छत्रपति संभाजीनगर: पर्यवेक्षण गृह मामला
छत्रपति संभाजीनगर में लड़कियों के पर्यवेक्षण गृह में दुर्व्यवहार का मामला, 3 कर्मचारी गिरफ्तार। लाइसेंस रद्द होने पर भी बच्चों को रखा गया। High Court ने लिया संज्ञान। (Abuse case in girls' observation home in Chhatrapati Sambhajinagar, 3 staff arrested. Children kept despite license cancellation. High Court takes cognizance.)

छत्रपति संभाजीनगर, महाराष्ट्र: छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) स्थित एक लड़कियों के पर्यवेक्षण गृह से सामने आए एक बेहद गंभीर मामले ने बाल कल्याण संस्थानों में सुरक्षा और जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। छावनी पुलिस ने एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़की की शिकायत के बाद त्वरित कार्रवाई करते हुए इस पर्यवेक्षण गृह की चार महिला कर्मचारियों के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज की है, जिनमें से तीन को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस घटना ने न केवल शहर में बल्कि राज्य भर में चिंता का माहौल पैदा कर दिया है, क्योंकि यह मामला सीधे तौर पर उन बच्चों की सुरक्षा से जुड़ा है जिन्हें कानूनी प्रक्रिया के तहत सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी इन संस्थानों की होती है।
यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने इस गृह से नौ नाबालिगों के भागने की रिपोर्टों के बाद स्वतः संज्ञान लेते हुए एक आपराधिक जनहित याचिका (PIL) शुरू की थी। इस घटनाक्रम ने पर्यवेक्षण गृहों के संचालन और उनमें बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की प्रक्रिया की गहन समीक्षा की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
घटना का विवरण और गंभीर आरोप
मामले की जड़ 30 जून को हुई एक घटना से जुड़ी है, जब इस पर्यवेक्षण गृह से नौ नाबालिग लड़कियाँ भाग निकली थीं। इस घटना ने पहले ही संस्थान के अंदर की अव्यवस्था और असुरक्षित परिस्थितियों की ओर इशारा किया था। इसके बाद, राजस्थान की एक 17 वर्षीय लड़की ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसने इस मामले को और भी गंभीर बना दिया। हालांकि शिकायत का विस्तृत विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन सूत्रों और हाई कोर्ट के संज्ञान से पता चलता है कि आरोप लड़कियों के साथ 'उत्पीड़न और असुरक्षित स्थितियों' से संबंधित हैं। इन आरोपों में संभवतः शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार, लापरवाही, या पर्यवेक्षण गृह के नियमों और बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन शामिल हो सकता है।
पुलिस ने अपनी शिकायत में पर्यवेक्षण गृह की चार महिला कर्मचारियों को नामजद किया है, जिनमें से सिस्टर अल्का, सिस्टर वैलरी और सिस्टर सुचिता को गिरफ्तार कर लिया गया है। चौथी आरोपी की तलाश जारी है। इन गिरफ्तारियों से संकेत मिलता है कि पुलिस को आरोपों में पर्याप्त प्रारंभिक साक्ष्य मिले हैं। इन आरोपों की संवेदनशीलता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि ये ऐसे बच्चों के खिलाफ हैं जो पहले से ही कमजोर स्थिति में हैं और जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है। पर्यवेक्षण गृह ऐसे स्थान होते हैं जहाँ उन नाबालिगों को रखा जाता है जो कानून का उल्लंघन करते पाए गए हैं, या जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है, या जो मुश्किल परिस्थितियों में पाए गए हैं। ऐसे स्थानों पर दुर्व्यवहार की कोई भी घटना प्रणाली में गहरे दोषों को उजागर करती है।
पुलिस कार्रवाई और गहन जांच
