'सन ऑफ सरदार 2': CBFC ने मांगे बड़े बदलाव, 'कुत्ते की तरह' डायलॉग बदला गया
अजय देवगन की फिल्म 'Son of Sardaar 2' में CBFC ने कई संवादों में बदलाव की मांग की है। 'कुत्ते की तरह' जैसे डायलॉग को 'बहुत बुरी तरह' से बदला गया। जानें सेंसरशिप विवाद और फिल्म उद्योग पर इसके प्रभाव। (CBFC demanded major edits in Ajay Devgn's film 'Son of Sardaar 2'. A dialogue like 'Kutte ki tarah' was replaced. Know about the censorship controversy and its impact on the film industry.)

मुंबई: बॉलीवुड सुपरस्टार अजय देवगन की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'सन ऑफ सरदार 2' अपनी रिलीज से ठीक पहले एक बड़े विवाद में फंस गई है। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) ने फिल्म को सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए प्रमाणित करने से पहले इसमें कई प्रमुख संवादों में बदलाव की मांग की है। हालांकि बोर्ड ने फिल्म के किसी भी सीन पर 'कैंची' नहीं चलाई है, लेकिन कुछ डायलॉग को हटाने या बदलने के उनके फैसले ने फिल्म उद्योग और दर्शकों के बीच एक बार फिर सेंसरशिप और कलात्मक स्वतंत्रता पर बहस छेड़ दी है।
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब अजय देवगन अभिनीत यह रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म 1 अगस्त को दुनिया भर में रिलीज होने वाली है। फिल्म के ट्रेलर और गानों को पहले से ही दर्शकों का अच्छा रिस्पांस मिल रहा है, और ऐसे में सेंसर बोर्ड के हस्तक्षेप ने एक नई चर्चा को जन्म दिया है।
विवाद का केंद्र: 'कुत्ते की तरह' डायलॉग और अन्य बदलाव
CBFC की जांच समिति (Examining Committee) ने 'सन ऑफ सरदार 2' में कुल चार जगहों पर संवादों में बदलाव का निर्देश दिया है। ये बदलाव फिल्म की संवेदनशीलता और भाषा को ध्यान में रखते हुए किए गए हैं।
जिन प्रमुख डायलॉग्स में बदलाव किए गए हैं, वे हैं:
-
'कुत्ते की तरह' की जगह 'बहुत बुरी तरह': यह बदलाव विवाद का मुख्य केंद्र बन गया है। फिल्म में एक संवाद, "कुत्ते की तरह" को बोर्ड ने आपत्तिजनक माना। यह संभवतः किसी समुदाय या जानवर के प्रति असम्मानजनक माना गया होगा। बोर्ड ने इस डायलॉग को हटाकर "बहुत बुरी तरह" करने का सुझाव दिया, जिसे निर्माताओं ने स्वीकार कर लिया है। यह दिखाता है कि कैसे एक सामान्य रूप से इस्तेमाल होने वाली कहावत भी बोर्ड की जांच से नहीं बच पाई।
-
'आइटम' शब्द की जगह 'मैडम': एक अन्य संवाद में इस्तेमाल किए गए 'आइटम' शब्द को भी CBFC ने अनुचित माना। 'आइटम' शब्द का इस्तेमाल अक्सर महिलाओं के लिए किया जाता है, जिसे कई बार वस्तुकरण (objectification) के रूप में देखा जाता है। बोर्ड ने इसे 'मैडम' शब्द से बदलने का निर्देश दिया, जो अधिक सम्मानजनक है। यह बदलाव फिल्म में लैंगिक संवेदनशीलता (gender sensitivity) को बनाए रखने का प्रयास है।
-
चीन के राष्ट्रपति का नाम 'म्यूट' (Mute): फिल्म में एक जगह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम लिया गया था। यह एक बेहद संवेदनशील और अनूठा मामला है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की संवेदनशीलता को देखते हुए, बोर्ड ने इस नाम को 'म्यूट' करने का निर्देश दिया, ताकि कोई भी कूटनीतिक विवाद पैदा न हो। यह दर्शाता है कि सेंसर बोर्ड न केवल घरेलू, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संवेदनशीलता का भी ध्यान रखता है।
-
एक और डायलॉग में बदलाव: इसके अलावा, "भगवान..." से शुरू होकर "...पे लेज़िम" पर खत्म होने वाले एक और डायलॉग को भी एक अलग संवाद से बदलने का निर्देश दिया गया है। इस बदलाव का कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह संभवतः धार्मिक या सामाजिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने से संबंधित हो सकता है।
