"ताजमहल से भी बेहतर": अंकुर वारिकू के दावे ने इंटरनेट पर छेड़ी बहस, जानें कैलाश मंदिर का रहस्य
प्रसिद्ध उद्यमी अंकुर वारिकू (Ankur Warikoo) ने एलोरा की गुफाओं में स्थित कैलाश मंदिर (Kailasa Temple) को आगरा के ताजमहल (Taj Mahal) से बेहतर बताया है। जानिए क्यों 1200 साल पुराना यह 'एकाश्म' मंदिर दुनिया भर के इंजीनियरों के लिए आज भी एक पहेली बना हुआ है और इसे भारतीय वास्तुकला का सर्वोच्च नमूना क्यों माना जाता है।
भारत, अपनी अनगिनत ऐतिहासिक धरोहरों और वास्तुकला के चमत्कारों के लिए जाना जाता है। जब भी भारतीय स्मारकों की बात होती है, तो अक्सर आगरा का ताजमहल सबसे पहले जुबान पर आता है। लेकिन, हाल ही में मशहूर उद्यमी और कंटेंट क्रिएटर अंकुर वारिकू (Ankur Warikoo) ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है और लोगों का ध्यान महाराष्ट्र के एक छिपे हुए खजाने की ओर खींचा है।
वारिकू ने हाल ही में छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) के पास स्थित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल एलोरा की गुफाओं (Ellora Caves) का दौरा किया। वहां स्थित कैलाश मंदिर (गुफा संख्या 16) को देखने के बाद, उन्होंने इसे ताजमहल से भी 'बेहतर' और 'अधिक प्रभावशाली' बताया।
आइए जानते हैं कि आखिर इस मंदिर में ऐसा क्या खास है जो इसे दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल से भी ज्यादा विस्मयकारी बनाता है।
अंकुर वारिकू का वायरल दावा: "ताजमहल सुंदर है, लेकिन कैलाश..."
अपनी यात्रा के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (ट्विटर) पर अपने अनुभव साझा करते हुए, अंकुर वारिकू ने कैलाश मंदिर की भव्यता की प्रशंसा की। उन्होंने लिखा कि हालांकि ताजमहल अपनी समरूपता (Symmetry) और सुंदरता के लिए जाना जाता है, लेकिन कैलाश मंदिर का निर्माण जिस तकनीक से हुआ है, वह इंसानी कल्पना से परे है।
उनका तर्क था कि ताजमहल एक 'एडिटिव' (Additive) निर्माण है, यानी इसे ईंट-पत्थर जोड़कर बनाया गया है, जबकि कैलाश मंदिर एक 'सबट्रैक्टिव' (Subtractive) निर्माण है, जिसे एक विशाल पहाड़ को ऊपर से नीचे की ओर काटकर बनाया गया है। एक भी गलती पूरे मंदिर को बर्बाद कर सकती थी, लेकिन यहां गलती की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई।
कैलाश मंदिर: एक पत्थर, एक पहाड़ और हजारों साल का रहस्य
एलोरा की गुफा संख्या 16 में स्थित कैलाश मंदिर, भगवान शिव को समर्पित है। इसे 8वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम (Krishna I) के शासनकाल में बनवाया गया था। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह दुनिया का सबसे बड़ा एकाश्म (Monolithic) ढांचा है।
यहाँ इस मंदिर की कुछ विशेषताएं दी गई हैं जो इसे अद्वितीय बनाती हैं:
1. ऊपर से नीचे की ओर निर्माण (Top-Down Excavation): दुनिया की लगभग सभी इमारतें नीचे से ऊपर (नींव से शिखर तक) बनाई जाती हैं। लेकिन कैलाश मंदिर का निर्माण इसके ठीक विपरीत हुआ। शिल्पकारों ने पहाड़ की चोटी से खुदाई शुरू की और धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ते हुए खंभे, हॉल, और मूर्तियां उकेरीं। यह तकनीक इसे दुनिया का सबसे जटिल निर्माण बनाती है।
2. 2 लाख टन चट्टान का निष्कासन: पुरातत्वविदों का अनुमान है कि इस मंदिर को बनाने के लिए लगभग 2,00,000 से 4,00,000 टन भारी चट्टानों को पहाड़ से काटकर बाहर निकाला गया था। सबसे हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी मात्रा में निकाला गया मलबा आज तक आसपास के किसी भी इलाके में नहीं मिला है। यह एक रहस्य है कि 1200 साल पहले बिना आधुनिक मशीनों के यह कैसे संभव हुआ।
