संचार साथी ऐप विवाद: क्या सरकार कर रही है जासूसी? केंद्र का बड़ा स्पष्टीकरण, जानिए क्या आप इसे डिलीट कर सकते हैं?

विपक्ष द्वारा 'संचार साथी' (Sanchar Saathi) पहल को जासूसी का उपकरण (Snooping Tool) बताने के बाद केंद्र सरकार ने बड़ा स्पष्टीकरण जारी किया है। सरकार ने साफ किया है कि यह ऐप अनिवार्य नहीं है और इसका उद्देश्य नागरिकों की सुरक्षा है। जानिए क्या इसे फोन से डिलीट किया जा सकता है और क्या है पूरा विवाद।

Dec 2, 2025 - 21:06
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संचार साथी ऐप विवाद: क्या सरकार कर रही है जासूसी? केंद्र का बड़ा स्पष्टीकरण, जानिए क्या आप इसे डिलीट कर सकते हैं?
संचार साथी ऐप विवाद: विपक्ष के 'जासूसी' के आरोपों पर केंद्र का करारा जवाब, कहा- "यह सुरक्षा कवच है, जासूस नहीं"

नई दिल्ली: भारत में डिजिटल सुरक्षा और मोबाइल उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता (Privacy) को लेकर एक बार फिर सियासी घमासान तेज हो गया है। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी पहल 'संचार साथी' (Sanchar Saathi), जिसे मोबाइल चोरी रोकने और सिम कार्ड फ्रॉड पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया है, अब विपक्ष के निशाने पर है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि सरकार इस तकनीकी पहल की आड़ में नागरिकों की जासूसी (Snooping) करने की कोशिश कर रही है।

इस भारी विवाद के बीच, केंद्र सरकार ने एक विस्तृत और 'बड़ा स्पष्टीकरण' (Big Clarification) जारी किया है। सरकार ने न केवल जासूसी के आरोपों को सिरे से खारिज किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि क्या उपयोगकर्ता इस सेवा या ऐप को अपने फोन से हटा सकते हैं या नहीं।

क्या है विपक्ष का आरोप?

विपक्ष का कहना है कि सरकार स्मार्टफोन निर्माताओं पर दबाव डाल रही है कि वे 'संचार साथी' या इसके सुरक्षा फीचर्स को फोन में पहले से इंस्टॉल (Pre-install) करें। विपक्षी नेताओं ने इसकी तुलना विवादास्पद 'पेगासस' (Pegasus) मामले से करते हुए कहा कि यह सरकार द्वारा नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा, लोकेशन और कॉल रिकॉर्ड तक पहुंचने का एक पिछला दरवाजा (Backdoor) हो सकता है।

उनका तर्क है कि बिना यूजर की सहमति के किसी भी सॉफ्टवेयर को अनिवार्य बनाना निजता के अधिकार (Right to Privacy) का हनन है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह ऐप सरकार को फोन को रिमोटली कंट्रोल करने की शक्ति देता है?

केंद्र सरकार का बड़ा स्पष्टीकरण: 'जासूसी नहीं, सुरक्षा है प्राथमिकता'

विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और दूरसंचार विभाग (DoT) ने स्थिति साफ की है। सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 'संचार साथी' कोई जासूसी उपकरण नहीं है, बल्कि यह आम नागरिकों को साइबर अपराध और मोबाइल चोरी से बचाने के लिए बनाया गया एक नागरिक-केंद्रित पोर्टल (Citizen-Centric Portal) है।

सरकार के स्पष्टीकरण के मुख्य बिंदु:

  1. अनिवार्यता का सच: सरकार ने स्पष्ट किया कि वर्तमान में ऐसा कोई नियम नहीं है जो उपयोगकर्ताओं को किसी विशेष ऐप को रखने के लिए मजबूर करता हो। हालांकि, सरकार सुरक्षा मानकों (Security Standards) को लागू करने के लिए हैंडसेट निर्माताओं के साथ काम कर रही है, लेकिन इसका उद्देश्य डेटा चोरी नहीं, बल्कि हार्डवेयर स्तर पर सुरक्षा बढ़ाना है।

  2. क्या आप इसे डिलीट कर सकते हैं? यह सबसे बड़ा सवाल था। सरकार के अनुसार, चूंकि 'संचार साथी' मुख्य रूप से एक वेब-आधारित पोर्टल है जो विभिन्न सेवाओं (जैसे CEIR और TAFCOP) को जोड़ता है, इसलिए 'डिलीट' करने का प्रश्न तब उठता है जब यह एक अनिवार्य ऐप हो। यदि भविष्य में कोई सुरक्षा ऐप आता भी है, तो सरकार ने संकेत दिया है कि वह उपयोगकर्ता की सहमति और गोपनीयता कानूनों के दायरे में ही होगा।

  3. उद्देश्य: इस पहल का एकमात्र उद्देश्य खोए हुए फोन को ब्लॉक करना, यह पता लगाना कि आपके नाम पर कितने सिम चल रहे हैं, और फर्जीवाड़ा रोकना है। सरकार ने कहा कि यह प्रणाली डेटा लेती नहीं है, बल्कि उपयोगकर्ताओं को उनके डेटा पर नियंत्रण देती है।

'संचार साथी' असल में क्या करता है?

विवाद से परे, यह समझना जरूरी है कि यह पोर्टल वास्तव में काम कैसे करता है। यह दो मुख्य स्तंभों पर आधारित है:

  • CEIR (Central Equipment Identity Register): यह सुविधा चोरी या गुम हुए मोबाइल फोन को ब्लॉक करने और ट्रैक करने में मदद करती है। यदि आपका फोन चोरी हो जाता है, तो आप इस पोर्टल के जरिए उसे ब्लॉक कर सकते हैं, जिससे चोर उसका उपयोग नहीं कर पाएगा, भले ही वह सिम बदल दे।

  • TAFCOP (Telecom Analytics for Fraud Management and Consumer Protection): यह सुविधा आपको यह जांचने की अनुमति देती है कि आपके आधार कार्ड या आईडी पर कितने मोबाइल नंबर सक्रिय हैं। यदि आपको कोई अज्ञात नंबर दिखता है, तो आप उसे यहीं से रिपोर्ट और बंद कर सकते हैं।

गोपनीयता बनाम सुरक्षा: एक अंतहीन बहस

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में बढ़ते साइबर अपराधों को देखते हुए 'संचार साथी' जैसी पहल समय की मांग है। प्रतिदिन हजारों लोग ऑनलाइन ठगी का शिकार होते हैं या उनके फोन चोरी हो जाते हैं।

हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि सरकार को पारदर्शिता (Transparency) बनाए रखनी चाहिए। किसी भी सॉफ्टवेयर को अनिवार्य बनाने से पहले उसके सोर्स कोड की जांच और डेटा स्टोरेज की नीतियों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। विपक्ष का डर इस बात को लेकर है कि अगर सरकार के पास किसी डिवाइस को रिमोटली एक्सेस करने की क्षमता आ गई, तो उसका दुरुपयोग राजनीतिक विरोधियों या पत्रकारों के खिलाफ किया जा सकता है।

निष्कर्ष: उपयोगकर्ता क्या करें?

फिलहाल, आम उपयोगकर्ताओं को घबराने की जरूरत नहीं है। 'संचार साथी' पोर्टल का उपयोग पूरी तरह से स्वैच्छिक है और यह आपकी सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है। सरकार के स्पष्टीकरण ने यह साफ कर दिया है कि इसका उद्देश्य निगरानी नहीं, बल्कि सशक्तिकरण (Empowerment) है।