पुतिन का भारत दौरा: ट्रंप के दबाव के बीच भारत-रूस संबंधों का भविष्य क्या होगा?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 4-5 दिसंबर को भारत यात्रा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ दबाव के बीच हो रही है। जानिए इस शिखर सम्मेलन में S-400, Su-57, ऊर्जा सौदों और रणनीतिक संतुलन को लेकर क्या नतीजे निकल सकते हैं। (Russian President Vladimir Putin's visit to India on December 4-5 comes amidst US President Donald Trump's tariff pressure. Learn about the likely outcomes of this summit regarding S-400, Su-57, energy deals, and strategic balance.)
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) 4-5 दिसंबर, 2025 को भारत के बहुप्रतीक्षित दौरे पर आ रहे हैं। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब वैश्विक भू-राजनीति (Geopolitics) उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। एक तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने भारतीय निर्यात पर भारी टैरिफ लगाने की धमकी दी है, विशेष रूप से रूसी तेल की खरीद को लेकर। वहीं दूसरी तरफ, भारत अपनी पुरानी और भरोसेमंद रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
यह शिखर सम्मेलन केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) की अग्निपरीक्षा है। आइए जानते हैं कि इस दौरे से क्या नतीजे निकल सकते हैं और भारत किस तरह अमेरिकी दबाव और रूसी निर्भरता के बीच संतुलन बना पाएगा।
1. रक्षा सौदे: S-400 और Su-57 पर नजर
भारत की रक्षा तैयारियों के लिए रूस अभी भी एक महत्वपूर्ण भागीदार है। इस यात्रा के दौरान रक्षा सहयोग चर्चा के केंद्र में रहेगा।
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S-400 ट्रायम्फ: भारत पहले ही रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीद चुका है, लेकिन अब चर्चा अतिरिक्त 5 स्क्वाड्रन खरीदने की हो सकती है। 'ऑपरेशन सिंदूर' में इस सिस्टम की सफलता ने इसकी मांग और बढ़ा दी है। भारत चाहेगा कि रूस इन सिस्टम्स की डिलीवरी में तेजी लाए।
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Su-57 फाइटर जेट: रूस भारत को अपने अत्याधुनिक 5वीं पीढ़ी के Su-57 स्टील्थ फाइटर जेट की तकनीक और स्थानीय उत्पादन (Technology Transfer) का ऑफर दे रहा है। हालांकि, भारत ने अभी तक इस पर अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन यह अमेरिकी F-35 का एक सस्ता और प्रभावी विकल्प हो सकता है।
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स्पेयर पार्ट्स और अपग्रेड: भारतीय सेना के पास मौजूद रूसी उपकरणों (जैसे Su-30MKI, T-90 टैंक) के रखरखाव और स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति सुनिश्चित करना भी एक अहम मुद्दा होगा।
2. ऊर्जा सुरक्षा: तेल और भुगतान तंत्र
यूक्रेन युद्ध के बाद भारत रूस से रियायती दरों पर कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंधों और टैरिफ के खतरे ने इस व्यापार को जटिल बना दिया है।
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नया भुगतान तंत्र: भारत और रूस डॉलर के बजाय यूएई दिरहम (Dirham) या रुपये-रूबल में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक नए और सुरक्षित भुगतान तंत्र को औपचारिक रूप दे सकते हैं। इससे पश्चिमी प्रतिबंधों का असर कम होगा।
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दीर्घकालिक तेल अनुबंध: भारत रूस के साथ दीर्घकालिक कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए समझौते कर सकता है, ताकि ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। साथ ही, रूसी ऊर्जा परियोजनाओं (जैसे आर्कटिक LNG 2) में भारतीय निवेश बढ़ाने पर भी बात हो सकती है।
3. अमेरिकी दबाव और भारत की रणनीति
डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति और रूसी तेल खरीद पर 25% अतिरिक्त टैरिफ की धमकी ने भारत को एक कठिन स्थिति में डाल दिया है।
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भारत के लिए चुनौती यह है कि वह अमेरिका को नाराज किए बिना रूस के साथ अपने हित कैसे साधे।
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विशेषज्ञों का मानना है कि भारत एक 'मध्यम मार्ग' अपनाएगा। वह रूस के साथ रक्षा और ऊर्जा संबंधों को मजबूत करेगा, लेकिन इसे इस तरह पेश करेगा कि यह भारत के राष्ट्रीय हितों (National Interest) के लिए जरूरी है, न कि किसी गुट का हिस्सा बनने के लिए।
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भारत अमेरिका को यह समझाने की कोशिश करेगा कि चीन का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत भारत अमेरिका के हित में है, और इसके लिए उसे रूसी हथियारों और सस्ती ऊर्जा की जरूरत है।
4. अन्य संभावित समझौते
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कनेक्टिविटी: चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारे (Maritime Corridor) और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) को तेज करने पर सहमति बन सकती है।
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व्यापार घाटा: भारत रूस के साथ अपने बढ़ते व्यापार घाटे को कम करने के लिए कृषि उत्पादों, फार्मास्यूटिकल्स और मशीनरी के निर्यात को बढ़ाने की मांग करेगा।
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लेबर मोबिलिटी: रूस में भारतीय कुशल श्रमिकों को रोजगार देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना है।
निष्कर्ष: संतुलन की कला
पुतिन की यह यात्रा भारत की विदेश नीति के लिए एक लिटमस टेस्ट है। एक 'मामूली परिणाम' (Modest Outcome) मौजूदा संबंधों को स्थिर रखेगा, जबकि एक 'महत्वाकांक्षी परिणाम' (Ambitious Outcome) भारत को यूरेशियाई एकीकरण की ओर ले जा सकता है, लेकिन इससे पश्चिमी देशों की नाराजगी बढ़ सकती है।