MAT का अहम फैसला: 498A मामले में बरी उम्मीदवार को पुलिस भर्ती के लिए फिर से विचार करने का आदेश

महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (MAT) की औरंगाबाद पीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। ट्रिब्यूनल ने पुलिस विभाग को निर्देश दिया है कि घरेलू हिंसा (धारा 498A) के मामले में बरी हो चुके एक उम्मीदवार की पुलिस सिपाही पद पर नियुक्ति के लिए दोबारा विचार किया जाए। जानिए क्या है पूरा मामला और कोर्ट का तर्क।

Nov 25, 2025 - 18:59
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MAT का अहम फैसला: 498A मामले में बरी उम्मीदवार को पुलिस भर्ती के लिए फिर से विचार करने का आदेश
लेख: घरेलू विवाद के मुकदमों से सरकारी नौकरी पर नहीं लग सकता ग्रहण, MAT ने पुलिस विभाग को दिया पुनर्विचार का निर्देश

छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद): सरकारी नौकरी, विशेषकर पुलिस विभाग में भर्ती होने का सपना देखने वाले युवाओं के लिए महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (MAT - Maharashtra Administrative Tribunal) की औरंगाबाद पीठ ने एक राहत भरा और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई उम्मीदवार वैवाहिक विवाद या धारा 498A (ससुराल वालों द्वारा क्रूरता) जैसे मामलों में अदालत से बरी हो चुका है, तो उसे केवल पुरानी एफआईआर (FIR) के आधार पर नौकरी से वंचित नहीं किया जा सकता।

MAT ने पुलिस प्रशासन को निर्देश दिया है कि वह एक ऐसे उम्मीदवार की उम्मीदवारी पर फिर से विचार करे जिसे पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए क्रूरता के मामले के कारण पुलिस सिपाही (Police Sepoy) पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जबकि वह अदालत से बरी हो चुका था।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला महाराष्ट्र के एक युवक से जुड़ा है जिसने पुलिस सिपाही भर्ती प्रक्रिया में भाग लिया था। उम्मीदवार ने शारीरिक और लिखित परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की थी और उसका नाम चयन सूची में भी शामिल था। हालांकि, पुलिस सत्यापन (Police Verification) की प्रक्रिया के दौरान यह बात सामने आई कि उम्मीदवार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिला के साथ क्रूरता) और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज था।

भले ही सक्षम न्यायालय ने उम्मीदवार को इस मामले में पहले ही बरी (Acquit) कर दिया था, लेकिन नियुक्ति प्राधिकारी (Appointing Authority) ने उम्मीदवार के खिलाफ दर्ज इस आपराधिक मामले का हवाला देते हुए उसे पुलिस बल के लिए अनुपयुक्त माना और उसकी नियुक्ति रद्द कर दी। इसके खिलाफ उम्मीदवार ने MAT का दरवाजा खटखटाया।

MAT का तर्क और अवलोकन

MAT के उपाध्यक्ष जस्टिस पी.आर. बोरा की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। ट्रिब्यूनल ने माना कि वैवाहिक विवादों से जुड़े मामले अक्सर आवेश में या गलतफहमी के कारण दर्ज कराए जाते हैं और इनका स्वरूप गंभीर आपराधिक प्रवृत्ति (Hardcore Criminality) का नहीं होता है।

फैसले के मुख्य बिंदु:

  1. बरी होने का महत्व: ट्रिब्यूनल ने कहा कि जब एक सक्षम अदालत ने उम्मीदवार को आरोपों से बरी कर दिया है, तो प्रशासनिक अधिकारियों को उसे अपराधी मानकर खारिज नहीं करना चाहिए। 'बरी' होने का मतलब है कि कानून की नजर में व्यक्ति निर्दोष है।

  2. अपराध की प्रकृति: MAT ने इस बात पर जोर दिया कि 498A जैसे मामले घरेलू कलह का परिणाम होते हैं। इसे नैतिक अधमता (Moral Turpitude) या गंभीर अपराध की श्रेणी में रखकर किसी युवा के भविष्य को बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।

  3. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश: ट्रिब्यूनल ने सुप्रीम कोर्ट के 'अवतार सिंह बनाम भारत संघ' मामले का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि हर आपराधिक मामला सरकारी नौकरी के लिए अयोग्यता का आधार नहीं हो सकता। प्रशासन को मामले की गंभीरता और सबूतों के आधार पर विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।

प्रशासन को निर्देश

MAT ने पुलिस विभाग द्वारा उम्मीदवार को अयोग्य ठहराने वाले आदेश को रद्द तो नहीं किया, लेकिन उसे 'पुनर्विचार' (Reconsideration) के लिए वापस भेज दिया। ट्रिब्यूनल ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे यांत्रिक रूप से (Mechanically) निर्णय लेने के बजाय, मामले के तथ्यों, बरी होने के आदेश और अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार की नियुक्ति पर 8 सप्ताह के भीतर नया निर्णय लें।

युवाओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?

भारत में अक्सर देखा जाता है कि दहेज उत्पीड़न या घरेलू हिंसा के मामलों में पूरे परिवार का नाम एफआईआर में लिखवा दिया जाता है। कई बार युवा, जो सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे होते हैं, झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर लगाए गए आरोपों के कारण चयन प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं।

MAT का यह फैसला ऐसे उम्मीदवारों के लिए एक उम्मीद की किरण है। यह स्थापित करता है कि पुलिस सत्यापन का उद्देश्य किसी व्यक्ति के चरित्र की जांच करना है, न कि उसे अतीत के उन मुकदमों के लिए दंडित करना जिनमें वह निर्दोष साबित हो चुका है।

निष्कर्ष

यह फैसला प्रशासन को यह संदेश देता है कि भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय का पालन होना चाहिए। किसी उम्मीदवार को केवल इस आधार पर खारिज करना कि उस पर कभी मुकदमा चला था (भले ही वह बरी हो गया हो), प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। अब गेंद पुलिस प्रशासन के पाले में है कि वे ट्रिब्यूनल के निर्देशों के आलोक में क्या फैसला लेते हैं।