संभाजीनगर: दो फैक्ट्रियों से 12 बाल मजदूर रेस्क्यू, मालिकों पर केस दर्ज
छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) के वालूज एमआईडीसी क्षेत्र में एक प्लास्टिक निर्माण इकाई और एक अन्य प्रतिष्ठान पर छापा मारकर 12 बाल मजदूरों को छुड़ाया गया है। इनमें 5 लड़कियां भी शामिल हैं। जानिए प्रशासन की कार्रवाई और कानून क्या कहता है।
छत्रपति संभाजीनगर: बाल श्रम (Child Labour) के अभिशाप को जड़ से खत्म करने के लिए छत्रपति संभाजीनगर जिला प्रशासन और श्रम विभाग ने एक बड़ी कार्रवाई की है। शहर के औद्योगिक क्षेत्र वालूज (Waluj) में स्थित दो अलग-अलग औद्योगिक इकाइयों पर औचक छापेमारी कर 12 बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया है। इनमें से कई बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम कर रहे थे, जो न केवल उनके बचपन बल्कि उनके जीवन के लिए भी बड़ा खतरा था।
रेस्क्यू ऑपरेशन की पूरी कहानी
श्रम विभाग (Labour Department) को गुप्त सूचना मिली थी कि वालूज एमआईडीसी क्षेत्र की कुछ फैक्ट्रियों में कम उम्र के बच्चों से काम करवाया जा रहा है। इस सूचना के आधार पर, जिला कलेक्टर दिलीप स्वामी के आदेश पर एक विशेष टीम का गठन किया गया।
मंगलवार को श्रम विभाग की टीम ने पुलिस के साथ मिलकर दो स्थानों पर छापेमारी की:
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प्लास्टिक विनिर्माण इकाई (Plastic Manufacturing Unit): पहली रेड एक प्लास्टिक बनाने वाली फैक्ट्री में हुई। यहां से अधिकारियों ने 4 बच्चों को रेस्क्यू किया, जिनमें 3 लड़कियां शामिल थीं। प्लास्टिक यूनिट्स में काम करना बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हो सकता है।
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अन्य प्रतिष्ठान: दूसरी रेड एक अन्य प्रतिष्ठान पर की गई, जहां 8 बच्चे काम करते पाए गए। इनमें 2 लड़कियां भी थीं।
कुल मिलाकर, 12 बच्चों को बाल श्रम के चंगुल से आज़ाद कराया गया। रेस्क्यू किए गए बच्चों को बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee - CWC) के समक्ष पेश किया गया है, जहां उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाएगी।
मालिकों पर कानूनी शिकंजा
श्रम उपायुक्त नितिन पाटनकर ने बताया कि दोनों प्रतिष्ठानों के मालिकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की गई है। उनके खिलाफ बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 (Child Labour (Prohibition and Regulation) Act, 1986) और अन्य संबंधित कानूनों के तहत मामला दर्ज किया गया है।
कानून क्या कहता है?
भारत में बाल श्रम एक गंभीर अपराध है:
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14 वर्ष से कम आयु: किसी भी बच्चे को किसी भी प्रकार के रोजगार में लगाना पूर्णतः प्रतिबंधित है।
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14-18 वर्ष (किशोर): किशोरों को खतरनाक व्यवसायों (जैसे खदानों, ज्वलनशील पदार्थों या रसायनों से जुड़े काम) में लगाना प्रतिबंधित है।
सजा का प्रावधान: बाल श्रम कराने वाले दोषियों को 6 महीने से 2 साल तक की कैद और/या ₹20,000 से ₹50,000 तक का जुर्माना हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति दोबारा यह अपराध करता है, तो उसे कम से कम 1 साल से लेकर 3 साल तक की कैद हो सकती है।
प्रशासन की सख्ती और भविष्य की योजना
यह कार्रवाई जिला प्रशासन के उस अभियान का हिस्सा है जिसका उद्देश्य जिले को बाल श्रम मुक्त बनाना है। हाल ही में, शहर के बाहरी इलाके में एक आवासीय स्कूल में मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों के साथ मारपीट का वीडियो सामने आने के बाद प्रशासन और भी सतर्क हो गया है। उस मामले में भी केयरटेकर और अटेंडेंट के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि आने वाले दिनों में और भी औचक निरीक्षण (Surprise Checks) और छापेमारी की जाएगी। उन्होंने नागरिकों से भी अपील की है कि यदि उन्हें कहीं भी बाल श्रम होता दिखाई दे, तो तुरंत प्रशासन या पुलिस को सूचित करें।