3. कोई जोड़ नहीं (No Joints): चूंकि यह पूरा मंदिर एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है, इसलिए इसमें पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी चूने या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। पूरा मंदिर अखंड है।
4. समय और श्रम: कहा जाता है कि इसे पूरा करने में लगभग 18 से 100 साल लगे और इसमें कई पीढ़ियों के शिल्पकारों ने काम किया। फिर भी, मंदिर की डिजाइन और शैली में एकरूपता है, जो उस समय की योजना (Planning) की उत्कृष्टता को दर्शाता है।
ताजमहल बनाम कैलाश मंदिर: एक तुलना
अंकुर वारिकू का बयान किसी विवाद को जन्म देने के लिए नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास के एक कम आंके गए (Underrated) पहलू को उजागर करने के लिए था।
-
ताजमहल (1632-1653): यह मुगल वास्तुकला का शिखर है, जो अपनी सफेद संगमरमर की नक्काशी और प्रेम के प्रतीक के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। यह 'ब्यूटी' (सुंदरता) का प्रतीक है।
-
कैलाश मंदिर (756-773 ईस्वी): यह भारतीय रॉक-कट वास्तुकला का शिखर है। यह 'इंजीनियरिंग' (अभियांत्रिकी) और 'डिवोशन' (भक्ति) का प्रतीक है।
जहां ताजमहल को बनाने में हजारों मजदूरों ने पत्थरों को जोड़ा, वहीं कैलाश मंदिर को बनाने में शिल्पकारों ने पत्थरों को हटाया। इंजीनियरिंग के दृष्टिकोण से, 'हटाने' की प्रक्रिया में जोखिम बहुत अधिक होता है क्योंकि एक बार पत्थर कट गया तो उसे वापस नहीं जोड़ा जा सकता। यही कारण है कि कई विशेषज्ञ और अब अंकुर वारिकू जैसे लोग इसे मानव इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं।
वास्तुकला का चमत्कार: क्या देखने को मिलता है यहाँ?
जब आप कैलाश मंदिर में प्रवेश करते हैं, तो आपको विश्वास नहीं होता कि यह सब हाथों से छेनी और हथौड़े की मदद से किया गया है।
-
नंदी मंडप और मुख्य मंदिर: मंदिर के आंगन में एक विशाल नंदी मंडप है, जो एक पत्थर के पुल द्वारा मुख्य मंदिर से जुड़ा हुआ है।
-
हाथियों की कतार: मुख्य मंदिर का आधार आदमकद हाथियों की एक कतार पर टिका हुआ है, जिससे ऐसा लगता है कि पूरा मंदिर हाथियों की पीठ पर खड़ा है।
-
रामायण और महाभारत के पैनल: मंदिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत की कहानियों को बहुत ही बारीक नक्काशी के साथ उकेरा गया है। 'रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाने' का दृश्य (Ravana shaking Mount Kailash) यहां की सबसे प्रसिद्ध मूर्तियों में से एक है।
-
जल निकासी प्रणाली: 8वीं शताब्दी में भी यहां वर्षा जल संचयन और जल निकासी की उत्तम व्यवस्था की गई थी, जो आज भी इंजीनियरों को चौंकाती है।
निष्कर्ष: भारत की 'अनकही' कहानी
अंकुर वारिकू का यह कहना कि "कैलाश मंदिर ताजमहल से बेहतर है," व्यक्तिगत पसंद का मामला हो सकता है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि कैलाश मंदिर को वह वैश्विक पहचान नहीं मिली जिसका वह हकदार है।
ताजमहल अपनी जगह बेमिसाल है, लेकिन एलोरा का कैलाश मंदिर मानव धैर्य, गणितीय सटीकता और कलात्मकता का एक ऐसा उदाहरण है, जिसका कोई दूसरा सानी पूरी दुनिया में नहीं है। वारिकू का यह ट्वीट एक अनुस्मारक (Reminder) है कि हमें अपनी धरोहरों को केवल 'सुंदरता' के चश्मे से नहीं, बल्कि उनके निर्माण के पीछे की 'प्रतिभा' और 'मेहनत' के नजरिए से भी देखना चाहिए।
यदि आपने अभी तक इस यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दौरा नहीं किया है, तो इसे अपनी बकेट लिस्ट में सबसे ऊपर रखें। यह केवल एक मंदिर नहीं है, यह पत्थर पर लिखी गई एक कविता है।