बॉम्बे हाई कोर्ट: बुजुर्ग नागरिकों के खिलाफ जुए के मामले में कार्यवाही पर रोक

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने वरिष्ठ नागरिकों के एक समूह के खिलाफ जुए के मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी है। अदालत ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए, जिसमें 75 से 82 वर्ष की आयु के बुजुर्गों को जुए के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। जानिए क्या है पूरा मामला और कोर्ट ने पुलिस से क्या पूछा।

Nov 25, 2025 - 19:34
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बॉम्बे हाई कोर्ट: बुजुर्ग नागरिकों के खिलाफ जुए के मामले में कार्यवाही पर रोक
लेख: बॉम्बे हाई कोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ जुए के मामले में कार्यवाही रोकी, पुलिस से पूछे तीखे सवाल

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने मुंबई पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए वरिष्ठ नागरिकों के एक समूह के खिलाफ दर्ज जुए (Gambling) के मामले में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। बांद्रा पुलिस द्वारा की गई इस कार्रवाई में 75 से 82 वर्ष की आयु के बुजुर्गों को जुए के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जिसे लेकर अदालत ने पुलिस को फटकार लगाई है।

क्या है पूरा मामला?

6 नवंबर को मुंबई के बांद्रा पुलिस स्टेशन की एक टीम ने एक आवासीय परिसर में छापा मारा। पुलिस को कथित तौर पर गुप्त सूचना मिली थी कि वहां जुए की गतिविधियां चल रही हैं। छापेमारी के दौरान पुलिस ने वहां मौजूद एक पुरुष और पांच महिलाओं को हिरासत में लिया, जिनकी उम्र 75 से 82 साल के बीच थी। पुलिस का आरोप था कि ये बुजुर्ग ताश के पत्तों (Three-card games) के साथ जुआ खेल रहे थे और पैसे के लेन-देन के लिए रंगीन प्लास्टिक टोकन का इस्तेमाल कर रहे थे।

याचिकाकर्ताओं का पक्ष

इस मामले में आरोपी बनाए गए 81 वर्षीय हरपाल छाबड़ा और चार अन्य महिलाओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर एफआईआर (FIR) रद्द करने की मांग की। उनके वकील वेस्ले मेनेजेस ने अदालत को बताया कि पुलिस की यह कार्रवाई पूरी तरह से बेबुनियाद और उत्पीड़न है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि:

  • पुलिस ने बुजुर्गों को शाम 4:30 बजे से 8:30 बजे तक हिरासत में रखा।

  • इस दौरान उन्हें पानी या दवाइयां भी नहीं दी गईं, जबकि वे सभी वरिष्ठ नागरिक हैं और कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।

  • उनसे जबरदस्ती कई दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए गए।

  • पुलिस ने बिना किसी स्वतंत्र गवाह या ठोस सबूत के यह कार्रवाई की।

कोर्ट ने पुलिस से पूछे सवाल

मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अनखाद की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए। कोर्ट ने सरकारी वकील से पूछा, "आप ऐसे मामलों के पीछे क्यों पड़े हैं? यह जुआ कैसे है?" (Why do you pursue such matters? How is this gambling?)

अदालत ने पाया कि एफआईआर में न तो कोई स्वतंत्र शिकायतकर्ता है और न ही कोई ऐसा गवाह जो पुलिस के दावों की पुष्टि कर सके। इसके अलावा, जुए या सट्टेबाजी के आरोपों को साबित करने के लिए कोई दस्तावेजी सबूत भी पेश नहीं किया गया।

कानूनी पहलू और प्रक्रियात्मक खामियां

याचिकाकर्ताओं ने पुलिस पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 43(5) और 48 के उल्लंघन का भी आरोप लगाया है।

  • धारा 43(5): यह धारा कहती है कि असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, किसी महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि महिलाओं को देर शाम तक हिरासत में रखा गया।

  • सबूतों का अभाव: कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष का पूरा मामला केवल पुलिस टीम के बयानों पर आधारित है, जिससे एफआईआर की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है।

आगे क्या होगा?

हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता और तथ्यों को देखते हुए एफआईआर पर आगे की कार्यवाही पर रोक (Stay) लगा दी है। मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी, 2026 को तय की गई है।

यह फैसला वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों और पुलिस की शक्तियों के दुरुपयोग पर एक महत्वपूर्ण नजीर पेश करता है। कोर्ट ने स्पष्ट संकेत दिया है कि केवल संदेह या मामूली गतिविधियों के आधार पर बुजुर्गों को परेशान करना स्वीकार्य नहीं है। यह घटना पुलिस प्रशासन के लिए भी एक सबक है कि कानून का पालन करते समय संवेदनशीलता और विवेक का उपयोग कितना जरूरी है।