कर्नाटक सीएम: सिद्धारमैया का बयान

कर्नाटक के CM सिद्धारमैया ने 'मुख्यमंत्री पद पर कोई रिक्ति नहीं' कहकर सत्ता-साझाकरण की अटकलों को खारिज किया। डीके शिवकुमार की आकांक्षाएं और कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान जारी। (Karnataka CM Siddaramaiah dismissed power-sharing speculations stating 'no vacancy for CM post'. DK Shivakumar's aspirations and internal Congress tussle continue.)

Jul 11, 2025 - 00:11
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कर्नाटक सीएम: सिद्धारमैया का बयान
कर्नाटक की राजनीति में उबाल: सीएम सिद्धारमैया का दृढ़ संदेश - 'मुख्यमंत्री पद पर कोई रिक्ति नहीं'

बेंगलुरु/नई दिल्ली: कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चल रही अटकलों और अंदरूनी खींचतान के बीच, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बेहद स्पष्ट और दृढ़ शब्दों में इन चर्चाओं पर विराम लगाने की कोशिश की है। उन्होंने सीधे तौर पर कहा है कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के लिए कोई रिक्ति (vacancy) नहीं है, और वह पूरे पांच साल के कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बने रहेंगे। यह बयान ऐसे समय में आया है जब उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के मुख्यमंत्री बनने की कथित आकांक्षाओं और ढाई-ढाई साल के सत्ता-साझाकरण (power-sharing) के पुराने फॉर्मूले को लेकर राजनीतिक गलियारों में लगातार चर्चाएं गर्म हैं। सिद्धारमैया का यह रुख पार्टी के भीतर के समीकरणों और राज्य सरकार की स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

सिद्धारमैया का स्पष्ट और बेबाक बयान

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दिल्ली में मीडिया से बातचीत करते हुए नेतृत्व परिवर्तन की सभी अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज में कहा, "क्या मुख्यमंत्री पद खाली है? मैं आपके सामने खड़ा हूं और मैं ही कर्नाटक का मुख्यमंत्री हूं।" उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि वह पूरे पांच साल का कार्यकाल मुख्यमंत्री के रूप में पूरा करेंगे। सिद्धारमैया ने यह भी दावा किया कि उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने भी यही बात कही है कि मुख्यमंत्री पद के लिए कोई रिक्ति नहीं है, और वह भी इसी बात को दोहरा रहे हैं।

यह बयान उस समय आया है जब सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार दोनों दिल्ली में हैं और कांग्रेस आलाकमान के साथ मुलाकात करने वाले हैं। हालांकि दोनों नेताओं ने अपनी दिल्ली यात्रा को "आधिकारिक कार्यों" से संबंधित बताया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान के संदर्भ में ही देख रहे हैं। सिद्धारमैया का यह बयान एक मजबूत संदेश है कि वह अपनी कुर्सी छोड़ने के मूड में नहीं हैं और पार्टी आलाकमान को भी उनके रुख का सम्मान करना होगा।

सत्ता-साझाकरण की अटकलें और डी.के. शिवकुमार की भूमिका

कर्नाटक कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर यह खींचतान कोई नई नहीं है। मई 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस बहुमत के साथ सत्ता में आई थी, तब मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच जबरदस्त खींचतान देखने को मिली थी। उस समय कई रिपोर्टों में यह दावा किया गया था कि कांग्रेस आलाकमान ने दोनों नेताओं के बीच एक "ढाई-ढाई साल" के सत्ता-साझाकरण फॉर्मूले पर सहमति बनाई थी, जिसके तहत सिद्धारमैया पहले ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनते और उसके बाद डी.के. शिवकुमार पदभार संभालते। हालांकि, इस समझौते की कभी भी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई थी।

उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार, जो कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) के अध्यक्ष भी हैं, को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाता रहा है। उनके समर्थकों ने लगातार यह मांग उठाई है कि शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। बेंगलुरु दक्षिण जिले के कई विधायक, जैसे चन्नापटना से विधायक सीपी योगेश्वर, ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वे शिवकुमार को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। योगेश्वर ने तो यहां तक कहा कि "हमारे सभी जिला विधायक चाहते हैं कि शिवकुमार मुख्यमंत्री बनें। इसमें कोई मतभेद नहीं है। आलाकमान को फैसला करना चाहिए।"

हालांकि शिवकुमार ने स्वयं सार्वजनिक रूप से मुख्यमंत्री पद के लिए सीधे तौर पर दावा करने से परहेज किया है, लेकिन उनके हालिया बयान और दिल्ली में प्रियंका गांधी वाड्रा से उनकी मुलाकात (कथित तौर पर सिद्धारमैया से अलग) और राहुल गांधी से मिलने का समय मांगने से अटकलें और तेज हुई हैं। इससे यह धारणा बनी है कि शिवकुमार गुट अभी भी सत्ता परिवर्तन के लिए सक्रिय रूप से दबाव बना रहा है, विशेषकर अक्टूबर 2025 में कथित ढाई साल का कार्यकाल पूरा होने की स्थिति में।

कांग्रेस पार्टी के भीतर की आंतरिक गतिशीलता

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही यह खींचतान कांग्रेस पार्टी के भीतर की गहरी आंतरिक गतिशीलता और विभिन्न गुटों के प्रभाव को दर्शाती है। सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों के अपने-अपने वफादार विधायकों और समर्थकों का एक मजबूत आधार है। सिद्धारमैया एक अनुभवी राजनेता हैं जिनकी प्रशासनिक पकड़ मजबूत मानी जाती है, जबकि शिवकुमार पार्टी संगठन पर अपनी पकड़ और संकट प्रबंधन क्षमताओं के लिए जाने जाते हैं।

इस अंदरूनी कलह का एक और पहलू पार्टी में "कई पावर सेंटर्स" का उभरना है, जैसा कि कांग्रेस मंत्री के.एन. राजन्ना ने कहा है। यह स्थिति सरकार के सुचारू कामकाज को प्रभावित कर सकती है और पार्टी के लिए भविष्य में मुश्किलें खड़ी कर सकती है। कुछ विधायकों ने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए धन आवंटन में कथित असमानता को लेकर भी नाराजगी व्यक्त की है और इस्तीफे तक की धमकी दी है, जो दर्शाता है कि असंतोष सिर्फ शीर्ष नेताओं तक सीमित नहीं है।

कांग्रेस आलाकमान, जिसमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी शामिल हैं, ने इस स्थिति को संभालने के लिए सतर्क दृष्टिकोण अपनाया है। वे सीधे तौर पर नेतृत्व परिवर्तन पर टिप्पणी करने से बचते रहे हैं और कहते हैं कि "फैसला आलाकमान का होगा।" यह रुख दोनों खेमों को शांत रखने और पार्टी में एक स्पष्ट विभाजन से बचने की कोशिश हो सकती है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि इस राजनीतिक अस्थिरता पर अगर समय रहते लगाम नहीं लगाई गई, तो यह न केवल सरकार के शासन को प्रभावित कर सकता है, बल्कि आगामी चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

सरकार की स्थिरता और शासन पर प्रभाव

किसी भी राज्य सरकार के शीर्ष पर इस तरह की राजनीतिक खींचतान का सीधा असर प्रशासन की स्थिरता और शासन पर पड़ सकता है। यदि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच लगातार अविश्वास या शक्ति संघर्ष की स्थिति बनी रहती है, तो यह नीतिगत निर्णयों, विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन और सरकारी योजनाओं के प्रभावी वितरण में बाधा डाल सकता है। अधिकारियों और नौकरशाहों में भी अनिश्चितता का माहौल पैदा हो सकता है, जिससे उनकी कार्यकुशलता प्रभावित हो सकती है।