छावनी पुलिस ने इस संवेदनशील मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए बुधवार को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न संबंधित धाराओं और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की है। भारतीय न्याय संहिता, जो हाल ही में लागू हुई है, बाल दुर्व्यवहार और संबंधित अपराधों से निपटने के लिए कड़े प्रावधान करती है। किशोर न्याय अधिनियम, 2015, विशेष रूप से बच्चों के अधिकारों और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, और इसके तहत कार्रवाई उन लोगों के खिलाफ होती है जो बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के कर्तव्य का उल्लंघन करते हैं।
पुलिस अब गिरफ्तार किए गए कर्मचारियों से पूछताछ कर रही है और मामले की गहन जांच कर रही है। जांच का उद्देश्य आरोपों की सत्यता का पता लगाना, इसमें शामिल अन्य व्यक्तियों की पहचान करना, और पर्यवेक्षण गृह के अंदर की कार्यप्रणाली को समझना है जो ऐसी घटनाओं का कारण बनी। इसमें गवाहों से पूछताछ, फोरेंसिक साक्ष्य जुटाना (यदि कोई हो), और पर्यवेक्षण गृह के रिकॉर्ड की जांच शामिल होगी। पुलिस यह भी जांच कर रही है कि क्या गृह के अन्य कर्मचारी या प्रबंधन इस दुर्व्यवहार में शामिल थे या उन्होंने इसे छिपाने का प्रयास किया।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, जांच में किसी भी लापरवाही की संभावना कम है। पुलिस के साथ-साथ, बाल कल्याण समिति (CWC) और अन्य संबंधित सरकारी एजेंसियाँ भी इस मामले में शामिल होंगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रभावित बच्चों को आवश्यक परामर्श, सुरक्षा और पुनर्वास सहायता मिले। यह गिरफ्तारी न केवल दुर्व्यवहार के कथित कृत्यों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को न्याय के कटघरे में लाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह बाल कल्याण संस्थानों में जवाबदेही बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी भेजती है।
पर्यवेक्षण गृहों की भूमिका और चुनौतियाँ
लड़कियों के पर्यवेक्षण गृह जैसे संस्थान, किशोर न्याय प्रणाली का एक अभिन्न अंग हैं। इनका प्राथमिक उद्देश्य उन नाबालिगों को अस्थायी आश्रय, देखभाल और पुनर्वास प्रदान करना है जिन्हें कानूनी प्रक्रियाओं के तहत हिरासत में लिया गया है या जिन्हें समाज में देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है। इन गृहों को एक सुरक्षित और पोषण संबंधी वातावरण प्रदान करना चाहिए जहाँ बच्चों को शिक्षा, परामर्श और जीवन कौशल प्रशिक्षण मिल सके, ताकि वे समाज में फिर से एकीकृत हो सकें।
हालांकि, ऐसे संस्थानों का संचालन चुनौतियों से भरा होता है। कर्मचारियों पर अक्सर बच्चों की बड़ी संख्या की देखभाल करने का दबाव होता है, और उन्हें भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील बच्चों के साथ काम करने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधन नहीं मिल पाते हैं। कर्मचारियों की पृष्ठभूमि की उचित जाँच (बैकग्राउंड चेक) और उनकी निरंतर निगरानी भी एक चुनौती होती है। इसके अतिरिक्त, इन गृहों में अपर्याप्त फंडिंग, भीड़भाड़ और बुनियादी ढांचे की कमी जैसी समस्याएँ भी हो सकती हैं, जो बच्चों की सुरक्षा और कल्याण से समझौता कर सकती हैं। यह छत्रपति संभाजीनगर मामले में उजागर हुआ जब बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने नोट किया कि गृह का संचालन लाइसेंस 5 मई को समाप्त हो गया था और उसे नवीनीकृत नहीं किया गया था, फिर भी लगभग 80 लड़कियों को बिना किसी कानूनी प्राधिकरण के वहाँ रखा गया था। यह एक गंभीर उल्लंघन है जो इन संस्थानों की निगरानी और विनियमन में प्रणालीगत कमजोरियों को दर्शाता है। एक बिना लाइसेंस वाला संस्थान न केवल बच्चों को असुरक्षित स्थितियों में रखता है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी अवैध है और बच्चों के अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। ऐसे गृहों में बच्चों को रखना, जहां लाइसेंस समाप्त हो चुका हो, उनकी सुरक्षा और कल्याण के प्रति घोर लापरवाही को दर्शाता है।
