राहत सामग्री पर राजनीतिक पोस्टर से विवाद: शिंदे और सरनाईक पर लगे आरोप

बाढ़ प्रभावित धारशिव में राहत सामग्री पर उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पालक मंत्री प्रताप सरनाईक के पोस्टर लगे होने से विवाद खड़ा हो गया है। इस लेख में विपक्ष के आरोपों, शिवसेना के बचाव और एक मानवीय आपदा पर हो रही राजनीति पर चर्चा की गई है।

Sep 25, 2025 - 22:11
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राहत सामग्री पर राजनीतिक पोस्टर से विवाद: शिंदे और सरनाईक पर लगे आरोप
बाढ़ प्रभावित धारशिव में राहत सामग्री पर राजनीतिक पोस्टर से विवाद: 'मानवीय त्रासदी पर राजनीति' के आरोप

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में आई भयानक बाढ़ के बीच, एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है, जिसने मानवीय सहायता के मकसद पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। धारशिव जिले में, जहां बाढ़ से सबसे ज्यादा तबाही हुई है, वहां वितरित की जा रही राहत सामग्री पर उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पालक मंत्री प्रताप सरनाईक के बड़े-बड़े पोस्टर लगे हुए थे। इस कृत्य ने विपक्षी दलों और स्थानीय निवासियों की कड़ी आलोचना को जन्म दिया है, जिन्होंने सत्तारूढ़ शिवसेना पर एक मानवीय संकट का राजनीतिक लाभ उठाने का आरोप लगाया है। यह घटना तब सामने आई जब सोशल मीडिया पर इन राहत पैकेजों की तस्वीरें वायरल हुईं। पैकेजों पर मंत्रियों की तस्वीरें और नाम छपे होने से लोग भड़क गए। शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, "यह समय राजनीतिक प्रचार का नहीं है।" राउत ने कहा कि अगर मंत्रियों को अपनी उदारता दिखानी ही है, तो उन्हें सरकारी फंड का इस्तेमाल करने के बजाय अपनी जेब से पैसा खर्च करना चाहिए। उन्होंने इस कृत्य को "मानवीय त्रासदी पर बेशर्म राजनीति" बताया।

यह विवाद एक ऐसे समय में हुआ है जब सरकार और विपक्षी दल दोनों बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। इस विवाद के बीच, स्वयं एकनाथ शिंदे ने भी टिप्पणी की। उन्होंने इस स्थिति को "दुर्भाग्यपूर्ण" बताते हुए कहा कि ऐसे संकट के समय में राजनीति करना गलत है। उन्होंने कहा कि "हमारी प्राथमिकता प्रभावित लोगों को जल्द से जल्द मदद पहुंचाना है।" शिंदे ने बचाव में यह भी कहा कि यह राहत सामग्री एक निजी पहल के तहत वितरित की जा रही है, न कि सरकारी फंड से।

शिवसेना के समर्थकों ने भी इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि यह केवल लोगों को यह बताने के लिए था कि राहत सामग्री कहां से आ रही है। लेकिन, विपक्षी दलों का तर्क है कि सरकार को लोगों की मदद बिना किसी राजनीतिक प्रचार के करनी चाहिए। उनका कहना है कि सरकारी पद पर बैठे मंत्रियों को निजी और सार्वजनिक पहल के बीच की सीमा का ध्यान रखना चाहिए।

यह घटना दर्शाती है कि कैसे भारत में राजनीतिक दल हर अवसर का उपयोग अपने राजनीतिक हित को साधने के लिए करते हैं। यह देखना बाकी है कि क्या इस विवाद के बाद सरकार अपनी रणनीति में बदलाव करती है, या फिर यह विवाद आने वाले समय में और बढ़ेगा।