H-1B वीजा: ट्रंप प्रशासन ने जांच सख्त की, सोशल मीडिया प्रोफाइल पर नजर
ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा आवेदकों की जांच और भी सख्त कर दी है। अब आवेदकों को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल 'पब्लिक' करने होंगे और 'सेंसरशिप' में संलिप्तता के लिए उनकी जांच की जाएगी। जानिए भारतीय पेशेवरों और आईटी उद्योग पर इसका क्या असर होगा। (The Trump administration has tightened the vetting process for H-1B visa applicants. Applicants must now make their social media profiles 'public' and will be scrutinized for involvement in 'censorship'. Know the impact on Indian professionals and the IT industry.)
वाशिंगटन/नई दिल्ली: अमेरिका में H-1B वीजा पर नौकरी करने का सपना देख रहे लाखों भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। ट्रंप प्रशासन ने एक और बड़ा और कड़ा फैसला लेते हुए H-1B वीजा आवेदकों की 'वेटिंग' (Vetting - जांच प्रक्रिया) को अत्यंत सख्त कर दिया है। अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी एक नए केबल (Cable) और दिशानिर्देशों के अनुसार, अब आवेदकों के सोशल मीडिया प्रोफाइल, लिंक्डइन (LinkedIn) और रोजगार के इतिहास की बारीकी से जांच की जाएगी।
इस नए आदेश का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि यदि कोई आवेदक "मुक्त भाषण (Free Speech) को दबाने" या "सेंसरशिप" (Censorship) की गतिविधियों में शामिल पाया जाता है, तो उसका वीजा आवेदन खारिज किया जा सकता है।
क्या हैं नए नियम? (New Vetting Requirements)
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सोशल मीडिया 'पब्लिक' करना अनिवार्य: 15 दिसंबर, 2025 से, सभी H-1B और H-4 (आश्रित) आवेदकों को अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स की सेटिंग्स को 'पब्लिक' (Public) करना होगा। इससे अमेरिकी अधिकारी उनकी ऑनलाइन गतिविधियों की आसानी से समीक्षा कर सकेंगे। पहले यह नियम केवल छात्रों और एक्सचेंज विजिटर्स के लिए था।
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रिज्यूमे और लिंक्डइन की जांच: अमेरिकी कांसुलर अधिकारी अब आवेदकों के रिज्यूमे और लिंक्डइन प्रोफाइल की गहन जांच करेंगे।
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'सेंसरशिप' पर फोकस: अधिकारी यह देखेंगे कि क्या आवेदक ने कभी गलत सूचना (misinformation), तथ्य-जांच (fact-checking), या सामग्री मॉडरेशन (content moderation) जैसे क्षेत्रों में काम किया है।
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अपात्रता का आधार: यदि सबूत मिलता है कि कोई आवेदक अमेरिका में "संरक्षित अभिव्यक्ति" (Protected Expression) को सेंसर करने में जिम्मेदार या शामिल था, तो उसे वीजा के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
ट्रंप प्रशासन का तर्क
यह कदम ट्रंप प्रशासन की उस व्यापक नीति का हिस्सा है जो कथित तौर पर ऑनलाइन रूढ़िवादी (Conservative) आवाजों को दबाने के खिलाफ है। प्रशासन का तर्क है कि कई विदेशी पेशेवर अमेरिकी टेक कंपनियों में कंटेंट मॉडरेशन और ट्रस्ट एंड सेफ्टी टीमों में काम करते हैं, और वे अमेरिकी नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं।
एक विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा, "हम उन विदेशियों का समर्थन नहीं करते जो अमेरिका आकर अमेरिकियों की आवाज को दबाने (muzzling) का काम करें।"
भारतीय आईटी पेशेवरों पर प्रभाव
यह नियम भारतीय पेशेवरों के लिए चिंता का विषय है क्योंकि:
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बल्क रिक्रूटमेंट: भारत H-1B वीजा का सबसे बड़ा लाभार्थी है। अमेरिकी टेक कंपनियां भारत से बड़ी संख्या में प्रतिभाओं को नियुक्त करती हैं।
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आईटी और सोशल मीडिया भूमिकाएं: कई भारतीय पेशेवर गूगल, फेसबुक (मेटा), और एक्स (ट्विटर) जैसी कंपनियों में कंटेंट पॉलिसी, ट्रस्ट एंड सेफ्टी, और अनुपालन (Compliance) भूमिकाओं में काम करते हैं। अब उनके पिछले काम की प्रकृति उनके वीजा के लिए खतरा बन सकती है।
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वीजा प्रक्रिया में देरी: इतनी विस्तृत जांच के कारण वीजा प्रोसेसिंग में काफी समय लग सकता है, जिससे अनिश्चितता बढ़ेगी।
उद्योग की प्रतिक्रिया
विशेषज्ञों का कहना है कि "सेंसरशिप" की परिभाषा अस्पष्ट और व्यक्तिपरक (subjective) हो सकती है, जिससे अधिकारियों को वीजा खारिज करने का व्यापक अधिकार मिल जाएगा। इससे अमेरिकी कंपनियों के लिए प्रतिभाओं को नियुक्त करना और भी कठिन हो जाएगा। यह कदम $100,000 के नए वीजा शुल्क के बाद आया है, जिसने पहले ही उद्योग में हलचल मचा दी थी।
ट्रंप प्रशासन का यह कदम स्पष्ट संकेत है कि आव्रजन नीति अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि वैचारिक और राजनीतिक युद्ध का भी हिस्सा बन गई है। भारतीय पेशेवरों को अब अपने डिजिटल पदचिह्नों (Digital Footprints) को लेकर बेहद सतर्क रहने की आवश्यकता होगी।