बॉम्बे हाई कोर्ट का सख्त फैसला: किसान को अवैध हिरासत में रखने पर सरकार देगी 1 लाख का मुआवजा

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने पुलिस की मनमानी पर लगाम लगाते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक किसान को अवैध रूप से हिरासत में रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार को उसे 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। जानिए क्या है पूरा मामला और कोर्ट ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर क्या कहा।

Nov 25, 2025 - 19:14
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बॉम्बे हाई कोर्ट का सख्त फैसला: किसान को अवैध हिरासत में रखने पर सरकार देगी 1 लाख का मुआवजा
लेख: पुलिस की मनमानी पर हाई कोर्ट का हथौड़ा: किसान को बिना कारण जेल में रखने पर सरकार को देना होगा 1 लाख रुपये का हर्जाना

छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद): "कानून के रक्षक जब भक्षक बन जाएं और नागरिकों की स्वतंत्रता का हनन करें, तो न्यायपालिका का हस्तक्षेप अनिवार्य हो जाता है।" कुछ इसी तरह का संदेश बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने अपने हालिया फैसले में दिया है। कोर्ट ने पुलिस द्वारा एक किसान को अवैध रूप से हिरासत (Illegal Detention) में रखने की घटना को गंभीरता से लेते हुए महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया है कि वह पीड़ित किसान को 1 लाख रुपये का मुआवजा दे।

यह फैसला न केवल पीड़ित किसान के लिए न्याय की जीत है, बल्कि यह पुलिस प्रशासन के लिए एक सख्त चेतावनी भी है कि वर्दी की ताकत का इस्तेमाल नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलने के लिए नहीं किया जा सकता।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला नांदेड़ जिले के एक किसान से जुड़ा है। याचिकाकर्ता किसान ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि स्थानीय पुलिस ने उसे बिना किसी वैध कारण और बिना किसी एफआईआर (FIR) के कई दिनों तक थाने में बंद रखा।

किसान का आरोप था कि:

  1. उसे किसी भी अपराध में शामिल होने का कोई सबूत दिए बिना पुलिस स्टेशन बुलाया गया।

  2. वहां उसे अवैध रूप से हिरासत में ले लिया गया।

  3. इस दौरान उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया और उसे मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी।

  4. गिरफ्तारी के समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित डी.के. बसु दिशा-निर्देशों (D.K. Basu Guidelines) का पालन नहीं किया गया।

हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणियां

न्यायमूर्ति (Justice) ने मामले की सुनवाई करते हुए पुलिस की कार्यप्रणाली पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने पाया कि पुलिस अधिकारियों ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है।

कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु:

  • अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: कोर्ट ने कहा कि किसी भी नागरिक को कानून की उचित प्रक्रिया के बिना उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) से वंचित करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का सीधा उल्लंघन है। स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है और इसे पुलिस की मर्जी पर नहीं छोड़ा जा सकता।

  • रिकॉर्ड में हेरफेर: सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि पुलिस ने किसान को हिरासत में लेने का कोई उचित रिकॉर्ड स्टेशन डायरी में दर्ज नहीं किया था, जो कि प्रक्रियात्मक चूक और दुर्भावना को दर्शाता है।

  • मुआवजे का आदेश: कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह पीड़ित किसान को मानसिक पीड़ा और मानहानि के लिए 1 लाख रुपये का भुगतान करे। साथ ही, कोर्ट ने यह भी छूट दी कि सरकार चाहे तो यह राशि दोषी पुलिस अधिकारियों के वेतन से वसूल सकती है।

डी.के. बसु गाइडलाइन्स क्या हैं? (जानना जरूरी है)

इस मामले में कोर्ट ने डी.के. बसु मामले का हवाला दिया। यह सुप्रीम कोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला है जो गिरफ्तारी के समय पुलिस के लिए नियम तय करता है।

इन दिशा-निर्देशों के अनुसार:

  1. गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को अपनी पहचान (Name Tag) स्पष्ट रूप से पहननी चाहिए।

  2. गिरफ्तारी का मेमो (Arrest Memo) तैयार करना अनिवार्य है, जिस पर गवाह के हस्ताक्षर होने चाहिए।

  3. गिरफ्तार व्यक्ति को अपने किसी परिजन या दोस्त को सूचित करने का अधिकार है।

  4. गिरफ्तार व्यक्ति की मेडिकल जांच होनी चाहिए।

  5. 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है।

इस मामले में पुलिस ने इन नियमों की धज्जियां उड़ाई थीं।

फैसले का महत्व

यह फैसला आम नागरिकों के लिए एक बड़ी राहत है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पुलिस अक्सर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करती है। यह स्थापित करता है कि:

  • पुलिस कानून से ऊपर नहीं है: वर्दी पहनने वाला अधिकारी भी कानून के दायरे में है।

  • जवाबदेही: यदि कोई अधिकारी गलत काम करता है, तो उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी (वेतन से वसूली के आदेश के माध्यम से)।

  • नागरिक अधिकार: एक किसान या गरीब व्यक्ति भी अपने अधिकारों के लिए सिस्टम से लड़ सकता है और जीत सकता है।

निष्कर्ष

बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय न्यायपालिका में जनता के विश्वास को और मजबूत करता है। यह पुलिस बल के लिए एक सबक है कि वे अपनी शक्ति का उपयोग नागरिकों की सुरक्षा के लिए करें, न कि उन्हें प्रताड़ित करने के लिए। 1 लाख रुपये का मुआवजा शायद किसान के मानसिक आघात को पूरी तरह न भर सके, लेकिन यह उसके खोए हुए सम्मान को वापस दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम जरूर है।