संभाजीनगर: हॉल टिकट न मिलने से 130 छात्र MCA परीक्षा से वंचित, भारी हंगामा
छत्रपति संभाजीनगर में विश्वविद्यालय और कॉलेज प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई है। हॉल टिकट जारी न होने के कारण 130 से अधिक छात्र अपनी MCA की परीक्षा नहीं दे सके। इस घटना से छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ गया है और उन्होंने परीक्षा केंद्र पर भारी विरोध प्रदर्शन किया। जानिए क्या है पूरा मामला और प्रशासन की प्रतिक्रिया।
छत्रपति संभाजीनगर: महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) में उच्च शिक्षा व्यवस्था की एक शर्मनाक तस्वीर सामने आई है, जहां प्रशासन की कथित तकनीकी खामियों और लापरवाही का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ा है। मंगलवार को शहर में मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन (MCA) की परीक्षा आयोजित की गई थी, लेकिन अंतिम समय तक हॉल टिकट (Admit Card) जारी न होने के कारण 130 से अधिक छात्र परीक्षा देने से वंचित रह गए।
इस घटना ने न केवल छात्रों के शैक्षणिक वर्ष को खतरे में डाल दिया है, बल्कि डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय (BAMU) की परीक्षा प्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
परीक्षा केंद्र पर अफरा-तफरी और आंसू
परीक्षा का समय सुबह का था, और छात्र पूरी तैयारी के साथ परीक्षा केंद्रों पर पहुंचे थे। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि उनके हॉल टिकट जनरेट ही नहीं हुए हैं और उनका सीट नंबर सूची में नहीं है, वहां हड़कंप मच गया।
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निराशा और गुस्सा: कई छात्र रोते हुए दिखाई दिए, जबकि कई ने गुस्से में प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी।
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कॉलेज की दलील: प्रभावित छात्र शहर के प्रतिष्ठित कॉलेजों के बताए जा रहे हैं। जब छात्रों ने कॉलेज प्रशासन से संपर्क किया, तो उन्हें बताया गया कि विश्वविद्यालय के सर्वर में तकनीकी समस्या के कारण हॉल टिकट डाउनलोड नहीं हो पा रहे थे।
लापरवाही किसकी: कॉलेज या यूनिवर्सिटी?
इस घटना के बाद हमेशा की तरह 'ब्लेम गेम' (आरोप-प्रत्यारोप) शुरू हो गया है।
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विश्वविद्यालय का पक्ष: BAMU के परीक्षा विभाग के सूत्रों का कहना है कि संबंधित कॉलेजों ने छात्रों के परीक्षा फॉर्म समय पर विश्वविद्यालय के पोर्टल पर 'अप्रूव' (Approve) या फॉरवर्ड नहीं किए थे। नियमानुसार, जब तक कॉलेज अपनी ओर से डेटा वेरीफाई करके नहीं भेजता, तब तक विश्वविद्यालय हॉल टिकट जारी नहीं कर सकता।
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कॉलेजों का पक्ष: वहीं, कुछ कॉलेज प्रतिनिधियों का दावा है कि उन्होंने प्रक्रिया पूरी कर दी थी, लेकिन विश्वविद्यालय के ऑनलाइन पोर्टल में तकनीकी गड़बड़ी के कारण डेटा सिंक नहीं हुआ।
वजह जो भी हो, इस प्रशासनिक रस्साकशी में पिसना उन निर्दोष छात्रों को पड़ा है जिन्होंने अपनी फीस भरी थी और साल भर पढ़ाई की थी।
छात्र संगठनों का विरोध
इस घटना की खबर फैलते ही विभिन्न छात्र संगठन सक्रिय हो गए। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन का घेराव किया और इसे छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया। छात्र नेताओं ने मांग की है कि:
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जिन छात्रों की परीक्षा छूटी है, उनके लिए तत्काल विशेष परीक्षा (Special Exam) आयोजित की जाए।
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इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और कॉलेज प्रशासन पर सख्त कार्रवाई हो।
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यह सुनिश्चित किया जाए कि छात्रों का शैक्षणिक वर्ष बर्बाद न हो।
विश्वविद्यालय प्रशासन की प्रतिक्रिया
बढ़ते दबाव और मीडिया में खबरों के आने के बाद, डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के परीक्षा और मूल्यांकन बोर्ड के निदेशक ने मामले का संज्ञान लिया है।
प्राथमिक जानकारी के अनुसार, विश्वविद्यालय ने आश्वासन दिया है कि वे मामले की जांच करेंगे। यदि यह पाया जाता है कि छात्रों की इसमें कोई गलती नहीं थी, तो उनके हितों की रक्षा के लिए कदम उठाए जाएंगे। हालांकि, अभी तक दोबारा परीक्षा की कोई आधिकारिक तारीख घोषित नहीं की गई है, जिससे छात्रों में अनिश्चितता बनी हुई है।
बार-बार हो रही हैं ऐसी घटनाएं
यह पहली बार नहीं है जब BAMU या इससे संबद्ध कॉलेजों में हॉल टिकट को लेकर बखेड़ा खड़ा हुआ हो। इससे पहले भी इंजीनियरिंग और अन्य पाठ्यक्रमों में तकनीकी खामियों के कारण छात्रों को मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी है। डिजिटलीकरण के दावों के बावजूद, परीक्षा के दिन तक हॉल टिकट न मिलना सिस्टम की विफलता को दर्शाता है।
छात्र क्या करें?
विशेषज्ञों और छात्र कार्यकर्ताओं ने प्रभावित छात्रों को सलाह दी है कि वे लिखित में अपनी शिकायत कुलपति (Vice-Chancellor) और परीक्षा नियंत्रक को दें। साथ ही, वे अपने पास फीस की रसीद और फॉर्म भरने का सबूत सुरक्षित रखें ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर वे अपना पक्ष मजबूती से रख सकें।
निष्कर्ष
130 छात्रों का परीक्षा से वंचित होना एक छोटी घटना नहीं है। यह 130 परिवारों के सपनों और मेहनत पर पानी फिरने जैसा है। शिक्षा विभाग को इसे केवल एक 'तकनीकी चूक' मानकर पल्ला नहीं झाड़ना चाहिए। जवाबदेही तय होनी चाहिए ताकि भविष्य में किसी भी छात्र को परीक्षा हॉल के बाहर आंसू न बहाने पड़ें।