जरूरत क्यों?

भारत में काम का कल्चर (Work Culture) पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बदला है। खासकर कोरोना महामारी के बाद 'वर्क फ्रॉम होम' और हाइब्रिड मॉडल ने घर और ऑफिस के बीच की लकीर को धुंधला कर दिया है।

  • 'ऑलवेज ऑन' कल्चर: स्मार्टफोन और लैपटॉप ने कर्मचारियों को 24x7 उपलब्ध रहने पर मजबूर कर दिया है। कई बॉस यह उम्मीद करते हैं कि कर्मचारी रात को 10 बजे भी ईमेल का रिप्लाई करे।

  • मानसिक तनाव और बर्नआउट: लगातार काम के दबाव और आराम न मिल पाने के कारण भारत में कर्मचारी बर्नआउट (Burnout) और मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं।

  • नारायण मूर्ति का बयान और बहस: हाल ही में इंफोसिस के संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति ने युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी, जिस पर देशभर में तीखी बहस छिड़ गई थी। एक तरफ ज्यादा काम करने की वकालत है, तो दूसरी तरफ सुप्रिया सुले का यह बिल कर्मचारियों के निजी समय (Personal Time) की वकालत करता है।

दुनिया के अन्य देशों में क्या स्थिति है?

'राइट टू डिस्कनेक्ट' की अवधारणा नई नहीं है। दुनिया के कई विकसित देश पहले ही इसे अपना चुके हैं:

  • फ्रांस (France): फ्रांस इस मामले में सबसे आगे है। वहां 2017 में ही 'El Khomri' कानून लागू किया गया था, जिसके तहत 50 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को ऐसे नियम बनाने होते हैं कि काम के बाद कर्मचारियों को डिस्टर्ब न किया जाए।

  • ऑस्ट्रेलिया (Australia): हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने भी कर्मचारियों को काम के बाद बॉस का फोन न उठाने का कानूनी अधिकार दिया है।

  • बेल्जियम, पुर्तगाल और स्पेन: इन देशों में भी कर्मचारियों के 'ऑफलाइन' रहने के अधिकार को लेकर सख्त नियम बनाए गए हैं।

सुप्रिया सुले का यह बिल भारत को भी इन प्रगतिशील देशों की कतार में खड़ा करने की एक कोशिश है।

प्राइवेट मेंबर बिल: क्या यह कानून बन पाएगा?

यहाँ यह समझना जरूरी है कि यह बिल एक 'प्राइवेट मेंबर बिल' (Private Member's Bill) है। संसद में जो बिल मंत्री नहीं, बल्कि कोई अन्य सांसद (चाहे वह सत्ता पक्ष का हो या विपक्ष का) पेश करता है, उसे प्राइवेट मेंबर बिल कहते हैं।

इतिहास गवाह है कि भारत में बहुत कम प्राइवेट मेंबर बिल ही कानून बन पाए हैं। अक्सर सरकार ऐसे बिलों पर चर्चा के बाद अपना जवाब देती है और सांसद से बिल वापस लेने का आग्रह करती है, या फिर वह बिल गिर जाता है। हालांकि, ऐसे बिलों का महत्व यह है कि ये संसद और देश का ध्यान एक गंभीर मुद्दे की ओर खींचते हैं। भले ही यह बिल पास न हो, लेकिन यह सरकार पर दबाव बनाता है कि वह भविष्य में इस दिशा में कोई कदम उठाए।

संसद में पेश हुए अन्य महत्वपूर्ण बिल

शुक्रवार को लोकसभा में सिर्फ 'राइट टू डिस्कनेक्ट' बिल ही नहीं, बल्कि कई अन्य जनहित से जुड़े बिल भी पेश किए गए:

  • मासिक धर्म लाभ विधेयक (Menstrual Benefits Bill, 2024): कांग्रेस सांसद कादियाम काव्या ने यह बिल पेश किया, जिसमें कामकाजी महिलाओं को पीरियड्स के दौरान कार्यस्थल पर विशेष सुविधाएं और सपोर्ट देने की बात कही गई है।

  • पेड मेंस्ट्रुअल लीव (Paid Menstrual Leave): लोजपा (LJP) सांसद शांभवी चौधरी ने छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए 'पेड मेंस्ट्रुअल लीव' और स्वच्छता सुविधाओं के लिए बिल पेश किया।

  • नीट से छूट (Exemption from NEET): कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने तमिलनाडु को मेडिकल प्रवेश परीक्षा 'NEET' से छूट दिलाने के लिए एक बिल पेश किया।

  • मृत्युदंड की समाप्ति: डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने भारत में मौत की सजा (Death Penalty) को खत्म करने के लिए बिल पेश किया।

निष्कर्ष: एक नई बहस की शुरुआत

सुप्रिया सुले द्वारा पेश किया गया 'राइट टू डिस्कनेक्ट बिल' भारतीय कॉर्पोरेट जगत के लिए एक वेक-अप कॉल (Wake-up call) है। भले ही कानूनी रूप से इसे लागू होने में वक्त लगे, लेकिन इसने यह चर्चा जरूर छेड़ दी है कि क्या कंपनी की ग्रोथ के लिए कर्मचारी की मानसिक शांति की बलि दी जा सकती है?

आज का युवा वर्ग सैलरी से ज्यादा मेंटल पीस और वर्क-लाइफ बैलेंस को तरजीह दे रहा है। ऐसे में, कंपनियों को भी अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। क्या भारत काम के बाद 'स्विच ऑफ' करने के लिए तैयार है? यह एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा।