फिलीस्तीन को मान्यता पर अमेरिका का सख्त रुख: 'यह सिर्फ दिखावा है'
ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया द्वारा फिलीस्तीन को संप्रभु राष्ट्र की मान्यता देने पर अमेरिका ने इसे 'केवल दिखावा' (performative) बताया है। यह लेख अमेरिका के रुख, इजरायल की सुरक्षा पर उसके जोर और सहयोगी देशों के साथ बढ़ते मतभेदों पर आधारित है।
मध्य पूर्व में फिलीस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने के मुद्दे पर अमेरिका और उसके प्रमुख सहयोगी देशों के बीच एक बड़ा मतभेद सामने आया है। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पुर्तगाल जैसे देशों द्वारा फिलीस्तीन को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता देने के बाद, अमेरिका ने इस कदम को एक "दिखावटी कदम" बताया है। अमेरिका का मानना है कि यह कदम जमीन पर स्थिति को बदलने के बजाय सिर्फ कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए है।
अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि, "हमारा ध्यान दिखावटी कदमों पर नहीं, बल्कि गंभीर कूटनीति पर है।" उन्होंने कहा कि अमेरिका की प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं: बंधकों की रिहाई, इजरायल की सुरक्षा, और एक ऐसा क्षेत्र जहां शांति और समृद्धि हो, जो केवल हमास से मुक्ति के बाद ही संभव है। यह बयान इस बात पर जोर देता है कि अमेरिका अभी भी इजरायल की सुरक्षा को अपने मध्य-पूर्व की विदेश नीति का मुख्य स्तंभ मानता है।
अमेरिका और इजरायल दोनों का यह मानना है कि फिलीस्तीन को इस समय मान्यता देना हमास को उसके 7 अक्टूबर के हमले का "इनाम" देने जैसा होगा। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी इस कदम का कड़ा विरोध करते हुए इसे "आतंकवाद के लिए एक बेतुका इनाम" बताया है और साफ कहा है कि "एक फिलीस्तीनी राष्ट्र जॉर्डन नदी के पश्चिम में स्थापित नहीं होगा।"
इसके विपरीत, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने कहा है कि उनका यह कदम 'टू-स्टेट सॉल्यूशन' की संभावना को जीवित रखने के लिए आवश्यक है। उनका तर्क है कि इजरायल की वर्तमान सरकार के रुख और कब्जे वाले पश्चिमी तट में लगातार बस्तियों के विस्तार से, शांति की संभावना कम होती जा रही है। ये देश इजरायल की गाजा में सैन्य कार्रवाई से भी हताश हैं, जिसने भारी मानवीय संकट पैदा किया है।
यह विवाद दिखाता है कि इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में मतभेद बढ़ रहे हैं। जहां एक ओर अधिकतर देश शांतिपूर्ण समाधान के लिए दबाव बना रहे हैं, वहीं अमेरिका और इजरायल का मानना है कि इस तरह की मान्यताएं केवल चरमपंथ को बढ़ावा देंगी।
कुल मिलाकर, यह एक जटिल कूटनीतिक स्थिति है, जहां अमेरिका को अपने सबसे करीबी सहयोगियों से ही अलग-थलग पड़ना पड़ रहा है। यह देखना बाकी है कि क्या यह राजनयिक दबाव इजरायल को अपने रुख में बदलाव लाने के लिए मजबूर करेगा, या फिर यह स्थिति और भी तनावपूर्ण हो जाएगी।