महाराष्ट्र में 'विशेष जन सुरक्षा विधेयक' पारित: विपक्ष को दुरुपयोग की आशंका

महाराष्ट्र विधानसभा ने 'विशेष जन सुरक्षा विधेयक' पारित कर दिया है, जिसका सरकार का उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद पर लगाम लगाना है। हालांकि, विपक्ष ने इसके दुरुपयोग, विशेषकर राजनीतिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ, की गहरी चिंताएं व्यक्त की हैं। जानें इस महत्वपूर्ण बिल के प्रावधान, सरकार का पक्ष और विपक्षी दलों की आपत्तियां। Maharashtra Bill, Public Security, Opposition Concerns.

Jul 11, 2025 - 20:57
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महाराष्ट्र में 'विशेष जन सुरक्षा विधेयक' पारित: विपक्ष को दुरुपयोग की आशंका
महाराष्ट्र विधानसभा में 'विशेष जन सुरक्षा विधेयक' पारित: विपक्ष ने जताया दुरुपयोग का गहरा अंदेशा, गरमाई सियासी बहस

छत्रपति संभाजी नगर, महाराष्ट्र: महाराष्ट्र विधानसभा ने हाल ही में 'महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा विधेयक' (Maharashtra Special Public Security Bill) को ध्वनि मत से पारित कर दिया है। राज्य सरकार का दावा है कि इस नए कानून का उद्देश्य राज्य में सक्रिय वामपंथी उग्र संगठनों की कथित गैरकानूनी गतिविधियों पर प्रभावी ढंग से नकेल कसना है। हालांकि, इस विधेयक के पारित होने के दौरान विपक्ष ने गहरी चिंताएं व्यक्त कीं और इसके संभावित दुरुपयोग को लेकर अपनी आशंकाएं जाहिर कीं, जिससे राज्य के राजनीतिक गलियारों में एक नई बहस छिड़ गई है।

सरकार का तर्क: आंतरिक सुरक्षा और राष्ट्र हित

महाराष्ट्र सरकार के अनुसार, 'विशेष जन सुरक्षा विधेयक' का मुख्य उद्देश्य देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करना है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में बिल का बचाव करते हुए कहा कि यह कानून उन संगठनों के खिलाफ लाया गया है, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लोगों को भारतीय संविधान को उखाड़ फेंकने के लिए उकसा रहे हैं, या जिनका अंतिम उद्देश्य देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को ध्वस्त करना है। उन्होंने स्वीकार किया कि महाराष्ट्र में माओवादियों की भौतिक गतिविधियां कम हुई हैं, लेकिन साथ ही 'अर्बन माओवाद' (Urban Maoism) के खतरे को लेकर चेतावनी भी दी। सरकार का मानना है कि शहरी क्षेत्रों में सक्रिय ऐसे समूह विभिन्न माध्यमों से युवाओं और बुद्धिजीवियों को गुमराह कर राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं, और यह विधेयक ऐसे खतरों से निपटने के लिए आवश्यक है।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने जोर देकर कहा कि यह विधेयक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) या भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (माकपा) जैसी वैध वामपंथी राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह उन चरमपंथी संगठनों के खिलाफ है जो हिंसा को बढ़ावा देते हैं और संवैधानिक ढांचे को चुनौती देते हैं। उन्होंने असहमति (dissent) और उग्रवाद (extremism) के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि प्रत्येक नागरिक को विरोध करने और अपनी राय व्यक्त करने का संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि हिंसा या गंभीर अपराधों के मामलों में, भारतीय न्याय संहिता (BNS) के प्रावधान लागू होंगे, न कि नया कानून। उनका तर्क था कि यह विधेयक केवल उन्हीं गतिविधियों को लक्षित करेगा जो सीधे तौर पर राज्य और देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।

विपक्ष की चिंताएं: मौलिक अधिकारों का हनन?

विपक्ष ने इस विधेयक को लेकर गंभीर आपत्तियां उठाई हैं और इसके दुरुपयोग की गहरी आशंका व्यक्त की है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के विधायक रोहित पवार, शिवसेना (यूबीटी) के भास्कर जाधव और वरुण सरदेसाई, तथा कांग्रेस के विश्वजीत कदम जैसे प्रमुख विपक्षी नेताओं ने बिल के प्रावधानों पर सवाल उठाए। उनकी मुख्य चिंताएं निम्नलिखित हैं:

  • दुरुपयोग का खतरा: विपक्ष को डर है कि इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक कार्यकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विरोध प्रदर्शन करने वाले नागरिकों के खिलाफ किया जा सकता है, जिससे उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध करने के मौलिक अधिकार बाधित हो सकते हैं।

  • समिति के सुझावों की अनदेखी: विपक्षी सदस्यों ने बताया कि विधेयक को लेकर बनाई गई समिति ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे, लेकिन उन सभी को बिल में शामिल नहीं किया गया। कांग्रेस के विधायक नाना पटोले ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि विपक्ष की ओर से इस बिल पर लगभग 12 हजार सुझाव और आपत्तियां प्रस्तुत की गई थीं, लेकिन उनमें से केवल तीन को ही स्वीकार किया गया, जो सरकार की अलोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को दर्शाता है।

  • परिभाषाओं की अस्पष्टता: विधेयक में इस्तेमाल किए गए कुछ शब्दों, जैसे 'वामपंथी उग्रवाद' (Left-wing Extremism) और 'गैरकानूनी गतिविधियों' (Unlawful Activities) की परिभाषा को लेकर भी गहरी चिंता व्यक्त की गई है। रोहित पवार ने सवाल उठाया कि जब पहले से ही देश में ऐसे कानूनों की कमी नहीं है, तो नए कानून की क्या आवश्यकता थी? साथ ही, 'वामपंथी उग्र विचारधारा' (Left Wing Extremist Ideology) की कोई स्पष्ट और सार्वभौमिक परिभाषा न होने पर भी उन्होंने संदेह व्यक्त किया। अस्पष्ट परिभाषाएं कानून प्रवर्तन एजेंसियों को व्यापक विवेकाधिकार दे सकती हैं, जिससे निरंकुश गिरफ्तारी और उत्पीड़न का रास्ता खुल सकता है।

महाराष्ट्र की राजनीति में विधेयक का प्रभाव

इस विधेयक के पारित होने से महाराष्ट्र की राजनीति में नई बहस छिड़ गई है। जहां सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक आवश्यक कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे नागरिक स्वतंत्रता पर हमला और विरोध की आवाज को दबाने के प्रयास के रूप में देख रहा है। यह टकराव आगामी सत्रों और चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा बन सकता है। विपक्षी दल संभवतः इस कानून के खिलाफ कानूनी विकल्पों की तलाश कर सकते हैं या सड़कों पर उतरकर व्यापक विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं।

यह विधेयक महाराष्ट्र के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा। इसकी व्याख्या और कार्यान्वयन यह निर्धारित करेगा कि क्या यह वास्तव में राज्य की सुरक्षा को मजबूत करता है या राजनीतिक असहमति को दबाने के लिए एक उपकरण बन जाता है। इस पर न केवल महाराष्ट्र के लोग, बल्कि पूरे देश के मानवाधिकार कार्यकर्ता और कानूनी विशेषज्ञ भी बारीकी से नजर रखेंगे। सरकार और विपक्ष दोनों के लिए यह एक महत्वपूर्ण परीक्षा है कि वे अपने रुख पर कितना दृढ़ रहते हैं और इस कानून का भविष्य क्या आकार लेता है।