पाकिस्तान में तख्तापलट की अटकलें
पाकिस्तान में तख्तापलट की अटकलें तेज। सेना प्रमुख असीम मुनीर और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बीच तनाव। फील्ड मार्शल मुनीर की बढ़ती ताकत से शहबाज शरीफ सरकार पर दबाव। (Coup speculation rises in Pakistan. Tension between Army Chief Asim Munir and President Asif Ali Zardari. Field Marshal Munir's increasing power pressures Shehbaz Sharif government.)

इस्लामाबाद: पाकिस्तान एक बार फिर गंभीर राजनीतिक अस्थिरता और तख्तापलट की तेज होती अटकलों का सामना कर रहा है। देश के भीतर और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में, सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की बढ़ती ताकत और उनके राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी तथा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ बढ़ते टकराव की खबरें सुर्खियों में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान एक बार फिर उसी चौराहे पर खड़ा है, जहां लोकतंत्र और सैन्य शासन के बीच का संतुलन खतरे में है।
यह अनिश्चितता ऐसे समय में आई है जब पाकिस्तान पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट और राजनीतिक ध्रुवीकरण से जूझ रहा है। हालांकि पाकिस्तानी गृह मंत्री ने इन अटकलों को खारिज किया है, लेकिन सेना और नागरिक नेतृत्व के बीच कथित तनाव ने देश के राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
फील्ड मार्शल असीम मुनीर: सत्ता की ओर बढ़ते कदम
सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को हाल ही में फील्ड मार्शल का प्रतिष्ठित पद दिया गया है। यह पाकिस्तान के इतिहास में केवल दूसरी बार है जब किसी सेना प्रमुख को यह सम्मान मिला है (पहले अय्यूब खान को यह पद दिया गया था)। इस पदोन्नति को मुनीर की ताकत में महत्वपूर्ण वृद्धि के रूप में देखा जा रहा है। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जनरल मुनीर अब सिर्फ सेना तक सीमित नहीं रहना चाहते हैं, बल्कि पाकिस्तान की पूरी राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव लाना चाहते हैं।
इन रिपोर्ट्स के मुताबिक, जनरल मुनीर अब सरकार के फैसलों में खुलकर दखल दे रहे हैं। चाहे वह रक्षा नीति हो या विदेश नीति, उनकी मंजूरी अब अनिवार्य मानी जा रही है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और विदेश मंत्री इशाक डार की तुलना में मुनीर की बात को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। यह स्थिति पाकिस्तानी संविधान को चुनौती देती है, जो सेना को एक पेशेवर संस्था बनाए रखने की बात करता है। विशेषज्ञ मुनीर की हाई-प्रोफाइल कूटनीतिक यात्राओं को उनके एक 'स्थायित्व दूत' (stability envoy) के रूप में उभरने के प्रमाण के रूप में देख रहे हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह खुद को नागरिक नेतृत्व से ऊपर मानते हैं।
जरदारी और मुनीर के बीच बढ़ता तनाव
तख्तापलट की अटकलों का मुख्य कारण राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और जनरल मुनीर के बीच कथित तनाव है। जरदारी, जिन्होंने मार्च 2024 में दूसरी बार राष्ट्रपति पद संभाला था, कथित तौर पर अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग ऐसे तरीके से कर रहे हैं जिससे सेना असहज महसूस कर रही है।
रिपोर्टों के अनुसार, जरदारी ने सेना से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण फैसलों, जैसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की नियुक्तियों और विदेश नीति पर मुहर लगाने से इनकार कर दिया है। यह असहयोग सेना को नाराज कर रहा है, जो पारंपरिक रूप से पाकिस्तान में पर्दे के पीछे से शासन करती रही है। जरदारी की यह सक्रियता सेना को रास नहीं आ रही है, और ऐसी खबरें हैं कि जनरल मुनीर राष्ट्रपति जरदारी को उनके पद से हटाकर खुद राष्ट्रपति बनना चाहते हैं।
पाकिस्तानी राजनीतिक विश्लेषक इसे "प्लान मुशर्रफ" की तरह देख रहे हैं, जहां सेना प्रमुख सीधे सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले सकते हैं। हालांकि पाकिस्तानी गृह मंत्री मोहसिन नकवी ने जरदारी और सेना के बीच अच्छे संबंधों का दावा किया है और कहा है कि राष्ट्रपति इस्तीफा नहीं देंगे, लेकिन राजनीतिक गलियारों में अफवाहों का बाजार गर्म है।
राजनीतिक अस्थिरता और आंतरिक मतभेद
पाकिस्तान में वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता ने तख्तापलट की अटकलों को और हवा दी है। इस अस्थिरता का एक प्रमुख कारण बिलावल भुट्टो जरदारी (आसिफ अली जरदारी के बेटे) का एक हालिया बयान है, जिसमें उन्होंने नामित आतंकवादियों हाफिज सईद और मसूद अजहर को भारत को प्रत्यर्पित करने का प्रस्ताव रखा। इस बयान ने उन जिहादी समूहों को नाराज कर दिया है, जिन्हें पाकिस्तानी सेना का संरक्षण प्राप्त माना जाता है।
इस बयान के बाद, पाकिस्तानी मीडिया में यह चर्चा तेज हो गई है कि सेना इस स्थिति का लाभ उठाकर सरकार में फेरबदल कर सकती है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटाकर बिलावल भुट्टो को उनकी जगह दी जा सकती है, जिसके बदले में आसिफ अली जरदारी अपनी कुर्सी जनरल मुनीर को सौंप सकते हैं।
इसके अलावा, देश का गंभीर आर्थिक संकट और जनरल मुनीर की कथित फिजूलखर्ची (जैसे श्रीलंका की हालिया महंगी यात्रा) भी जनता के बीच आक्रोश पैदा कर रही है। यह जनाक्रोश सेना और विशेषाधिकार प्राप्त तबके के बीच बढ़ती खाई को उजागर करता है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ रही है।
पाकिस्तान में तख्तापलट का इतिहास और भविष्य की चिंताएं
पाकिस्तान में सेना का राजनीति में हस्तक्षेप कोई नई बात नहीं है। देश ने अपने अस्तित्व के लगभग आधे समय तक या तो सीधे सैन्य शासन देखा है या सैन्य-समर्थित गठबंधनों के माध्यम से शासन किया गया है। पाकिस्तान ने तीन प्रत्यक्ष सैन्य तख्तापलट देखे हैं: 1958 (अय्यूब खान), 1977 (जिया-उल-हक), और 1999 (परवेज मुशर्रफ)। इसके अलावा, सेना ने पर्दे के पीछे से नागरिक सरकारों को प्रभावित करने, उन्हें बर्खास्त करने या फेरबदल करने के कई उदाहरण भी देखे हैं।
वर्तमान स्थिति में, जनरल मुनीर की बढ़ती ताकत और जरदारी के प्रतिरोध के बीच, राजनीतिक विश्लेषक 1977 के जिया-उल-हक के तख्तापलट और 1999 के मुशर्रफ के तख्तापलट से समानताएं देख रहे हैं। यदि सत्ता संघर्ष और अस्थिरता जारी रहती है, तो पाकिस्तान में एक और सैन्य तख्तापलट की संभावना बढ़ जाती है।
पाकिस्तान के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जहां एक तरफ देश को आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर लोकतांत्रिक संस्थानों की विश्वसनीयता दांव पर लगी है।