RBI की नीतिगत बैठक शुरू: रेपो रेट पर क्या होगा फैसला?

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने प्रमुख ब्याज दरों पर विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। बाजार का एक हिस्सा 25 आधार अंक (bps) की कटौती की उम्मीद कर रहा है, जबकि दूसरा हिस्सा 'यथास्थिति' (Status Quo) की उम्मीद कर रहा है। यह लेख मुद्रास्फीति, विकास और वैश्विक चुनौतियों के बीच संभावित फैसलों पर केंद्रित है।

Sep 29, 2025 - 21:43
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RBI की नीतिगत बैठक शुरू: रेपो रेट पर क्या होगा फैसला?
आरबीआई की मौद्रिक नीति बैठक शुरू: रेपो रेट में कटौती होगी या नहीं? बुधवार को आएगा फैसला

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने एक बार फिर देश की प्रमुख ब्याज दरों पर विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। तीन दिवसीय यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब बाजार के विशेषज्ञ रेपो रेट में 25 आधार अंक (bps) की कटौती की संभावना को लेकर विभाजित हैं। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली यह समिति बुधवार को अपने फैसले की घोषणा करेगी, जिस पर पूरे देश के निवेशकों, उद्योगपतियों और आम उपभोक्ताओं की निगाहें टिकी हुई हैं।

बाजार में असमंजस की स्थिति

बाजार का एक बड़ा वर्ग मानता है कि आरबीआई इस बार यथास्थिति (Status Quo) बनाए रखेगा। उनका तर्क है कि भले ही घरेलू मुद्रास्फीति (Inflation) नियंत्रण में है, लेकिन अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण किसी भी जोखिम को टालना आवश्यक है। पिछली बार अगस्त 2025 में भी आरबीआई ने दरों को अपरिवर्तित रखा था।

हालांकि, गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) जैसी कुछ वित्तीय फर्मों और कई घरेलू विशेषज्ञों का मानना ​​है कि कटौती की गुंजाइश है।

कटौती के पक्ष में तर्क

  1. मुद्रास्फीति में कमी: विशेषज्ञों के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति काफी नीचे आ चुकी है, और अक्टूबर में इसके 1.1% के आसपास रहने का अनुमान है। यह आरबीआई को दरें कम करने के लिए पर्याप्त जगह देता है।

  2. जीएसटी सुधारों का असर: जीएसटी (GST) दरों के सरलीकरण और कटौती से बाजार में खपत (Consumption) बढ़ने की उम्मीद है। यह मांग को बनाए रखने में मदद करेगा और आरबीआई को दरें कम करने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करेगा।

  3. विकास को बढ़ावा: ब्याज दरों में कटौती से आवास और क्रेडिट बाजारों में सकारात्मक भावना आएगी। यह घर खरीदारों के उत्साह को बढ़ाएगा और छोटे व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए क्रेडिट ग्रोथ को बढ़ावा देगा।

यथास्थिति के पक्ष में तर्क

  1. वैश्विक अनिश्चितता: अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए टैरिफ और अन्य वैश्विक आर्थिक तनावों के कारण विकास दर पर अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे में, आरबीआई किसी भी जोखिम से बचने के लिए इंतजार कर सकता है।

  2. विलंबित प्रभाव: कुछ विश्लेषकों का मानना ​​है कि पिछली दरों में कटौती का पूरा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर अभी आना बाकी है, इसलिए तुरंत एक और कटौती करने की जरूरत नहीं है।

संभावित फैसला और आगे की राह

मॉर्गन स्टेनली और बजाज ब्रोकिंग रिसर्च सहित कई फर्मों का अनुमान है कि आरबीआई फिलहाल रेपो रेट को 5.50 प्रतिशत पर बरकरार रखेगा और "तटस्थ" रुख बनाए रखेगा। हालांकि, डोविश गाइडेंस (Dovish Guidance) यानी भविष्य में कटौती के संकेतों के साथ बाजार को शांत रखा जाएगा। अगर आरबीआई इस बार कटौती नहीं करता है, तो बाजार में यह उम्मीद बनी रहेगी कि अगली कटौती दिसंबर में हो सकती है, जिससे रेपो रेट 5.25% तक आ सकता है। बुधवार को आने वाला यह फैसला यह तय करेगा कि भारत आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता के बीच किस तरह संतुलन साधता है।