इस प्रकार की घटनाएँ बाल कल्याण प्रणाली में विश्वास को कमजोर करती हैं और इस बात पर जोर देती हैं कि पर्यवेक्षण गृहों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियमों, नियमित ऑडिट, कर्मचारियों के लिए उचित प्रशिक्षण और संवेदीकरण, और प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र की तत्काल आवश्यकता है।
बाल कल्याण निकायों की प्रतिक्रिया और आगे की राह
छत्रपति संभाजीनगर में इस मामले के सामने आने के बाद, बाल कल्याण निकायों और सरकारी एजेंसियों पर दबाव बढ़ गया है ताकि वे स्थिति का समाधान करें और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकें। बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ द्वारा स्वतः संज्ञान (suo motu) में आपराधिक जनहित याचिका (PIL) शुरू करना इस मामले की गंभीरता को रेखांकित करता है और यह सुनिश्चित करेगा कि न्यायिक निरीक्षण के तहत जांच और कार्रवाई हो।
आगे की राह में संभावित कदम:
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बच्चों की तत्काल सुरक्षा और पुनर्वास: पर्यवेक्षण गृह में रहने वाली सभी लड़कियों, विशेषकर शिकायतकर्ता और उन नौ लड़कियों को जो भाग निकली थीं, की तत्काल सुरक्षा सुनिश्चित करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्हें सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए और मनोवैज्ञानिक परामर्श तथा अन्य आवश्यक सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
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व्यापक ऑडिट और निरीक्षण: राज्य सरकार और बाल कल्याण समितियों को ऐसे सभी पर्यवेक्षण गृहों का तत्काल और व्यापक ऑडिट करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे निर्धारित मानकों और लाइसेंसिंग आवश्यकताओं का पालन कर रहे हैं। लाइसेंस के नवीनीकरण की स्थिति और सुविधाओं की जाँच की जानी चाहिए।
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कर्मचारियों की पृष्ठभूमि की जाँच और प्रशिक्षण: ऐसे संस्थानों में नियुक्त किए जाने वाले सभी कर्मचारियों की पृष्ठभूमि की गहन जाँच (background verification) अनिवार्य होनी चाहिए। उन्हें बाल मनोविज्ञान, बाल अधिकारों और दुर्व्यवहार से निपटने के लिए संवेदनशील बनाने के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
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शिकायत निवारण तंत्र: बच्चों के लिए एक सुलभ और सुरक्षित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए जहाँ वे बिना किसी डर के दुर्व्यवहार या लापरवाही की रिपोर्ट कर सकें। बाहरी एजेंसियों द्वारा नियमित और अप्रत्याशित निरीक्षण भी आवश्यक हैं।
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कड़ी नियामक प्रणाली: सरकार को पर्यवेक्षण गृहों के लिए नियामक और निगरानी प्रणाली को और मजबूत करना चाहिए, जिसमें उल्लंघन के लिए कड़े दंड और लाइसेंस रद्द करने के प्रावधान शामिल हों।
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जन जागरूकता और समुदाय की भागीदारी: बाल दुर्व्यवहार के संकेतों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना और समुदायों को बाल कल्याण में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है।
यह मामला एक चेतावनी है कि बाल कल्याण संस्थानों को केवल 'आश्रय' प्रदान करने वाले स्थान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि बच्चों के सुरक्षित विकास और पुनर्वास के लिए एक भरोसेमंद और जवाबदेह वातावरण के रूप में देखा जाना चाहिए।