आत्म-घोषित गौ-रक्षकों से परेशान संभाजीनगर के व्यापारी: राहत की गुहार

संभाजीनगर में पशु व्यापार करने वाले व्यापारी, विशेष रूप से कुरैशी समुदाय, कथित गौ-रक्षकों से परेशान हैं। ये व्यापारी इन लोगों पर कानून अपने हाथ में लेने और निजी स्वार्थों के लिए व्यापार को बाधित करने का आरोप लगा रहे हैं। व्यापारियों ने डीजीपी रश्मि शुक्ला को ज्ञापन सौंपकर इस समस्या का समाधान करने की मांग की है।

Aug 7, 2025 - 19:37
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आत्म-घोषित गौ-रक्षकों से परेशान संभाजीनगर के व्यापारी: राहत की गुहार
कानून बनाम अराजकता: संभाजीनगर में गौ-रक्षकों के आतंक से परेशान व्यापारी

छत्रपति संभाजीनगर में पशु व्यापार करने वाले व्यापारियों, खासकर कुरैशी समुदाय के लोगों के लिए, उनका व्यवसाय अब सिर्फ कमाई का साधन नहीं, बल्कि एक जंग बन गया है। वे आत्म-घोषित 'गौ-रक्षकों' के बढ़ते आतंक से इतने परेशान हैं कि उन्होंने अपनी सुरक्षा और आजीविका की मांग को लेकर सड़कों पर उतरने का फैसला किया है। इन व्यापारियों का आरोप है कि ये तथाकथित गौ-रक्षक कानून अपने हाथ में ले रहे हैं और उनके वैध व्यापार को बाधित कर रहे हैं, जिससे उनकी और उनके परिवारों की आजीविका खतरे में पड़ गई है। व्यापारियों ने हाल ही में एक महीने की हड़ताल की, जिससे न केवल उनके अपने व्यवसाय को नुकसान हुआ, बल्कि उनसे जुड़े अन्य उद्योगों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा। हड़ताल समाप्त होने के बाद, उन्होंने अपनी शिकायत को महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (DGP) रश्मि शुक्ला के समक्ष एक ज्ञापन के माध्यम से रखा है। उनका कहना है कि ये लोग गौ-सेवा के नाम पर गुंडागर्दी कर रहे हैं और सरकार से सुरक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

व्यापारियों का दर्द: आरोपों की फेहरिस्त

संभाजीनगर में पशु व्यापार एक कानूनी व्यवसाय है, जिसके लिए व्यापारी सभी आवश्यक नियमों और सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करते हैं। वे लाइसेंस प्राप्त करते हैं और पशुओं की खरीद-बिक्री में सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हैं। लेकिन, जैसा कि एक व्यापारी, मुहम्मद कुरैशी, ने बताया, उन्हें इन 'गौ-रक्षकों' द्वारा लगातार परेशान किया जा रहा है।

व्यापारियों के अनुसार, ये तथाकथित गौ-रक्षक अक्सर रास्ते में उनके वाहनों को रोकते हैं, पशुओं को जबरन छीन लेते हैं और कई बार हिंसा भी करते हैं। उनका आरोप है कि गौ-रक्षा के नाम पर कुछ लोग निजी लाभ के लिए भी पशु तस्करी में शामिल हैं। मुहम्मद कुरैशी ने यह भी दावा किया कि इन गौ-रक्षकों द्वारा बचाई गई गायों का कोई रिकॉर्ड नहीं है, और सरकार के पास भी इस बात का कोई लेखा-जोखा नहीं है कि वे गायें कहाँ गईं।

यह स्थिति सिर्फ व्यापारिक नुकसान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर कानून और व्यवस्था की समस्या को भी जन्म देती है। जब कोई समूह कानून को अपने हाथ में लेता है और किसी भी वैध व्यापार में हस्तक्षेप करता है, तो यह समाज में अराजकता और असुरक्षा की भावना पैदा करता है।

कानून और व्यवस्था की मांग: समाधान की तलाश

व्यापारियों का मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि वे गौ-रक्षा के खिलाफ हैं, बल्कि यह है कि वे चाहते हैं कि कानून का पालन हो। उनका कहना है कि अगर कोई भी व्यक्ति, चाहे वह व्यापारी हो या कोई और, कानून का उल्लंघन करता है, तो पुलिस और प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है।

इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि यह सिर्फ एक शहर की समस्या नहीं है, बल्कि देश के कई हिस्सों में देखी जा रही है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी समुदाय के लोगों को उनके वैध व्यवसाय करने से न रोका जाए और उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए। डीजीपी को सौंपे गए ज्ञापन में, व्यापारियों ने इन गौ-रक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है, ताकि व्यापार सुचारू रूप से चल सके और लोगों में सुरक्षा की भावना वापस आ सके।

व्यापार और अर्थव्यवस्था पर असर

पशु व्यापार सिर्फ कुरैशी समुदाय का ही व्यवसाय नहीं है, बल्कि इससे कई अन्य व्यवसायों को भी लाभ होता है, जैसे कि परिवहन, चमड़े का उद्योग, और मांस उद्योग। इस व्यापार के बाधित होने से इन सभी क्षेत्रों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है।

व्यापारियों की हड़ताल ने पहले ही इस बात का संकेत दे दिया है कि अगर यह समस्या हल नहीं होती तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। यह समस्या सिर्फ व्यापारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों को भी प्रभावित करती है। इसलिए, सरकार को इस मुद्दे को एक कानून और व्यवस्था की समस्या के रूप में देखना चाहिए और इसका तत्काल समाधान निकालना चाहिए।