IBM CEO अरविंद कृष्णा की चेतावनी: Tech Giants को AI पर अरबों डॉलर खर्च करने से पहले सोच लेना चाहिए
IBM के CEO अरविंद कृष्णा ने Google, Amazon और Microsoft को AI Infrastructure पर भारी खर्च को लेकर चेतावनी दी है। जानें क्यों उन्होंने कहा कि "Does not make sense to" और क्या है AGI की सच्चाई।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की दुनिया में मची होड़ के बीच, दुनिया की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित टेक कंपनियों में से एक IBM के सीईओ अरविंद कृष्णा (Arvind Krishna) ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने Google, Amazon और Microsoft जैसी दिग्गज टेक कंपनियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि AI इंफ्रास्ट्रक्चर (AI Infrastructure) पर आंख मूंदकर अरबों डॉलर खर्च करना आर्थिक रूप से समझदारी भरा फैसला नहीं हो सकता।
एक पॉडकास्ट में बात करते हुए अरविंद कृष्णा ने स्पष्ट किया कि टेक कंपनियों द्वारा डेटा सेंटर्स (Data Centers) और चिप्स पर किया जा रहा भारी निवेश शायद वह रिटर्न (Return on Investment) न दे पाए, जिसकी वे उम्मीद कर रहे हैं।
आइए विस्तार से जानते हैं कि IBM प्रमुख ने ऐसा क्यों कहा और इसके पीछे क्या तर्क हैं।
1. AI इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत और रिटर्न का गणित (The Math Doesn't Add Up)
अरविंद कृष्णा का मानना है कि बड़ी टेक कंपनियां एआई की दौड़ में बने रहने के लिए अंधाधुंध पैसा पानी की तरह बहा रही हैं। उन्होंने एक साधारण गणित के जरिए इसे समझाया:
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भारी भरकम खर्च: एक ऐसा डेटा सेंटर बनाने में जो सिर्फ 1 गीगावाट (Gigawatt) बिजली की खपत करे, लगभग $80 बिलियन (करीब 6.5 लाख करोड़ रुपये) का खर्च आता है।
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असंभव निवेश: अगर कोई एक कंपनी 20 से 30 गीगावाट क्षमता का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना चाहे, तो उसे करीब $1.5 ट्रिलियन का निवेश करना होगा। यह रकम टेस्ला (Tesla) जैसी कंपनी की पूरी मार्केट वैल्यू के बराबर है।
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रिटर्न की चुनौती: कृष्णा ने कहा, "मेरा मानना है कि इस निवेश पर रिटर्न मिलने का कोई रास्ता नहीं है। अगर आप $8 ट्रिलियन का कैपिटल एक्सपेंडिचर (Capex) कर रहे हैं, तो सिर्फ ब्याज चुकाने के लिए आपको $800 बिलियन के मुनाफे की जरूरत होगी।"
2. तकनीकी बदलाव और पुराने होते उपकरण (Obsolete Technology)
दूसरी बड़ी समस्या यह है कि तकनीक बहुत तेजी से बदल रही है।
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आज जो AI चिप्स और हार्डवेयर खरीदे जा रहे हैं, वे अगले 5 सालों में पुराने (Obsolete) हो जाएंगे।
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कंपनियों को हर 5 साल में अपना पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर बदलना पड़ेगा। कृष्णा ने समझाया, "आपको 5 साल के अंदर ही इन सबका उपयोग कर लेना होगा, क्योंकि उसके बाद आपको इन्हें फेंककर नई तकनीक खरीदनी होगी।"
3. AGI का सपना और हकीकत (The Reality of AGI)
टेक कंपनियों के इस भारी निवेश के पीछे एक बड़ा कारण 'आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस' (AGI) को हासिल करने की दौड़ है। AGI का मतलब है ऐसा AI जो इंसान की तरह या उससे बेहतर सोच सके। लेकिन अरविंद कृष्णा इस मामले में काफी व्यावहारिक हैं। उन्होंने कहा:
"मौजूदा तकनीक (LLMs) के साथ AGI तक पहुंचने की संभावना 1% से भी कम है।"
उनका मानना है कि आज के लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLMs) बहुत शक्तिशाली हैं, लेकिन वे अभी उस स्तर पर नहीं हैं कि इंसान जैसा दिमाग विकसित कर सकें।
4. टेक लेऑफ्स (Layoffs) की असली वजह AI नहीं
अरविंद कृष्णा ने एक और महत्वपूर्ण मिथक तोड़ा। उन्होंने कहा कि हाल ही में टेक जगत में हुई छंटनी (Layoffs) के लिए पूरी तरह से AI जिम्मेदार नहीं है।
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महामारी के दौरान ओवर-हायरिंग: कृष्णा के अनुसार, कोविड-19 महामारी (2020-2023) के दौरान कंपनियों ने जरूरत से ज्यादा लोगों को नौकरी पर रखा (Over-hiring)। कई कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या 30% से 100% तक बढ़ गई थी।
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करेक्शन (Correction): अब जो हो रहा है वह एक "नेचुरल करेक्शन" है। बिजनेस को संतुलित करने के लिए कंपनियां अब अपनी टीम छोटी कर रही हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि भविष्य में AI कुछ नौकरियों को जरूर प्रभावित करेगा।
5. IBM की रणनीति: एंटरप्राइज़ पर फोकस
जहां Google (Gemini), OpenAI (ChatGPT), और Microsoft (Copilot) आम उपभोक्ताओं (Consumers) के लिए रेस लगा रहे हैं, वहीं IBM का फोकस 'एंटरप्राइज़ AI' पर है।
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IBM का मानना है कि AI का असली फायदा व्यवसायों (Enterprises) की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में है।
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कृष्णा ने कहा कि AI कॉरपोरेट दुनिया में ट्रिलियन डॉलर की प्रोडक्टिविटी अनलॉक कर सकता है।
निष्कर्ष: क्या यह 'डॉट कॉम' जैसा बुलबुला है?
अरविंद कृष्णा की चेतावनी इस ओर इशारा करती है कि शायद टेक इंडस्ट्री एक और 'बुलबुले' (Bubble) की ओर बढ़ रही है। Google ने 2025 के लिए अपने खर्च का अनुमान $93 बिलियन और Amazon ने $125 बिलियन कर दिया है। ऐसे में IBM के सीईओ की यह सलाह—कि हर काम के लिए अपना खुद का विशाल मॉडल बनाना और इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना समझदारी नहीं है—उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण 'रियलिटी चेक' (Reality Check) हो सकती है।