PM Modi vs TMC MP: 'बंकिम दा' कहने पर टोका, तो मोदी ने पूछा- 'क्या आपको दादा कह सकता हूं?' संसद में गूंजा वंदे मातरम का इतिहास
लोकसभा में पीएम मोदी द्वारा बंकिम चंद्र चटर्जी को 'बंकिम दा' कहने पर टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने जताई आपत्ति। जवाब में पीएम मोदी ने दिया ऐसा दिल जीतने वाला जवाब कि सदन में लगे ठहाके। जानें वंदे मातरम पर पीएम मोदी के ऐतिहासिक भाषण की बड़ी बातें, कांग्रेस पर हमला और स्वदेशी आंदोलन का जिक्र।
नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सोमवार को लोकसभा में एक बेहद दिलचस्प और हल्का-फुल्का क्षण देखने को मिला, जिसने गंभीर राजनीतिक चर्चाओं के बीच भी सभी के चेहरे पर मुस्कान ला दी। मौका था 'वंदे मातरम' पर चर्चा का, और मुख्य पात्र थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के वरिष्ठ सांसद सौगत रॉय।
जब प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी) के बारे में बात कर रहे थे, तो उनके संबोधन के एक शब्द पर टीएमसी सांसद ने आपत्ति जता दी। इसके बाद प्रधानमंत्री ने जो जवाब दिया, उसने न केवल उस आपत्ति का सम्मान किया बल्कि अपनी हाजिरजवाबी से माहौल को भी खुशनुमा बना दिया।
क्या था पूरा मामला?
संसद में 'वंदे मातरम' के ऐतिहासिक महत्व पर चर्चा हो रही थी। अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बंगाल के महान साहित्यकार और राष्ट्रगीत के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जिक्र करते हुए उन्हें स्नेहपूर्वक "बंकिम दा" कहकर संबोधित किया।
जैसे ही पीएम मोदी ने 'बंकिम दा' कहा, अपनी सीट पर बैठे टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने उन्हें टोक दिया। रॉय ने तर्क दिया कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसी महान शख्सियत के लिए 'दा' (जो अनौपचारिक है) की जगह "बंकिम बाबू" शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जो अधिक सम्मानजनक और औपचारिक है।
पीएम मोदी का दिल जीतने वाला जवाब
सौगत रॉय की इस टिप्पणी को प्रधानमंत्री ने बेहद सकारात्मक रूप से लिया। उन्होंने तुरंत अपनी गलती सुधारते हुए कहा, "मैं उन्हें बंकिम बाबू कहूंगा। धन्यवाद, मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं।"
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। पीएम मोदी ने अपनी चिर-परिचित शैली में मुस्कुराते हुए सौगत रॉय से पूछा, "क्या मैं आपको 'दादा' कह सकता हूं, या इसमें भी कोई मुद्दा है?" प्रधानमंत्री के इस सवाल पर पूरे सदन में ठहाके गूंज उठे और तनावपूर्ण माहौल एक पल के लिए हंसी में बदल गया।
'दा' और 'बाबू' का क्या है बंगाली कनेक्शन?
