महायुति में दरार: स्थानीय चुनावों से पहले 'गठबंधन धर्म' पर विवाद
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों से ठीक पहले महायुति गठबंधन (BJP, Shiv Sena, NCP) में दरारें उभरने लगी हैं। एकनाथ शिंदे ने 'गठबंधन धर्म' का पालन करने की अपील की है, जबकि 'पोचिंग' (दलबदल) के आरोपों ने तनाव बढ़ा दिया है। जानिए क्या है पूरा विवाद। (Cracks are emerging in the Mahayuti alliance (BJP, Shiv Sena, NCP) just before the local body elections in Maharashtra. Eknath Shinde has appealed to follow the 'dharma of alliance', while allegations of 'poaching' have escalated tensions. Know the full controversy.)
मुंबई: महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों (Local Body Polls) की सरगर्मियों के बीच सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन (Mahayuti Alliance) में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की शिवसेना के बीच चल रही रस्साकशी अब खुलकर सामने आ गई है। पूर्व पार्षदों और पदाधिकारियों को अपने पाले में करने (Poaching) को लेकर मचे घमासान के बीच, एकनाथ शिंदे ने अपने सहयोगियों को 'गठबंधन धर्म' (Alliance Dharma) का पालन करने की नसीहत दी है।
'गठबंधन धर्म' का सवाल क्यों उठा?
एक मराठी समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने साफ शब्दों में कहा कि गठबंधन के सभी सहयोगियों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और 'गठबंधन धर्म' का पालन करना चाहिए। उनका यह बयान तब आया है जब शिवसेना (शिंदे गुट) ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि वह उनके जमीनी कार्यकर्ताओं और पूर्व पार्षदों को तोड़ रही है।
शिंदे ने कहा, "हम गठबंधन धर्म का पालन करते हैं, और हमारी अपेक्षा है कि दूसरे भी ऐसा ही करें। मैंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से इस बारे में बात की है और यह तय हुआ है कि अब से न तो शिवसेना के किसी पूर्व पार्षद को बीजेपी में लिया जाएगा और न ही बीजेपी के किसी पार्षद को शिवसेना में।"
कल्याण-डोंबिवली और ठाणे बना अखाड़ा
विवाद की मुख्य जड़ कल्याण-डोंबिवली और ठाणे जैसे क्षेत्र हैं, जो पारंपरिक रूप से एकनाथ शिंदे के गढ़ माने जाते हैं। हाल ही में, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण ने डोंबिवली में शिवसेना के तीन पूर्व पार्षदों को बीजेपी में शामिल करवा लिया। यह कदम शिंदे गुट को नागवार गुजरा, क्योंकि ये पार्षद उनके बेटे और सांसद श्रीकांत शिंदे के करीबी माने जाते थे।
इस घटना ने तनाव को इतना बढ़ा दिया कि 18 नवंबर को हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में शिंदे गुट के कई मंत्री शामिल नहीं हुए। हालांकि, बाद में इसे स्थानीय चुनावों की व्यस्तता बताया गया, लेकिन अंदरखाने की नाराजगी साफ दिखाई दे रही थी।
फडणवीस और शिंदे के बीच सुलह की कोशिश
बढ़ते विवाद को देखते हुए, एकनाथ शिंदे और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच एक बैठक हुई। शिंदे ने बताया कि सीएम फडणवीस ने उनकी चिंताओं से सहमति जताई है और कहा है कि इस तरह की 'पोचिंग' तुरंत बंद होनी चाहिए।
शिंदे ने कहा, "हमारा एजेंडा विकास है। कुर्सी हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी, प्रमोद महाजन और बालासाहेब ठाकरे के समय से यह गठबंधन चल रहा है। छोटी-मोटी खटपट होती रहती है, लेकिन हम इसे सुलझा लेंगे।"
जमीनी हकीकत: 'मैत्रीपूर्ण मुकाबले' या 'भीतरघात'?
भले ही शीर्ष नेतृत्व 'सब कुछ ठीक है' का दावा कर रहा हो, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति अलग है। कई नगर परिषदों और नगर पंचायतों में बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी (अजित पवार गुट) एक-दूसरे के खिलाफ ही चुनाव लड़ रहे हैं। कहीं यह 'मैत्रीपूर्ण मुकाबला' है, तो कहीं यह एक-दूसरे को कमजोर करने की कोशिश।
विपक्षी महा विकास अघाड़ी (MVA) इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। एनसीपी (SP) प्रमुख शरद पवार और शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महायुति की इस कलह को 'सत्ता का लालच' करार दिया है।
आगे की राह
आगामी स्थानीय निकाय चुनाव महायुति के लिए एक लिटमस टेस्ट साबित होंगे। यदि गठबंधन सहयोगियों के बीच समन्वय नहीं बना रहा, तो इसका सीधा फायदा विपक्ष को मिल सकता है। एकनाथ शिंदे का 'गठबंधन धर्म' वाला बयान एक चेतावनी भी है और सुलह का प्रस्ताव भी। अब देखना यह होगा कि बीजेपी नेतृत्व इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है और क्या जमीनी स्तर पर 'पोचिंग' का खेल थमता है या नहीं।