बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना को 'मानवता के विरुद्ध अपराध' में मौत की सजा
बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने अपदस्थ प्रधान मंत्री शेख हसीना को 'मानवता के विरुद्ध अपराधों' के लिए मौत की सजा सुनाई है। यह फैसला पिछले साल के छात्र विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई मौतों में उनकी भूमिका को लेकर दिया गया है, जिसके बाद हसीना भारत में निर्वासित जीवन जी रही हैं। (Bangladesh's International Crimes Tribunal (ICT) has sentenced ousted Prime Minister Sheikh Hasina to death for 'crimes against humanity'. The verdict relates to her role in the killings during last year's student protests, following which Hasina has been living in exile in India.)
बांग्लादेश की राजनीति और न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक और स्तब्ध कर देने वाला फैसला आया है। ढाका में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (International Crimes Tribunal - ICT) ने देश की सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली नेता और अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को 'मानवता के विरुद्ध अपराधों' (Crimes Against Humanity) का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई है। यह फैसला पिछले वर्ष (2024) छात्र-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों पर उनकी सरकार द्वारा की गई हिंसक कार्रवाई से जुड़ा है, जिसके कारण उनकी अवामी लीग सरकार का पतन हुआ था।
हसीना पर मुख्य रूप से छात्रों की हत्याओं को रोकने में विफल रहने और इसके लिए प्रत्यक्ष आदेश देने का आरोप लगाया गया था।
फैसले के मुख्य बिंदु और आरोप
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अपराध की प्रकृति: न्यायाधिकरण ने अपने आरोपपत्र में कहा कि "शेख हसीना ने मानवता के विरुद्ध अपराध किए हैं।"
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हत्याओं का आरोप: अदालत ने 5 अगस्त को चंखारपुल में प्रदर्शनकारियों की घातक हथियारों से की गई हत्याओं का हवाला दिया। न्यायाधिकरण ने कहा कि उस समय की प्रधानमंत्री शेख हसीना, तत्कालीन गृह मंत्री और पुलिस महानिरीक्षक के आदेशों और पूर्ण जानकारी के तहत छात्रों की हत्याएं हुईं।
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मास्टरमाइंड: मुख्य अभियोजक मोहम्मद ताज़ुल इस्लाम ने हसीना को प्रदर्शनकारियों पर हमलों का "मास्टरमाइंड और मुख्य वास्तुकार" करार दिया।
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अन्य सजाएं: हसीना के साथ, पूर्व गृह मंत्री असदोज्जमां खान कमल को भी मौत की सजा सुनाई गई है, जबकि पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को पांच साल की जेल की सजा मिली है।
राजनीतिक परिदृश्य और निर्वासित जीवन
बड़ी संख्या में हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद हसीना ने अगस्त 2024 में पद से इस्तीफा दे दिया था और उसी दिन देश छोड़कर भाग गईं थीं। वह अब भारत में निर्वासित जीवन जी रही हैं। भारत सरकार ने इस मामले पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, अंतरिम सरकार ने मुहम्मद यूनुस के मुख्य सलाहकार के रूप में पदभार संभालने के बाद भारत से हसीना को वापस भेजने का अनुरोध किया है।
फैसले से पहले, हसीना ने इन आरोपों को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया था। उन्होंने दावा किया था कि यह न्यायाधिकरण उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा नियंत्रित है जो अवामी लीग की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।
यह फैसला बांग्लादेश में राजनीतिक और सुरक्षा दोनों मोर्चों पर तनाव बढ़ा सकता है। फैसले की घोषणा से पहले ही ढाका में बड़े पैमाने पर सुरक्षा बढ़ा दी गई थी, और पुलिस आयुक्त ने आगजनी या हिंसा में शामिल किसी भी व्यक्ति के खिलाफ गोली मारने के आदेश (shoot-at-sight orders) जारी कर दिए थे।
यह घटनाक्रम बांग्लादेश की राजनीति में एक अस्थिर दौर की शुरुआत का संकेत देता है और दक्षिण एशिया के लिए कूटनीतिक रूप से एक संवेदनशील मामला बन गया है।