इन सभी बदलावों के बाद ही, 'सन ऑफ सरदार 2' को U/A 13+ सर्टिफिकेट मिला है। इसका मतलब है कि 13 साल से अधिक उम्र के लोग इस फिल्म को देख सकते हैं, और 13 साल से कम उम्र के बच्चों को इसे अपने माता-पिता के मार्गदर्शन में देखना होगा।
CBFC की भूमिका: रचनात्मक स्वतंत्रता बनाम सामाजिक जिम्मेदारी
यह घटना एक बार फिर भारतीय सिनेमा में सेंसरशिप और रचनात्मक स्वतंत्रता की पुरानी बहस को ताजा करती है। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) एक संवैधानिक निकाय है जो भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करता है। इसका मुख्य कार्य 1952 के सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत फिल्मों को सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए प्रमाणित करना है।
CBFC की शक्तियां और दिशा-निर्देश:
-
समाज की सुरक्षा: बोर्ड यह सुनिश्चित करता है कि फिल्मों में ऐसी कोई सामग्री न हो जो देश की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार या नैतिकता को नुकसान पहुंचाए।
-
संवेदनशीलता: बोर्ड विभिन्न समुदायों, धर्मों और संस्कृतियों की संवेदनशीलता का भी ध्यान रखता है, ताकि कोई भी सामग्री किसी की भावनाओं को आहत न करे।
-
वर्गीकरण: बोर्ड फिल्मों को उनकी सामग्री के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में प्रमाणित करता है, जैसे U (सार्वभौमिक), U/A (माता-पिता के मार्गदर्शन में), A (वयस्कों के लिए) और S (विशेष दर्शकों के लिए)।
हालांकि, फिल्म निर्माता अक्सर यह तर्क देते हैं कि सेंसर बोर्ड उनकी रचनात्मक स्वतंत्रता पर अनावश्यक प्रतिबंध लगाता है। हाल के वर्षों में 'आदिपुरुष', 'ओ माय गॉड 2', 'द कश्मीर फाइल्स' और 'पठान' जैसी फिल्मों पर हुए विवादों ने बोर्ड की भूमिका और उसके राजनीतिक झुकाव पर भी सवाल खड़े किए हैं। कुछ लोग मानते हैं कि बोर्ड की कार्यप्रणाली राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित होती है, जबकि बोर्ड का कहना है कि वे केवल कानून और सामाजिक मानदंडों का पालन करते हैं।
'सन ऑफ सरदार 2' में किए गए बदलाव, विशेषकर 'कुत्ते की तरह' जैसे डायलॉग पर, इसी बहस को एक नया आयाम देते हैं। जहां एक पक्ष इसे भाषा की शुद्धि और सामाजिक संवेदनशीलता के लिए जरूरी मानता है, वहीं दूसरा पक्ष इसे कलात्मक अभिव्यक्ति में अनुचित हस्तक्षेप बताता है।
फिल्म उद्योग पर प्रभाव और आगे की राह
इस तरह के विवाद फिल्म निर्माताओं के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी करते हैं:
-
रचनात्मक प्रक्रिया पर दबाव: निर्माताओं को अक्सर स्क्रिप्ट लिखते समय ही सेंसर बोर्ड के संभावित प्रतिबंधों का ध्यान रखना पड़ता है, जिससे उनकी रचनात्मकता सीमित हो सकती है।
-
लागत और समय: सेंसर बोर्ड द्वारा सुझाए गए बदलावों को लागू करने में अतिरिक्त लागत और समय लग सकता है, जिससे फिल्म की रिलीज में देरी हो सकती है।
-
व्यावसायिक प्रभाव: कुछ मामलों में, संवादों या दृश्यों को बदलने से फिल्म के मूल संदेश या हास्य में कमी आ सकती है, जिससे उसका व्यावसायिक प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।
-
नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी: दूसरी ओर, यह घटना फिल्म उद्योग के लिए एक अनुस्मारक है कि उन्हें अपने कंटेंट को लेकर अधिक नैतिक और सामाजिक रूप से जिम्मेदार होना चाहिए। सिनेमा एक शक्तिशाली माध्यम है और इसका प्रभाव समाज पर गहरा पड़ता है।
अजय देवगन की फिल्म 'सन ऑफ सरदार 2' के मामले में अच्छी बात यह है कि बोर्ड ने किसी भी दृश्य को काटने की मांग नहीं की। इससे फिल्म का मूल कथानक और एक्शन जस का तस रहेगा, जिससे दर्शकों को निराशा नहीं होगी।