भारत की 8.2% GDP वृद्धि: गिरते रुपये को मिला दुर्लभ सहारा, अर्थव्यवस्था ने तोड़े अनुमान

भारत ने दूसरी तिमाही में 8.2% की "विशाल" आर्थिक वृद्धि दर्ज की है, जिसने बाजार के सभी अनुमानों को पीछे छोड़ दिया है। यह खबर संघर्षरत भारतीय रुपये के लिए एक दुर्लभ राहत लेकर आई है, जो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर चल रहा था। जानिए इस उछाल के कारण और भविष्य के संकेत।

Dec 1, 2025 - 20:20
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भारत की 8.2% GDP वृद्धि: गिरते रुपये को मिला दुर्लभ सहारा, अर्थव्यवस्था ने तोड़े अनुमान
भारत की अर्थव्यवस्था ने भरी लंबी उड़ान: 8.2% की जीडीपी वृद्धि ने गिरते रुपये को दिया 'संजीवनी' सहारा

वैश्विक अनिश्चितताओं और अमेरिकी टैरिफ के दबाव के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने एक बार फिर अपनी मजबूती साबित की है। हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने जुलाई-सितंबर तिमाही (Q2) में 8.2% की शानदार आर्थिक वृद्धि दर (GDP Growth) दर्ज की है। यह आंकड़ा रॉयटर्स और अन्य वित्तीय एजेंसियों के 7.3% के अनुमानों से कहीं अधिक है। इस "विशाल" वृद्धि ने न केवल निवेशकों का भरोसा बढ़ाया है, बल्कि संघर्षरत भारतीय रुपये को भी एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण सहारा (Lift) प्रदान किया है।

रुपये के लिए 'दुर्लभ लिफ्ट' क्यों?

पिछले कुछ महीनों से भारतीय रुपया (INR) अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार दबाव में था और नवंबर में यह अपने अब तक के सबसे निचले स्तर (लगभग 89.79 प्रति डॉलर) पर पहुंच गया था। इसके पीछे मुख्य कारण विदेशी फंडों की निकासी (FII Outflows), अमेरिकी डॉलर की मजबूती और डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50% टैरिफ की चिंताएं थीं।

लेकिन, 8.2% की अप्रत्याशित जीडीपी वृद्धि ने बाजार की धारणा (Sentiment) को रातों-रात बदल दिया। इस खबर ने विदेशी निवेशकों को यह संकेत दिया कि तमाम वैश्विक चुनौतियों के बावजूद भारत की घरेलू मांग और विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) मजबूत बना हुआ है। विश्लेषकों का मानना है कि यह डेटा रुपये को और अधिक गिरने से रोकने में एक 'बफर' का काम करेगा और इसे स्थिर करने में मदद करेगा।

विकास के प्रमुख इंजन: विनिर्माण और खपत

इस तिमाही के आंकड़ों में सबसे चमकदार सितारा विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) रहा है, जिसने 9.1% की दर से वृद्धि दर्ज की। यह पिछले साल की इसी अवधि के 2.2% के मुकाबले एक बड़ी छलांग है। इसके अलावा, निजी खपत (Private Consumption) में भी सुधार देखा गया है, जो ग्रामीण मांग में वापसी का संकेत देता है।

  • कृषि क्षेत्र: मानसून के अच्छे रहने से कृषि क्षेत्र में 3.5% की वृद्धि हुई, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिला।

  • सरकारी खर्च: बुनियादी ढांचे पर सरकार के निरंतर खर्च ने भी विकास को गति दी है, हालांकि इसकी रफ्तार पिछली तिमाही के मुकाबले थोड़ी धीमी रही।

अमेरिकी टैरिफ और भविष्य की चुनौतियां

भले ही जीडीपी के आंकड़े उत्साहजनक हैं, लेकिन भविष्य की राह कांटों भरी हो सकती है। अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर प्रस्तावित उच्च टैरिफ एक बड़ी चिंता का विषय है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इसका असर अगली तिमाहियों में दिखना शुरू हो सकता है।

बैंक ऑफ बड़ौदा की अर्थशास्त्री अदिति गुप्ता के अनुसार, "जीडीपी का यह मजबूत आंकड़ा भावनाओं को थोड़ा सहारा देगा, लेकिन बाहरी चिंताएं, विशेष रूप से व्यापार और पूंजी प्रवाह को लेकर, अभी भी हावी हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि जब तक भारत-अमेरिका व्यापार समझौते (Trade Deal) पर स्थिति स्पष्ट नहीं होती, रुपये पर दबाव बना रह सकता है।

विशेषज्ञों की राय

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि यह जीडीपी वृद्धि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए भी एक राहत की खबर है। मजबूत विकास दर के कारण, केंद्रीय बैंक को ब्याज दरों में कटौती करने की कोई तत्काल जल्दी नहीं होगी, जो रुपये को डॉलर के मुकाबले स्थिर रखने में मदद कर सकता है।

मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंत नागेश्वरन ने भी आशा व्यक्त की है कि वित्त वर्ष 2026 के लिए भारत की कुल विकास दर 7% से अधिक रहेगी। उन्होंने कहा कि यह डेटा भारतीय अर्थव्यवस्था के 'लचीलेपन' (Resilience) का प्रमाण है।

निष्कर्ष

8.2% की यह वृद्धि दर भारत के लिए एक 'सिल्वर लाइनिंग' है। इसने न केवल गिरते रुपये को थमने का मौका दिया है, बल्कि यह भी साबित किया है कि भारत वैश्विक आर्थिक सुस्ती के बीच भी सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है। हालांकि, निवेशकों और नीति निर्माताओं को अमेरिकी नीतियों और वैश्विक भू-राजनीतिक स्थितियों पर पैनी नजर रखनी होगी, क्योंकि आने वाले महीने भारतीय मुद्रा और व्यापार के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।