इस घटना ने बंगाली संस्कृति में संबोधन की बारीकियों को भी पटल पर ला दिया:
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दा (Da): बंगाली में 'दा' शब्द 'दादा' का संक्षिप्त रूप है, जिसका अर्थ होता है 'बड़ा भाई'। इसका इस्तेमाल अक्सर अपने से बड़ों के लिए प्यार और अपनापन दिखाने के लिए किया जाता है। यह थोड़ा अनौपचारिक (Informal) माना जाता है।
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बाबू (Babu): ऐतिहासिक रूप से 'बाबू' शब्द का इस्तेमाल शिक्षित और सम्मानित भद्रलोक (Gentlemen) के लिए एक सम्मानजनक प्रत्यय (Suffix) के रूप में किया जाता है। यह अधिक औपचारिक (Formal) और आदरसूचक माना जाता है।
टीएमसी सांसद का तर्क था कि बंकिम चंद्र जैसी ऐतिहासिक विभूति के लिए औपचारिक सम्मान 'बाबू' ही उपयुक्त है।
वंदे मातरम: आजादी का मंत्र और कांग्रेस पर तीखा हमला
हंसी-मजाक के इस पल से परे, प्रधानमंत्री का भाषण बेहद गंभीर और ऐतिहासिक तथ्यों से भरा था। लगभग 10 घंटे चली इस चर्चा में पीएम मोदी ने 'वंदे मातरम' को सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा बताया। उन्होंने इस दौरान कांग्रेस पार्टी पर भी तीखे प्रहार किए।
1. 1905 का बंग-भंग और स्वदेशी आंदोलन
पीएम मोदी ने इतिहास के पन्नों को पलटते हुए कहा कि जब 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन (Partition of Bengal) किया था, तब 'वंदे मातरम' किसी चट्टान की तरह खड़ा हो गया था। उन्होंने कहा, "वंदे मातरम ने भारत को आत्मनिर्भरता का रास्ता दिखाया। उस दौर में माचिस की डिब्बी से लेकर बड़े-बड़े जहाजों तक, हर स्वदेशी वस्तु पर 'वंदे मातरम' लिखा जाने लगा था। यह विदेशी कंपनियों को चुनौती देने का हथियार और स्वदेशी आंदोलन का सबसे बड़ा नारा बन गया था।"
2. 'माँ मैं तेरा पुत्र हूँ'
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह गीत राजनीतिक आजादी के मंत्र से कहीं बढ़कर था। यह हमारी मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का एक आध्यात्मिक युद्धघोष था। उन्होंने वेदों का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे संस्कारों में यह बात रची- बसी है—‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः’ (यह धरती मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं)। वंदे मातरम इसी भावना का प्रकटीकरण था।
3. महात्मा गांधी और वंदे मातरम
अपने भाषण में पीएम मोदी ने महात्मा गांधी के विचारों को भी उद्धृत किया। उन्होंने बताया कि 2 दिसंबर 1905 के 'इंडियन ओपिनियन' (Indian Opinion) में गांधीजी ने लिखा था कि बंकिम चंद्र द्वारा रचित यह गीत पूरे बंगाल में प्रसिद्ध हो चुका है। पीएम ने गांधीजी के हवाले से कहा, "यह गीत इतना लोकप्रिय हो गया था कि यह हमारे राष्ट्रगान जैसा बन गया। इसमें अन्य देशों के राष्ट्रगीतों की तुलना में कहीं अधिक गहरी भावनाएं और मधुरता थी।"
4. कांग्रेस पर 'तुष्टिकरण' का आरोप
पीएम मोदी ने सवाल उठाया कि जिस गीत को गांधीजी इतना मानते थे, उसके साथ पिछली सदी में अन्याय क्यों हुआ? उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा:
"वंदे मातरम इतना महान था, तो पिछली सदी में इसके साथ अन्याय क्यों हुआ? वंदे मातरम के साथ विश्वासघात क्यों किया गया? वो कौन सी ताकतें थीं जिनकी इच्छाएं महात्मा गांधी की भावनाओं पर भारी पड़ गईं?"
पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते 'वंदे मातरम' के साथ समझौता किया। उन्होंने कहा कि इसी मानसिकता के कारण अंततः देश को विभाजन (Partition) का दंश झेलना पड़ा। उन्होंने कहा, "कांग्रेस ने वंदे मातरम पर समझौता किया और नतीजतन, देश के विभाजन के फैसले को स्वीकार करना पड़ा।"
5. विकसित भारत का सपना
अंत में, प्रधानमंत्री ने संसद से आग्रह किया कि इस अवसर को राष्ट्र के प्रति पुनर्समर्पण के रूप में देखा जाए। उन्होंने कहा कि भारत के महापुरुषों ने 'स्वतंत्र भारत' का सपना देखा था, और आज की पीढ़ी 'समृद्ध भारत' का सपना देख रही है। उन्होंने जोर देकर कहा, "इन दोनों सपनों की प्रेरणा 'वंदे मातरम' ही है। हमें 2047 तक भारत को 'आत्मनिर्भर' और 'विकसित' बनाना है, और यही सच्चा वंदे मातरम होगा।"
निष्कर्ष
संसद का यह सत्र न केवल ऐतिहासिक बहसों का गवाह बना, बल्कि इसने भारतीय राजनीति में संस्कृति, भाषा और इतिहास के महत्व को भी रेखांकित किया। जहां एक तरफ 'दा' और 'बाबू' की बहस ने बंगाली अस्मिता की झलक दिखाई, वहीं दूसरी तरफ पीएम मोदी ने 'वंदे मातरम' के जरिए राष्ट्रवाद की एक नई लकीर खींचने की कोशिश की।